ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर दुनिया भर के देश कार्बन उत्सर्जन कम करने के साथ-साथ जंगल बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे हैं. इसी कड़ी में भारत में भी प्रयास हो रहे हैं. कई राज्यों में आमलोग पौधारोपण के लिए आगे आए हैं. इसका असर यह हुआ है कि शहरों और ग्रामीण इलाकों में बड़े स्तर पर पौधारोपण हुआ है. इसमें दिलचस्प बात यह सामने आई है कि भारत में अब जंगलों से बाहर जंगल बढ़ रहे हैं.
हालांकि, हाल ही में सामने आई इंडिया स्टेट ऑफ फ़ॉरेस्ट रिपोर्ट 2019 में भी यह कहा गया है कि पिछले दो सालों में देश में 3,976 वर्ग किमी जंगल बढ़े हैं. लेकिन भारत सरकार की इस रिपोर्ट पर कई सवाल भी उठ रहे हैं. ऐसा इसलिए क्योंकि जंगल बढ़ा या कम हुआ इसकी मैपिंग रिमोट सेंसिंग से की जाती है और सेंसिंग डाटा 100 प्रतिशत एक्यूरेट नहीं होता है.
जंगल के बाहरी इलाकों के पेड़ों की भी कर लेता है गिनती...
फ़ॉरेस्ट सर्वे ऑफ़ इंडिया के डायरेक्टर जनरल डॉक्टर सुभाष आशुतोष ने आजतक को बताया कि जंगल की मैपिंग हम रिमोट सेंसिंग से करते हैं. इससे जंगल के बढ़ने और घटने का डाटा हमारे पास आता है, लेकिन यह डाटा 100 प्रतिशत सही नहीं होता है. दरअसल, रिमोट सेंसिंग उन पेड़ों की भी गिनती कर लेता है जो जंगल के बाहरी इलाकों में होते हैं और जो प्लांटेशन ड्राइव के तहत कुछ समय पहले ही रोपित किए गए होते हैं.
डॉक्टर सुभाष आशुतोष ने आगे बताया कि इन दिनों राज्यों में पेड़ लगाने की होड़ मची हुई है. जिस कारण बड़ी तादाद में रिमोट सेंसिंग में पेड़ों की गिनती हो जाती है, जो असल में जंगल का हिस्सा नहीं होते हैं. इसके अलावा कृषि वानिकी (Agroforestry) को भी गांवों में बढ़ावा मिलने के कारण रिमोट सेंसिंग उनकी मैपिंग कर लेता है.
जंगल के बाहर बढ़ रहे जंगल...
पौधारोपण की संस्कृति के कारण भारत के शहरी और ग्रामीण इलाकों में जंगलों से बाहर जंगल बढ़ गए हैं. 2017 में जंगल से बाहर 1,94,507 वर्ग किमी जंगल था जो अब बढ़कर 1,98,813 वर्ग किमी हो गया है. यानी कि शहरी और ग्रामीण इलाकों में जंगल 4306 वर्ग किमी बढ़ा है.
घट रहा है नेचुरल फ़ॉरेस्ट एरिया...
जंगल की मैपिंग तीन तरह से होती है. इसमें पहला है बेहद घने जंगल (Very Dense Forest), मध्यम दर्जे के घने जंगल (Moderate Dense Forest) और खुले जंगल (Open Forest). रिपोर्ट का आंकलन किया जाए तो बेहद घना जंगल 1116 वर्ग किमी हुआ है. जबकि मध्यम दर्जे के घने जंगल 815 वर्ग किमी घटे हैं. वहीं, खुले जंगल 330 वर्ग किमी घटे हैं.
क्या मियावाकी तकनीक ने बढ़ाए जंगल के बाहर जंगल...
कई शहरों में जापान की मियावाकी तकनीक से पेड़-पौधे लगाए जा रहे हैं. अब तक केरल, महाराष्ट्र, उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश समेत कई राज्यों में मियावाकी तकनीक से पौधारोपण किया जा रहा है. वैज्ञानिकों का मानना है कि मियावाकी तकनीक से छोटे-छोटे पौधों से लेकर बड़े पौधे एक ही प्लॉट में रोपित करके इलाके को हराभरा किया जा सकता है.
इस बारे में उत्तराखंड के हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान केंद्र के मदन सिंह बिष्ट का कहना है कि मियावाकी तकनीक का इस्तेमाल भारत में कई जगह हो रहा है. हल्द्वानी में वन अनुसंधान केंद्र ने 60 प्रजातियों के चार प्रकार के करीब 720 पौधे इस तकनीक के जरिए लगाए हैं जिन पर शोध कार्य चल रहा है, उम्मीद की जा रही है कि इस तकनीक के जरिए हो रहे शोध से नए परिणाम सामने आएंगे जो आने वाले दिनों में आपदा ग्रस्त क्षेत्रों में बहुत बेहतर कारगर साबित हो सकते हैं.
वहीं, इस बारे में बोटानिस्ट शिव दत्त तिवारी ने बताया कि मैदानी इलाकों में तो मियावाकी तकनीक के परिणाम सही आए हैं. इसी को देखते हुए पहाड़ी इलाकों में मियावाकी तकनीक को पहाड़ों पर इस्तेमाल किया जा रहा है. केरल से लेकर उत्तराखंड तक मिनी जंगल तैयार किए जा रहे हैं. बड़े पैमाने पर यह काम हो रहा है जिसका असर आने वाले वक्त में दिखाई देगा.