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पुखरायां ट्रेन हादसा: 4 साल पहले ही ऐसे डिब्बे बदलने की सिफारिश की गई थी

इस गाड़ी के डिब्बों पर नजर डालें तो इसका जवाब खुद-ब-खुद मिल जाता है. इस ट्रेन में आउटडेटेड तकनीक के आईसीएफ डिब्बे लगे हुए हैं. लोगों के भारी जान माल के नुकसान के लिए यही डिब्बे जिम्मेदार हैं.

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कानपुर के पास हुए ट्रेन हादसे में अब तक 149 लोगों की मौत हो चुकी है
कानपुर के पास हुए ट्रेन हादसे में अब तक 149 लोगों की मौत हो चुकी है

इंदौर-पटना एक्सप्रेस हादसे में जिस तरह का भयानक मंजर सामने आया है उसके लिए भारतीय रेलवे खुद जिम्मेदार है. पुरानी पटरियों, पुरानी तकनीक के डिब्बे और सेफ्टी सिक्योरिटी स्टाफ में भारी कमी जैसे मुद्दों को दरकिनार कर के ट्विटर के जरिए लोगों की वाहवाही लूटने की जुगत में लगा रेल मंत्रालय इस बात को कब समझ पाएगा रेल सफर करने वाले हर एक यात्री की सुरक्षित यात्रा उसकी पहली जिम्मेदारी है. इंदौर पटना एक्सप्रेस हादसे में यह कहां जा रहा है की ट्रेन पटरी से उतर गई जिससे डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ़ गए. लेकिन ट्रेन पटरी से उतरने की घटना में इतने ज्यादा लोगों का मारा जाना किसी की भी समस्या बाहर का मामला लग रहा है.

ट्रेन में आउटडेटेड तकनीक के आईसीएफ डिब्बे
इस गाड़ी के डिब्बों पर नजर डालें तो इसका जवाब खुद-ब-खुद मिल जाता है. इस ट्रेन में आउटडेटेड तकनीक के आईसीएफ डिब्बे लगे हुए हैं. लोगों के भारी जान माल के नुकसान के लिए यही डिब्बे जिम्मेदार हैं. सेफ्टी मामलों पर बनी अनिल काकोडकर समिति ने 2012 में इन डिब्बों को पूरी तरीके से भारतीय रेलवे से बाहर किए जाने की सिफारिश की थी. लेकिन डिब्बों को बदले जाने की जगह बुलेट ट्रेन के ख्वाब में डूबी सरकार अब तक पूरी तरह से ऐसा नहीं कर पाई है. कानपुर के पास पुखरायां में हुए ट्रेन हादसे में अब तक 149 लोगों की मौत हो चुकी है.

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जानिए इस तकनीक के डिब्बों में क्या है कमी
आईसीएफ कोच जिस तकनीक पर बने हुए हैं वो बीते जमाने की चीज है. रेलवे को सेफ्टी और सिक्योरिटी के मामले में सुझाव देने के लिए बनी अनिल काकोडकर कमेटी की रिपोर्ट में आईसीएफ कोच को भारतीय रेलवे से पूरी तरह से हटाने की सिफारिश की गई थी. इस सिफारिश को हुए 4 साल हो गए हैं लेकिन अभी भी रेलवे में ज्यादातर डिब्बे आईसीएफ तकनीक के हैं. इस तरह के डिब्बों में बोगी के ऊपर डिब्बा रखा होता है. बोगी और डिब्बे के बीच में जुड़ाव बहुत ज्यादा मजबूत नहीं होता है. ऐसे में जब ऐसे डिब्बों से बनी हुई ट्रेन पटरी से उतरती है तो यह डिब्बे बोगी से अलग हो जाते हैं.

कपलिंग में गड़बड़
इसका सीधा सा मतलब यह हुआ कि रेलगाड़ी के डिब्बे में पहियों समेत निचला हिस्सा अलग हो जाता है. इस वजह से इन डिब्बों के पलटने का खतरा ज्यादा होता है. इसके अलावा पुरानी तकनीक के इन डिब्बों में एक दूसरी खामी यह है कि इनकी कपलिंग स्क्रू कपलिंग है. इस वजह से जब यह डिब्बे पटरी से उतरते हैं तो एक दूसरे के ऊपर चढ़ जाते हैं इस प्रक्रिया में कोई भी दो डिब्बे एक दूसरे को चीरते हुए अंदर तक घुस जाते हैं. ऐसी स्थिति में डिब्बों में बैठे हुए यात्रियों का कचूमर निकल जाता है.

