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गांधी के आदर्शों पर चल रहे नरेंद्र मोदी

गांधी के आदर्शों पर चलकर मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी नए युग की शुरुआत कर रहे हैं और इससे राजनीतिक लाभ भी ले रहे हैं.

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उनके विरोधी उन्हें ऐसे पेश करना चाहेंगे, मानो वे गांधीवादी आदर्शों के विरोधी हैं, मुसलमानों को नीचा दिखाने वाले हिंदू उग्रपंथी हैं. पर हकीकत यह है कि राष्ट्रपिता के इतने सारे आदर्शों को गुजरात और उससे बाहर जितने अनूठे ढंग से और जितनी सफलता से नरेंद्र दामोदरदास मोदी ने पेश किया है, वैसी कोशिश कम लोगों ने की है. गुजरात के मुख्यमंत्री खादी, अंत्योदय, ग्रामोत्थान और बालिका शिक्षा सरीखे गांधीवादी आदर्शों को प्रचारित और क्रियान्वित करने के नए तरीके निकाल रहे हैं.

कुछ गांधीवादियों का कहना है कि यदि पिछले पांच वर्षों में गुजरात में खादी की बिक्री 10 प्रतिशत बढ़ी है और स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ देने वाली लड़कियों की संख्या घटी है, तो इसमें मोदी सरकार की अहम भूमिका है. हर वर्ष गांधी जयंती पर खुद खादी की दुकान पर जाकर खादी खरीदने के अलावा मोदी ने राज्‍य सरकार के कर्मचारियों को दो अहम दिशानिर्देश दिए हैं, जिनसे खादी की बिक्री बढ़ी है. एक, गांधीवादी उद्देश्यों की व्याख्या करते हुए उनसे अनुरोध किया गया है कि वे हर साल अक्तूबर में खादी खरीदें. दूसरे, उनसे कहा गया है कि वे सरकारी कार्यक्रमों में अतिथियों को गुलदस्ता भेंट करने के बदले खादी का तौलिया और एक पुस्तक भेंट करें.

लेकिन उल्लेखनीय तो लड़कियों के स्कूली शिक्षा बीच में ही छोड़ देने की दर में कमी लाने के लिए मोदी की राज्‍य की सभी 225 तहसीलों की दो दिन की सालाना यात्रा है. जून में होने वाले इस सालाना कार्यक्रम में खुद मोदी सहित सारी सरकार और आइएएस अधिकारी दो दिन तक गांवों में रहते हैं और समाज के निचले वर्गों के गरीब अभिभावकों को मनाते हैं कि वे अपनी बच्चियों को स्कूल भेजें. {mospagebreak}जाने-माने गांधीवादी लेखक गुणवंत शाह कहते हैं, ''गांधीवादी आदर्शों का प्रचार करने के लिए आइएएस अधिकारियों को पहले किसी ने इस तरह गांवों में नहीं भेजा. वास्तव में मोदी ने इस आधुनिक युग में गांधी को पेश करने का नया तरीका विकसित किया है.''

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अंत्योदय और ग्रामीण शिल्प उत्थान के गांधीवादी आदर्शों को साकार करता उनका एक और कदम शिल्प बाजार योजना का है, जिसके तहत सरकार ग्रामीण शिल्पियों को राज्‍य के बड़े शहरों में वर्ष की एक नियत अवधि में ठहरने और बेचने के लिए स्थान उपलब्ध कराती है, जहां वह न केवल कमाई कर सकते हैं, बल्कि अपने शिल्प के लिए नियमित शहरी ग्राहक पा सकते हैं. शिल्पियों का कहना है कि उनके शिल्प को बढ़ावा देने के लिए पहले किसी ने इस तरह से नहीं सोचा.

लेकिन मोदी सरकार गांधी को लोगों में ले जाने के लिए सबसे बड़ा काम तो महात्मा मंदिर बनाकर कर रही है. वास्तव में गांधी का स्मारक गांधीनगर में 58,000 वर्ग मीटर क्षेत्र में बनाया जा रहा है और अगले वर्ष तक जनता के लिए खोल दिया जाएगा. गांधीजी को समर्पित ऐसा कोई परिसर विश्व में कहीं नहीं है. {mospagebreak}चतुर नेता मोदी ने इस वर्ष के आरंभ में गुजरात के 18,000 गांवों से लोगों को गांधीनगर में मंदिर निर्माण स्थल तक बुलाकर जनता को भावनात्मक तौर पर इस परियोजना से जोड़ लिया था. इसके लिए वे अपने गांव से मिट्टी और पानी लेकर आए थे. इस मंदिर में तमाम अनूठी चीजें होंगीं-नमक का एक विशाल पहाड़ होगा, एक चरखेनुमा पवनचक्की होगी, जो बिजली पैदा करेगी, तीन प्रदर्शनी हॉल होंगे, जिनमें कल्पना के परे किस्म की अनूठी चीजें होंगी और एक शानदार गांधी गार्डन होगा.

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इस परियोजना से जुड़े रहे आइएएस अधिकारी भाग्येश झा कहते हैं, ''गांधी मंदिर गांधीनगर को विश्व स्तरीय पर्यटन केंद्र बना देगा.'' जनवरी में होने वाले अगले वाइब्रेंट गुजरात वैश्विक निवेश सम्मेलन में मोदी गुजरात के ग्रामीण शिल्पियों को सम्मेलन स्थल पर ही प्रदर्शनी के लिए स्थान देकर 60 देशों के प्रतिनिधियों के समक्ष प्रस्तुत करेंगे. जाहिर है, मोदी ने आधुनिक युग में गांधी को प्रस्तुत करने के एक नए अध्याय की शुरुआत की है, और वह इससे राजनीतिक लाभ भी उठा रहे हैं, जैसा कि उनकी बार-बार की चुनावी जीत से साफ नजर आता है.

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