सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश, मुखर कानूनविद मार्कंडेय काटजू ने पंडित नेहरू से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा आज
अपने ब्लॉग पर शेयर किया. उन्होंने बताया कि कैसे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के लड़के निष्कासित किए जाने पर दिल्ली में
पीएम के आवास पर आ धमके. फिर हो हल्ले के बाद वो छात्र घर के भीतर गए तो नेहरू ने उन्हें क्या कहा और वापस जाकर
क्या हुआ. काटजू के मुताबिक जब वह इलाहाबाद में रहा करते थे उन दिनों उनके एक दोस्त ने उन्हें यह किस्सा सुनाया था.
सिलसिला कुछ यूं घटा...
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50 के दशक में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में कॉनवोकेशन हुआ. काटजू के दोस्त समेत कुछ छात्रों ने किसी मुद्दे पर विरोध जताने
के लिए गवर्नर को जूतों का हार पहना दिया. नतीजतन, उन्हें यूनिवर्सिटी से निकाल दिया गया.छात्रों ने तय किया कि इस
फैसले को पलटवाने के लिए उन्हें पीएम पंडित नेहरू से मिलना चाहिए. वे रात की ट्रेन पर सवार हो गए. टीटीई आया और
टिकट के लिए पूछा, तो बोले. हम पीएम के संसदीय क्षेत्र के हैं. भाग जाओ. टीटीई चला गया.दिल्ली में वे पंडित नेहरू के
आवास तीन मूर्ति भवन पहुंच गए. सुरक्षाकर्मियों ने रोका तो फिर वही जवाब. हम पीएम के संसदीय क्षेत्र से हैं. हमें मुलाकात
के लिए अप्वाइंटमेंट नहीं चाहिए. फिर भी दाल नहीं गली तो देने लगे धमकी. यहीं आत्महत्या कर लेंगे.खबर नेहरू जी तक
पहुंची. उनकी आमद को हरी झंडी मिल गई. उन्हें एक बड़े मुलाकाती हॉल में ले जाया गया. वहां सूखे मेवों की भरमार थी.
लड़कों ने कुछ खाए, बाकी जेब में भर लिया. थोड़ी देर में पीएम नेहरू नमूदार हुए. निक्कर और बनियान में. आते ही जोर से
चिल्लाए. जाओ, पढ़ो-पढ़ो. छात्रों ने जवाब दिया. कहां पढ़ें साहिब. हमें एक्सपेल कर दिया गया है. नेहरू फिर बोले. पढ़ो-पढ़ो
और हॉल से चले गए.छात्रों को कुछ समझ ही नहीं आया. क्या कहें, क्या करें. वे भी कुछ देर बाद वहां से निकल लिए.
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छात्रों ने फिर रात की ट्रेन पकड़ी. टिकट फिर नहीं लिया और टीटीई के आने पर वही जवाब दोहरा दिया. भूख लगी तो मेवे काम आए. रास्ते भर उधेड़बुन में रहे. नेहरू जी ने ऐसे क्यों कहा. इलाहाबाद से पहले फतेहपुर स्टेशन आया तो एक छात्र नीचे उतरा. प्लेटफॉर्म पर अखबार बिक रहा था. उठाया तो पहले पन्ने पर ही खबर थी. यूनिवर्सिटी के वीसी ने निष्कासन रद्द कर दिया है.
मुमकिन है कि पीएम ने अपने सचिव को वीसी को टेलीफोन करने के लिए कहा हो. उन्हें दरख्वास्त की हो छात्रों को माफ करने के लिए. लड़के तो आखिर लड़के ही होते हैं. और वह भी इलाहाबाद के.