कॉलेज...ये नाम जब भी हमारे जेहन के सुनहरे पर्दे पर उभर कर आता है, वैसे ही हमारे होंठों पर एक बेसाख्ता मुस्कान आ ही जाती है. कॉलेज के उन दिनों को याद करके शायद ही कोई होगा जिसकी आंखों में उन दिनों की बेफ्रिक्री को दोबारा जीने की ललक ना दिखती हो. इस भागदौड़, पैसे कमाने और करियर बनाने की रेस में आने के बाद पता चला कि शायद जिंदगी के कुछ ऐसे खूबसूरत लम्हे पीछे छूट गए हैं जिन्हें दोबारा जीने का मलाल जिंदगीभर रहेगा, शायद दिल की आखिरी धड़कन तक. चाहे आज हम कोई भी नौकरी कर रहे हों, देश-विदेश के किसी भी कोने में रह रहे हों, हजारों, लाखों, करोड़ों से खेल रहे हों, लेकिन कॉलेज के दिनों की कुछ ऐसी बातें हैं जो भुलाए नहीं भूलती या यूं कहें कि हम उन बातों को कभी भूलना नहीं चाहते. कई ऐसी छोटी छोटी यादें होती हैं जिन्हें हम ताउम्र संजोकर रखना चाहते हैं. ऐसी ही कुछ यादें हैं जिन्हें हमने पिरोने की कोशिश की है.
कॉलेज का वो पहला दिन
कॉलेज का पहला दिन कौन भूल सकता है. स्कूल के बाद घर से मिली आजादी की खुशी मनाने का दिन जो था. उस दिन कॉलेज की ओर बढ़ने वाला हमारा हर कदम दिल की धड़कन और भी
बढ़ा देता था. खुशी और घबराहट की कॉकटेल लिए कॉलेज कैंपस में घुसना आज भी भुलाए नहीं भूलता.
कॉलेज की वह पहली क्लास
उफ...वो भी क्या दिन था. नए नए चेहरों के बीच उस दिन जिंदगी बड़ी अकेली लग रही थी. लेकिन ये नहीं पता था कि आने वाले कुछ दिनों में ये सारे चेहरे ही हमारी जिंदगी का अहम हिस्सा
बन जाएंगे. पहली क्लास अटेंड करने से ज्यादा लड़कों का फोकस इस बात पर था कि क्लास में लड़कियां कितनी हैं, रेशियो के हिसाब से. हालांकि पहले दिन इससे ज्यादा रिसर्च करने की
हिम्मत भी नहीं थी.
कॉलेज का वो पहला क्रश
कॉलेज का पहला क्रश जिसे देखने के बाद पहली बार फिल्मों की तरह पीछे से वायलन की आवाज सुनाई दी थी हमें. सब कुछ यशराज फिल्म्स की रोमांटिक फिल्म की तरह हो रहा था. उसकी
सफेद सलवार सूट और लाल दुपट्टा आज भी कई बार यादों के झोंके के साथ हमारे दिल को छू जाता है.
(नोट: यहां 'पहला' शब्द का प्रयोग इसलिए क्योंकि क्रश तो बहुत हुआ लेकिन हर बार दिल क्रश ही हुआ.)
कॉलेज का वह पहला प्रपोजल और डेट
बस बस...बहुत फिल्मी बातें हो गईं. अब वक्त था एक्शन का. उसे देख लिया, वायलन भी बज गए, प्यार भी हो गया लेकिन अब बारी थी 'मिशन पहला प्यार' को लॉन्च करने की. लेकिन
उसके पहले ये पता करना था कि लड़की सिंगल है या कमिटेड. घनघोर रिसर्च के बाद हमारे दोस्तों ने बताया की 'भाभी' अभी भी सिंगल हैं. बस फिर क्या था...पहुंच गए दिल को फड़फड़ाते हम
उनके सामने और रख दिया प्रपोजल हमेशा के लिए एक हो जाने का. प्रपोजल एक्सेप्ट होने के बाद दिल कॉन्फिडेंस से भर गया और याद आने लगी बुजुर्ग प्रेमियों की वो बात कि 'बड़ी शिद्दत
से तुझे पाने की चाहत की है...कि हर जर्रे ने तुमसे मिलाने की साजिश की है.'
वैसे यहां बात पहले डेट की हो रही थी तो वापस उसी पर फोकस करते हैं. पहले डेट के दिन पता चला कि इसका सीधा कनेक्शन पेट से होता है. भले ही आप अपने मोहल्ले के सड़कछाप मोहन
चपातीवाला के यहां रोज के ग्राहक क्यों ना हों लेकिन वो डेट ही क्या जिसमें आप अपनी प्रियतमा को महंगे रेस्त्रां में ले जाकर पेट पूजा ना कराएं. उस दौर में ये सबसे ज्यादा दर्दनाक था.
लेकिन क्या करें प्यार अंधा जो होता है.
वो पहली बार दिल टूटना
कॉलेज के दिनों का सबसे दर्दनाक लम्हा. उस पहले क्रश ने दिल को इतनी बुरी तरह 'क्रश' किया कि उसके टुकड़ों को इकट्ठा करने में कई दिन लग गए. पता चला, हमारे दोस्तों की 'भाभी' ने
किसी सीनियर का हाथ थाम लिया है. दोस्तों का गुस्सा भी उबाल पर था. उस दिन हमारे दोस्तों ने भी खाना नहीं खाया. ये वो लम्हा था जब दोस्त और करीब आए. 'फिर अगले दिन दिल के
मोहल्ले में ऐश्वर्या आएगी' ये सोचकर हम सब ने आगे बढ़ने का फैसला किया.
