गरीबी रेखा की नई परिभाषा के बाद कांग्रेस पार्टी को हुए नुकसान की भरपाई की कोशिशें तेज हो गई हैं. कई कांग्रेस नेता डैमेज कंट्रोल में जुट गए हैं. इस सब के बीच विलेन बन रहा है योजना आयोग.
केंद्रीय नेता कपिल सिब्बल ने योजना आयोग पर उंगली उठाई है. सिब्बल ने कोलकाता में गरीबी रेखा की परिभाषा को गलत बताया औ कहा कि 5 हजार रुपये में पांच लोगों का परिवार गुजारा नहीं कर सकता. सिब्बल 5 हजार रुपये प्रति माह आय वालों को गरीबी रेखा से नीचे बताने पर नाखुश नजर आए और योजना आयोग की प्रकिया में खामी बता दी.
वहीं, शनिवार को कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने एक ट्वीट किया और योजना आयोग को खलनायक बताने की कोशिश की. दिग्विजय सिंह ने लिखा कि वे अब तक योजना आयोग के काम करने के तरीके को समझ नहीं पाए हैं. योजना आयोग सबको एक ही तराजू में तौलने की कोशिश करता है जो कि कभी सही नहीं हो सकता.
उधर, एनसीपी ने भी गरीबी रेखा की परिभाषा पर सवाल उठाए हैं. एनसीपी ने कहा है इस पर गहन चिंतन की जरूरत है.
गौरतलब है कि पिछले सप्ताह ही योजना आयोग ने गरीबी पर अपने नये आंकड़े जारी किए थे. आयोग के मुताबिक, देश की आबादी में गरीबों का अनुपात 2011-12 में घटकर 21.9 प्रतिशत पर आ गया जो 2004-05 में 37.2 प्रतिशत पर था.
योजना आयोग के अनुसार, तेंदुलकर प्रणाली के तहत 2011-12 में ग्रामीण इलाकों में 816 रुपये रपये प्रति व्यक्ति प्रति माह से कम उपभोग करने वाला व्यक्ति गरीबी की रेखा के नीचे था. शहरों में राष्ट्रीय गरीबी की रेखा का पैमाना 1,000 रुपये प्रति व्यक्ति प्रति माह का उपभोग है. इसका मतलब यह हुआ कि शहरों में प्रतिदिन वस्तुओं और सेवाओं पर 33.33 रुपये से अधिक खर्च करने वाला और ग्रामीण इलाकों में 27.20 रुपये खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है.
इससे पहले आयोग ने कहा था कि शहरी इलाकों में प्रतिदिन 32 रुपये से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है. उसकी इस गणना से काफी विवाद पैदा हुआ था. योजना आयोग ने जो गरीबी का आंकड़ा दिया है, वह उसी गणना के तरीके पर आधारित है. इसमें कहा गया है कि पिछले सात साल में देश में गरीबों की संख्या घटी है.
आयोग ने कहा कि पांच व्यक्तियों के परिवार में खपत खर्च के हिसाब से अखिल भारतीय गरीबी की रेखा ग्रामीण इलाकों के लिए 4,080 रुपये मासिक और शहरों में 5,000 रुपये मासिक होगी. हालांकि, राज्य दर राज्य हिसाब से गरीबी की रेखा भिन्न होगी.