आदिवासी नेता महेंद्र कर्मा को बस्तर का टाइगर कहा जाता था. नक्सलवाद के खिलाफ उन्होंने 2005 में सलवा जुडूम अभियान शुरू किया था. सलवा जुडूम यानि नक्सलियों की गोली का जवाब देने का अभियान. सलवा जुडूम के जरिए महेंद्र कर्मा ने आदिवासियों को नक्सलियों से लड़ने की ताकत दी थी.
सलवा जुडूम के तहत आम लोगों को हथियार देकर नक्सली आतंकियों से निपटने की ट्रेनिंग दी जाती थी. महेंद्र कर्मा के सलवा जुडूम अभियान की आलोचना भी खूब हुई. नक्सलियों के हितों की वकालत करने वाले लोगों ने इसे दूसरी तरह का आतंकवाद करार दिया था, लेकिन छत्तीसगढ़ की बीजेपी सरकार ने महेंद्र कर्मा के इस फॉर्म्यूले को अपना लिया और स्पेशल पुलिस फोर्स तैयार की. सलवा जुडूम के तहत सैकड़ों नक्सली मारे गए थे. इस तरह महेंद्र कर्मा नक्सलियों के दुश्मन नंबर एक बन गए थे.
महेंद्र कर्मा पर चार बार नक्सली हमला हुआ था, लेकिन हर बार उन्होंने मौत को मात दे दी थी, लेकिन पांचवें हमले के वक्त किस्मत ने साथ नहीं दिया और महेंद्र कर्मा शहीद हो गए. महेंद्र कर्मा के साथ ही खामोश हो गई आदिवासियों की वो ताकत, जो उनकी मजबूत आवाज भी थी.
बहादुरी दिखाई अंतिम समय भी
कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा के अगुआ महेंद्र वर्मा जब जगदलपुर से तमाम नेताओं के साथ लौट रहे थे. तब उन पर हमला किया गया. हमले के दौरान भी महेंद्र वर्मा ने जांबाजी दिखाई.
गोलियां बरसा रहे नक्सलियों ने जब महेंद्र कर्मा की तलाश शुरू की तो वे खुद नक्सलियों के सामने चले गए. उन्होंने कहा, 'जो करना है मेरे साथ करो, बाकी लोगों को छोड़ दो.' इसके बाद माओवादियों ने महेंद्र कर्मा का जिस्म गोलियों से छलनी कर दिया. उन पर 50 से अधिक गोलियां चलाई गईं.