कॉलेज की वो कैंटीन
दोस्तों की टोली कैंटीन में जब गाना गाती थी वह भी टेबल बजा कर तो लगता था हमसे बड़ा कोई रॉकस्टार पैदा ही नहीं हुआ. मेस का पकाऊ खाना खाने के बाद उसे पचाने के लिए ये करना
जरूरी था.
कॉलेज का वो गार्डन
क्लास बंक करने या क्लास खत्म करने के बाद सारे दोस्तों का मीटिंग प्वाइंट. जहां एक से एक आइडिया जेनेरेट करने की कोशिश की जाती थी. सारे थिंक टैंक एक जगह इकट्ठा होकर हर तरह
के मसले को सुलझाने की कोशिश करते थे.
कॉलेज का वो हॉस्टल
एक ऐसी जगह जहां हम रात को जगते थे और सुबह 10 बजे तक सोते थे. पहली क्लास तो कई बार छूटी होगी. एक रूम में इकट्ठे होकर गिटार की धुन पर नाचना, गुनगुनाना. वहां गुजारी हर
रात आज भी जेहन में मौजूद है.
कॉलेज की खूबसूरत प्रोफेसर
कॉलेज की एक ऐसी हस्ती जिसे देख कर ये महसूस होता था, काश कुछ साल पहले पैदा हो गए होते. उस खूबसूरत फैकल्टी की क्लास किसी भी हालत में नहीं छूटती थी. चाहे किसी भी
सब्जेक्ट का असाइनमेंट तैयार हो ना हो लेकिन 'उनके' असाइनमेंट को जरूर पूरा करते थे. उन्हें नाराज होने का कोई मौका नहीं देते थे. उस खूबसूरत फैकल्टी की मुस्कान आज भी भुलाए नहीं
भूलती.
एक अनोखी जगह: लाइब्रेरी
कॉलेज के दिनों में इस अनोखे जगह से सबसे कम वास्ता रहा है. इसलिए इसके बारे में ज्यादा बात नहीं हो पाएगी. इस जगह का सबसे ज्यादा इस्तेमाल लड़कियां करती थीं. हां, क्लास बंक
करने के बाद ये जगह सबसे सेफ मानी जाती थी.
जेरॉक्स मशीन
कॉलेज के दिनों में सबसे ज्यादा पैसे इसी पर खर्च हुए हैं. अरे बाबा, नोट्स जेरॉक्स कराने में. लड़कियों के लाइब्रेरी जाने का सबसे बड़ा फायदा ये था कि वो हर सब्जेक्ट का प्वाइंट टू प्वाइंट
नोट्स बना लेती थीं और लड़के उसका जेरॉक्स करा कर अपना कीमती समय बचा लेते थे.
वो सस्ती वॉलेट
चाहे कीमत की बात हो या उसके अंदर रखे गए कीमत की, दोनों ही मामलों में उन दिनों हमारे वॉलेट सस्ते ही हुआ करते थे. कभी 20, कभी 2000, पैसों का उतार चढ़ाव लगा रहता था शेयर
बाजार की तरह. लेकिन हिम्मत इतनी होती थी कि किसी दोस्त को पैसे की कमी महसूस होने नहीं देते थे. जब हमें जरूरत पड़ी दोस्त साथ थे और जब उन्हें, तब हम.
दोस्तों की बर्थडे पार्टी
भाई साब..असल सेलिब्रेशन तो इसी दिन होता था. भले आज जन्मदिन पर बम पर लात मारने वालों की संख्या कम हो गई हो लेकिन उन दिनों जन्मदिन पर इतने लात पड़ते थे कि दो दिन
तक बैठना मुश्किल हो जाता था. दोस्तों का हमसे छुपाकर केक लाना और फिर ठीक रात 12 बजे पूरे मोहल्ले में सिर्फ हमारी ही आवाज गूजंना. कुछ ऐसा होता था हमारे जन्मदिन का आगाज.
दोस्तों को खिलाने में दो महीने का बजट हिल जाता था लेकिन कमबख्त दोस्त एक गिफ्ट तक नहीं देते थे.
एक पकाऊ दोस्त
हर किसी के दोस्तों के फेहरिस्त में एक पकाऊ किस्म का दोस्त जरूर होता है. जो कभी दारू पीने के बाद अंग्रेजी बोल बोल कर पकाता है, कभी दिल टूटने पर रोता है तो कभी पैसे ना होने के
बहाने करता है. लेकिन लाख कमियों के बावजूद वो हम सबका बहुत प्यारा भी होता है.
कॉलेज को वो आखिरी दिन
आखिर में वो दिन भी आ गया जिसके बारे में याद कर के आज भी आंखें नम हो जाती हैं. उस दिन सारे गिले-शिकवे किनारे रख कर एक बार गले लगने का सुख भुलाए नहीं भूलता. इस
वादे के साथ कि साल में एक बार जरूर मिलेंगे, कॉन्टैक्ट बनाए रखेंगे. वैसे वादे तो कईयों ने किए थे लेकिन इतने साल बाद बहुत कम लोग ही उसे निभा पाए हैं. उस दिन सब यही कह रहे थे
कि काश हम इस कॉलेज में हमेशा के लिए रह जाते, यूं हीं साथ-साथ.
चलिए जी...बहुत याद कर लिया आपने अपने कॉलेज के दिनों को. अब इस पन्ने को Minimize कीजिए और लग जाइए अपने काम पर वर्ना पीछे से बॉस आ जाएंगे.
सच, कितना हसीन था वो पल जहां छोटी छोटी चीजें भी हमें एक अजीब सी खुशी दे जाती थी और आज उन्हीं बातों को हम अपना बचपना कह कर टाल देते हैं.