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काकोडकर कमेटी ने दिए थे 106 सुझाव
रेल मंत्रालय ने 2011 में डॉक्टर अनिल काकोडकर की अध्यक्षता में सेफ्टी रिव्यु के लिए एक हाई लेवल कमेटी का गठन किया था. अनिल काकोडकर समिति ने 2012 में अपनी रिपोर्ट सौंप दी थी. सेफ्टी रिव्यू के लिए मनीष कमेटी ने अलग-अलग मामलों में 106 महत्वपूर्ण सुझाव दिए थे. इन सुझावों में से 68 सुझाव को रेलवे ने पूरी तरीके से मान लिया था 19 जून को आंशिक तौर पर स्वीकार किया गया था और 19 सुझावों को रेलवे ने खारिज कर दिया था काकोडकर कमेटी द्वारा सुझाए के 22 सुझाव को रेलवे ने लागू कर दिया है और भी सुझाव को लागू करने के लिए अंतिम दौर का काम चल रहा है.

काकोडकर समिति ने जनरल सेफ्टी मामलों में संगठन के स्तर पर बदलाव का सुझाव दिया था और इसी के साथ वर्किंग लेवल पर कर्मचारियों को सेफ्टी के मसले पर और ज्यादा अधिकार दिए जाने की वकालत की थी. कमेटी ने रेलवे किस सेफ्टी उपकरणों में भारी कमी की स्थिति को चिंताजनक बताया था. रेल पटरियों के आसपास अवैध तरीके से बसी झुग्गी झोपड़ियों को रेलवे की सुरक्षा में एक बड़ी कमी बताते हुए काकोडकर ने इन अवैध कब्जों को जल्द से जल्द हटाए जाने की वकालत की थी. काकोडकर समिति ने निष्कर्ष निकाला था रेल पटरियों के किनारे अवैध कब्जे रेल यातायात के लिए एक बड़ा खतरा है इनकी वजह से रेल गाड़ियों के दुर्घटनाग्रस्त होने की स्थिति में जान माल का भारी नुकसान हो सकता है.

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कमेटी ने ये अहम सुझाव भी दिए थे
अनिल काकोडकर ने रेलवे के सिग्नलिंग और टेलीकम्युनिकेशन सिस्टम को अत्याधुनिक बनाए जाने की जरूरत पर जोर दिया. ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम मौजूदा रोलिंग स्टॉक और रेलवे पुलों को अपग्रेड करने पर समिति ने सुझाव दिया. इसके अलावा रेलवे की लेवल क्रॉसिंग को पूरी तरह से खत्म किए जाने की वकालत काकोडकर समिति ने की. काकोडकर समिति ने रेलवे से कहा किस व्यक्ति के मामले में वह अपने स्टाफ को पूरी तरीके से प्रशिक्षित करें जिससे लोगों में सेफ्टी और सिक्योरिटी को लेकर जागरूकता बढे.

ये थे काकोडकर कमेटी के सबसे अहम सुझाव...
1. 2017 तक सभी मानवरहित और मानव सहित लेवल क्रॉसिंग को खत्म किया जाए. इसमें तकरीबन 50000 करोड रुपये का खर्चा आने का अनुमान था.
2. सेफ्टी से संबंधित इंफ्रास्ट्रक्चर के मेंटेनेंस के लिए 20,000 करोड़ रुपये खर्च किए जाने का सुझाव दिया गया.
3. रेलवे के लिए स्पेशल पर्पज व्हीकल के जरिए एडवांस सिग्नलिंग सिस्टम लगाने के लिए 20,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किए जाने का सुझाव दिया गया. यह सिग्नलिंग सिस्टम रेलवे के ट्रंक रूट के 19000 किलोमीटर पर लगाया जाना था.
4- सबसे महत्वपूर्ण सुझाव था की देशभर में रेलवे के सभी पुरानी तकनीक के डिब्बों को बदल कर एलएचबी टाइप के सुरक्षित डिब्बों में तब्दील किए जाने की सिफारिश. ऐसा किए जाने में तकरीबन 10 हजार करोड़ रुपये का खर्चा आने का अनुमान लगाया गया था.

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काकोडकर कमेटी के सुझावों के लागू किए जाने में तकरीबन एक लाख करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्चा आने का अनुमान लगाया गया था. इस भारी-भरकम धनराशि को इकट्ठा करने के लिए केंद्र सरकार से मदद और रेल यात्रियों पर सेफ्टी सेस लगाए जाने का सुझाव भी दिया गया था.

 

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