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लॉकडाउन में कैसे मजदूरों की मदद का आदर्श मॉडल बन गया है मनरेगा, हर CM हैं मुरीद

लॉकडाउन में कारोबार पूरी तरह से ठप हो जाने के चलते घर वापसी कर रहे श्रमिकों को अब रोजगार से जोड़ने के लिए अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मनरेगा को अपना आदर्श मॉडल बनाया है. केंद्र सरकार के मुताबिक लॉकडाउन में दो करोड़ से अधिक ग्रामीण मजदूरों को मनरेगा के तहत फायदा पहुंचा है.

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मनरेगा के तहत काम कर रही महिलाएं (फाइल फोटो)
मनरेगा के तहत काम कर रही महिलाएं (फाइल फोटो)

  • घर वापसी कर रहे मजदूरों के लिए मनरेगा बना नौकरी का साधन
  • मनरेगा के तहत 7 मई तक 92 लाख 55 हजार 701 मजदूर लगे हैं

कोरोना संकट और लॉकडाउन के दौरान 'मनरेगा' योजना ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों के लिए रोजी रोटी का एक जरिया बन गई है. लॉकडाउन में कारोबार पूरी तरह से ठप हो जाने के चलते घर वापसी कर रहे श्रमिकों को अब रोजगार से जोड़ने के लिए अलग-अलग राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने मनरेगा को अपना आदर्श मॉडल बनाया है. केंद्र सरकार के मुताबिक लॉकडाउन में एक करोड़ के करीब ग्रामीण मजदूरों को मनरेगा के तहत फायदा पहुंचा है.

केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक 7 मई तक मनरेगा कार्यों में पूरे देश में 92 लाख 55 हजार 701 मजदूर लगे हैं. मनरेगा के तहत आंध्र प्रदेश में विभिन्न कार्य में 27 लाख 49 हजार 213 मजदूर काम पर है, जो सबसे ज्यादा संख्या है. इसके बाद छत्तीसगढ़ में 19 लाख 88 हजार 36 मजदूर मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं. इसके बाद 5 लाख और यूपी में पौने पांच लाख मजदूर मनरेगा के तहत काम कर रहे हैं.

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ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 33,300 करोड़ रुपये की राशि मनरेगा के अंतर्गत स्वीकृत की है. इसमें से 20,225 करोड़ रुपये की राशि पूर्व वर्षों की मजदूरी तथा सामग्री के बकाया को समाप्त करने के लिए जारी की गई है. इसके अतरिक्त केंद सरकार ने मनरेगा मजदूरों के लंबित मजदूरी के भुगतान के लिए 4,431 करोड़ रुपए की राशि जारी कर दी है, जिसके तहत 10 अप्रैल तक मजदरों का भुगतान किया जा रहा है.

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लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों की घर वापसी शुरू हो गई है. ऐसे में राज्य सरकारों ने उनके रोजगार को लेकर भी प्लान बनाने शुरू कर दिए हैं. लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति एवं लोगों को रोजगार देने के लिए पिछले दिनों केंद्र सरकार ने मनरेगा के तहत छोटी नदियों के पुनर्जीवन के कार्य को आगे बढ़ाने का फैसला किया है.

सामाजिक कार्यकर्ता निखिल डे ने बताया कि जिस तादाद में मजदूरों की वापसी हो रही है, उनके लिए सरकार के पास रोजगार देना का मनरेगा ही एक विकल्प है. मौजूदा समय में सरकार रोजगार के लिए नए ढांचा तैयार नहीं कर सकती है और ऐसे में मनरेगा मजदूरों की रोजी रोटी का एक जरिया बन सकता है.

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कोरोना संक्रमण के चलते फिलहाल सारे उद्योग-कारोबार बंद हो चुके हैं. ये श्रमिक जो अभी तक अपनी जीविका के लिए सरकार पर निर्भर नहीं थे, अब उनकी ओर बड़ी उम्मीद से देख रहे हैं. ऐसे में श्रमिकों को पहले की तरह मजदूरी तो नहीं मिलेगी, लेकिन राशन उन्हें सरकार से मिल जाएगा और मनरेगा के तहत इतना पैसा मिल जाएगा कि जिंदगी का गुजर बसर हो सकता है.

