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यौन उत्पीड़न के मामले में न्यायाधीश पीड़ित के नाम का न करें खुलासा : अदालत

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में फैसला सुनाते समय न्यायिक अधिकारियों को पीड़ितों के नाम का जिक्र नहीं करना चाहिए और उनकी प्रतिष्ठा बचाने के लिए उनकी पहचान का खुलासा करने से बचना चाहिए.

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दिल्ली हाई कोर्ट
दिल्ली हाई कोर्ट

दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यौन उत्पीड़न के मामलों में फैसला सुनाते समय न्यायिक अधिकारियों को पीड़ितों के नाम का जिक्र नहीं करना चाहिए और उनकी प्रतिष्ठा बचाने के लिए उनकी पहचान का खुलासा करने से बचना चाहिए. न्यायमूर्ति एस पी गर्ग ने यह बात तब कही जब छेड़छाड़ के एक मामले में एक न्यायाधीश और एक जिला एचं सत्र न्यायाधीश ने अपने आदेशों में पीड़ित के नाम का जिक्र कर दिया.

प्रतिष्ठा के लिए गुप्त रखा जाए नाम
अदालत ने कहा, 'यह पाया गया है कि 21 अक्तूबर 2013 को दिए गए फैसले में पीड़ित के नाम का जिक्र किया गया है. निचली अदालत से फैसले में पीड़ित के नाम का संकेत देने की अपेक्षा नहीं थी.' आगे अदालत ने कहा, 'यह गलती जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने भी कर दी. पीठासीन अधिकारियों को ऐसे मामलों में फैसला देते समय पीड़ित की प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए उनकी पहचान का खुलासा करने से बचना चाहिए.'

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दोषियों ने लगाई अर्जी
साथ ही अदालत ने एक व्यक्ति की वह पुनरीक्षण याचिका भी खारिज कर दी जिसमें उसने मजिस्ट्रेटी अदालत द्वारा खुद को दोषी ठहराए जाने के खिलाफ अपनी अपील पर जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा जुलाई 2014 को दिए गए फैसले की वैधता को चुनौती दी थी. मजिस्ट्रेटी अदालत ने उसे भारतीय दंड संहिता की धारा 354 (छेड़छाड़) के तहत दोषी ठहराया था. दोषियों ने अपनी अपील में कहा, 'निचली अदालत ने अपनी न्यायिक सोच विचार के बिना और रिकॉर्ड के तौर पर दोषियों द्वारा पेश किए गए तथ्यों एवं दस्तावेजों पर गौर किए बिना ही आदेश (दोष सिद्धि एवं सजा) पारित कर दिया. अदालत ने शिकायतकर्ता की बात पर गलत ढंग से ध्यान दिया है.' दोषियों ने अपनी अपीलों के लंबित होने के दौरान जमानत की मांग की है.

निर्भयाकांड से पहले हुई लूट का मामला
एक किशोर समेत छह लोगों ने 16 दिसंबर 2012 की रात को दक्षिण दिल्ली में एक चलती बस में 23 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार और निर्मम व्यवहार से पहले राम आधार नामक एक बढ़ई को लूटा था. सामूहिक बलात्कार का शिकार बनी लड़की को इस घटना के 13 दिन बाद सिंगापुर के अस्पताल में इलाज के लिए शिफ्ट किया गया था. वहां उसने दम तोड़ दिया था. लूट के मामले से जुड़े आरोपपत्र के अनुसार, पुलिस ने आरोप लगाया था कि बस चालक राम सिंह, उसके भाई मुकेश, विनय, पवन और अक्षय ने किशोर के साथ मिलकर 35 वर्षीय बढ़ई को बस में चढ़ने के लिए फुसलाकर उसका मोबाइल फोन और 1500 रूपए लूट लिए थे.

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दोषियों की सजा पर चल रही है सुनवाई
सामूहिक बलात्कार और हत्या के मामले में एक निचली अदालत ने मुकेश, विनय, पवन और अक्षय को 10 सितंबर 2013 को मौत की सजा सुनाई थी. दिल्ली उच्च न्यायालय ने 13 मार्च 2014 को इस सजा की पुष्टि कर दी थी. दोषियों की अपीलें उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित हैं. छह में से एक आरोपी राम सिंह ने 11 मार्च 2013 को तिहाड़ जेल में कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी, जिसके बाद उसके खिलाफ चल रही कार्रवाई को बंद कर दिया गया था.

दोषियों में शामिल था नाबालिग भी
किशोर न्याय बोर्ड ने लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार और फिर उसकी हत्या के मामले के नाबालिग दोषी को 31 अगस्त 2013 को एक विशेष सुधार गृह में तीन साल तक रहने की सजा सुनाई थी. नाबालिग दोषी इस समय 20 साल का है और उसे सुधार गृह से रिहा किया जा चुका है.

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