नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के अनुसार भारत में बुनियादी सुविधाओं की कमी असमानता के लिए जिम्मेदार है. उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में स्वास्थ्य, शिक्षा और मानवाधिकार जैसे सामाजिक सूचकांकों को सार्वजनिक बहस का मुद्दा बनाया जाना चाहिए.
दिल्ली स्थित अंतरराष्ट्रीय मानव विकास केन्द्र के उद्घाटन के मौके पर शुक्रवार को अपने उद्घाटन भाषण में सेन ने कहा, ‘बुनियादी सुविधाओं की कमी भारत में असमानता के लिए जिम्मेदार है. स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, पोषण और मानवाधिकार जैसे मुद्दों को राजनीतिक आदान-प्रदान का मुद्दा बना जाना चाहिए. सामाजिक सूचकांकों का विकास आर्थिक विकास को बढ़ावा देगा.’
सेन ने कहा, ‘हम अपने संसाधनों का विकास मानव जीवन की उन्नति के लिए किस तरह करें, यह भारत में सबसे बड़ा सवाल है. आर्थिक विकास उपयोगी वस्तुओं पर आधारित है, जबकि विकास मानव जीवन से जुड़ा हुआ है.’
'ह्यूमन डेवलपमेंट पोस्ट 2015' विषय पर बोलते हुए सेन ने स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, पोषण और मानवाधिकार जैसे मुद्दों को राजनीतिक आदान-प्रदान का मुद्दा बनाए जाने की बात कही. उन्होंने कहा, ‘सरकार की नीतियों के अलावा हमें विपक्षी दलों की नीतियों और जनता द्वारा अपनी मांगों में उठाए जाने वाले मुद्दों पर विचार करने की जरूरत है.’
सेन के अनुसार लगभग आधे भारतीय परिवारों (48 प्रतिशत) के पास शौचालय नहीं हैं और 43.5 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं. उन्होंने कहा, ‘भारत, स्वास्थ्य देखभाल सम्बंधी सूचकांक के मामले में असफल रहा है.’
उनके अनुसार चीन में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2.7 प्रतिशत हिस्सा स्वास्थ्य देखभाल पर खर्च होता है, जबकि भारत में यह केवल 1.2 प्रतिशत है. सेन ने कहा कि भारत में विकास की भूमिका को समझना बहुत जरूरी है. सेन ने तुलना करते हुए कहा कि चीन ने भारत को बहुत से समाज कल्याण सूचकांकों पर पीछे छोड़ दिया है.
इस मौके पर उपस्थित भारत में पैदा हुए ब्रिटिश अर्थशास्त्री लॉर्ड मेघनाद देसाई ने कहा कि भारत के अंदर बहुत से देश हैं और उनकी अपनी अर्थव्यवस्थाएं हैं. उन्होंने भारत में महिलाओं के लिए एक विशेष विकास सूचकांक का सुझाव दिया.
ग्रामीण विकास मंत्री जयराम नरेश ने कहा कि देश को सामाजिक विकास के लिए बड़े पैमान पर आवश्यक निवेश को प्रोत्साहन देने के लिए उच्च आर्थिक विकास की जरूरत है. उन्होंने जोर देकर कहा कि स्वच्छता, विकास संबंधी चर्चाओं का मुख्य केंद्र होनी चाहिए.
जयराम ने बताया, ‘देश की 60 प्रतिशत से अधिक महिलाएं आज भी खुले में शौच जाने को मजबूर हैं. स्वच्छताबोद्ध में कमी का सीधा संबंध कुपोषण से है.’