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झारखंड के सीएम हेमंत सोरेन ने घर वापसी करने वाले मजदूरों के रोजगार सृजन के लिए तीन बड़ी योजना का आगाज किया है. सरकार का दावा है इसके तहत करीब 8 लाख श्रामिकों को अतरिक्त मनरेगा के तहत रोजगार मिलेगा. छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल ने भी प्रवासी श्रमिकों को मनरेगा से जोड़कर रोजगार देने के संकेत दिए हैं. छत्तीसगढ़ के साथ ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इन मनरेगा मजदूरों के लिए तत्काल आर्थिक मदद भेजने की अपील कर चुके हैं.

राजस्थान में 12 लाख मनरेगा श्रमिक

राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने शनिवार को कहा था कि प्रदेश में एक लाख से बढ़कर मनरेगा श्रमिकों की संख्या 12 लाख हो गई है और राज्य सरकार का लक्ष्य इस संख्या को 30 लाख तक पहुंचाने का है. उन्होंने कहा कि घर वापसी करने वाले श्रमिकों को भी मनरेगा से जोड़ने की दिशा में संकेत दिए गए हैं. इसके अलावा राजस्थान के डिप्टी सीएम सचिन पायलट ने केंद्रीय ग्रामीण विकास व पंचायती राज मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को पत्र लिखकर मनरेगा श्रमिकों का रोजगार 100 से बढ़ाकर 200 दिन करने की मांग उठायी है.

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उत्तर प्रदेश में लॉकडाउन के दौरान घर वापसी करने वाले मजदूरों के लिए मनरेगा योजना से काम उपलब्ध कराने की कवायद तेज हो गई है. सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि यूपी आने वाले श्रमिकों की स्किलिंग कर डाटा तैयार किया जा रहा है. होम क्वारनटीन पूरा होते ही स्किल के आधार पर रोजगार से जोड़ा जाएगा. पिछले दिनों यूपी में घर लौटे श्रामिकों को मनरेगा के तहत जल संरक्षण से जुड़े कार्यों में बड़ी संख्या लगाया गया है. इसके अलावा प्रदेशों से लौटे श्रमिकों को नए जॉब कार्ड भी जारी किए जा रहे है.

मनरेगा मजदूरों पर काम कर रही रक्षिता स्वामी ने बताया कि मार्च में तो 1 करोड़ 57 लाख 94 हजार परिवार काम कर रहे थे, लेकिन लॉकडाउन में करीब 65 लाख 67 हजार परिवार ने ही काम किया है. ऐसे में मनरेगा के तहत पहले तो जॉब कार्ड धारकों को लगाने की जरूरत है. इसके अलावा जो प्रवासी श्रमिक अपने राज्य वापस आ रहे हैं उनके पास रोजी-रोटी के लिए कोई व्यवस्था नहीं है. ऐसे में मनरेगा उनके लिए बेहतर रोजगार का साधन बन सकता है.

रक्षिता स्वामी कहती हैं कि मनरेगा के लिए 2020-21 वित्तीय वर्ष में 61500 करोड़ रुपये का प्रावधान रखा गया है, जिनमें से सरकार ने आधा के करीब बजट जारी कर दिया है. मनरेगा के तहत 6 फीसदी परिवार को ही 100 दिन का काम मिल रहा है और 50 फीसदी लोगों औतसन 35 दिन रोजगार पा रहे हैं. मनरेगा के देश में 13 करोड़ परिवार को जॉब कार्ड जारी है, जिन्हें औसत दिन काम मिले तो 2 लाख करोड़ का खर्च है. इस समय में 30 फीसदी से कम बजट मनरेगा को दिया जा रहा है. उन्होंने कहा कि ऐसे में अगर श्रमिकों को भी मनरेगा के तहत काम दिया जा रहा है तो सरकार को बजट बढ़ाना चाहिए.

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रक्षिता ने कहा कि लॉकडाउन में जो मजदूर वापस आए हैं, वो ऐसी स्थिति में है कि उन्हें तुरंत काम चाहिए. ऐसे में क्वारेनटाइन में रहने के दौरान ही श्रमिकों का जॉब कार्ड बनवा दिया जाना चाहिए. क्योंकि मनरेगा के अलावा फिलहाल किसी दूसरी जगह नौकरी देना मुश्किल है. मनरेगा के तहत जोड़ना आसान है, इससे वो अपनी जीविका को चला सकते हैं. हालांकि, सरकार को इस बात का ख्याल रखना होगा कि काम के 15वें दिन मजदूरों को उनका भुगतान किया जाए.

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