सारी दुनिया इबोला नामक महामारी के बेरोकटोक फैलने से घबरा रही है. यह लाइलाज है. इसका वायरस छींकने, खांसने या किसी भी तरह के शारीरिक स्राव से, यहां तक कि मृत शरीर से भी फैलता है. फरवरी 2014 से अब तक यह 4,500 लोगों की जान ले चुका है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने दिसंबर की शुरुआत तक हर हफ्ते इससे ग्रस्त 10,000 नए मामलों का अंदेशा जताया है. लेकिन इबोला से जुड़ी आशंकाओं के बारे में दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक डॉ. एमसी मिश्र कहते हैं, ''पहले इबोला को भारत में आने तो दीजिए. आप अभी से इतना क्यों घबरा रहे हैं?
कहां से आया इबोला
यह महामारी अफ्रीका में दक्षिण-पूर्वी गिनी के ग्युक्केदो गांव से फैली, जहां दिसंबर 2013 में इससे ग्रस्त दो साल के
बच्चे की मौत हो गई. यह इबोला से पहली मौत मानी जाती है इसलिए उसे 'चाइल्ड जीरो' कहा गया. वायरस का नाम भी इबोला नदी घाटी के नाम पर रखा गया क्योंकि इसका पहला मामला
यहीं दर्ज हुआ था.
यह वायरस 1976 से ही समय-समय पर उभरता रहा है. इस बीमारी की जड़ अफ्रीका के सांस्कृतिक रीति-रिवाजों में बताई जाती है यानी उनके भोजन के तौर-तरीकों से लेकर मृत्यु के रिवाजों से इसका प्रसार होता है. वहां हिरण, चिंपांजी, चमगादड़, चूहे, सांप जैसे जंगली जानवरों के मांस से व्यंजन बनाए जाते हैं. लेकिन जानवरों में इस बीमारी के वायरस भी हो सकते हैं. 'चाइल्ड जीरो’ का परिवार चमगादड़ों का शिकार किया करता था. अफ्रीका में मृत्यु के रस्म-रिवाजों यानी शव को नहलाने, स्पर्श करने और चूमने की प्रथा से भी इबोला फैलता है.
कितना तैयार भारत
इबोला वायरस की खोज करने वाले लंदन स्कूल ऑफ हाइजीन ऐंड ट्रॉपिकल मेडिसिन के निदेशक, प्रोफेसर पीटर पियोट के मुताबिक, भारत जैसे सघन आबादी
वाले देश में संक्रमण का एक मामला भी खौफनाक मंजर ला सकता है. विदेश में काम कर रहे भारतीय संक्रमण के बड़े स्रोत हो सकते हैं. कोई संक्रमित व्यक्ति वायरस इन्क्यूबेशन पीरियड
यानी 21 दिन के भीतर स्वदेश लौटता है तो महामारी को बुलावा दे सकता है. 2009 में भारत में स्वाइन फ्लू इसी तरह फैला था. तब 23 साल का एक संक्रमित लड़का अमेरिका से हैदराबाद
आया था. पियोट कहते हैं, 'भारत में डॉक्टर और नर्स अमूमन रक्षात्मक ग्लब नहीं पहनते. वे फौरन संक्रमण के शिकार हो सकते हैं और उसके फैलने का कारण बन सकते हैं.' लेकिन भारत
इबोला से निबट पाएगा, यह विश्वास स्वाइन फ्लू की रोकथाम के लिए अपनाए गए तरीकों से आया है. डॉ. मिश्र कहते हैं, ''हमारे पास आइसोलेशन में रखने की व्यवस्था है. संक्रमण का इलाज
है. सुरक्षित पहनावा और प्रशिक्षित कर्मी भी हैं. हमारे डॉक्टर एचआइवी या हेपाटाइटिस सी के मामलों में नियमित सर्जरी करते हैं.'
बढ़ रहा जोखिम
इस महामारी का खतरा हर रोज बढ़
रहा है. हार्वर्ड ग्लोबल हेल्थ इंस्टीट्यूट के निदेशक तथा हार्वर्ड स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में इंटरनेशनल हेल्थ के प्रोफेसर डॉ. आशीष झा ई-मेल इंटरव्यू में कहते हैं,'पश्चिम अफ्रीका में संक्रमण की
यही दर जारी रही तो आशंका है कि जल्द ही इसके मामले भारत में पहुंच जाएंगे.' लेकिन अच्छी खबर यह है कि डब्ल्यूएचओ ने जिन 15 देशों में आपात स्थिति की चेतावनी जारी की है, उनमें
भारत का नाम नहीं है. अफ्रीका में इबोला के फैलाव के सघन क्षेत्रों—सियरा लियोन, गिनी और लाइबेरिया—से हवाई यात्रियों की आवाजाही के मामले में भारत में जोखिम कम है. हवाई यात्रियों के
जरिए संक्रमण की आशंका होती है.
अलग तरह का वायरस
एम्स के वायरोलॉजिस्ट डॉ. ललित डार कहते हैं, 'घबराने की जरूरत नहीं है. हवा से फैलने वाले वायरस ज्यादा घातक होते हैं लेकिन इबोला हवा के जरिए नहीं फैलता. यह इतना ही संक्रामक
होता तो अब तक 30,000 से 40,000 तक मौत हो जातीं. इबोला को फैलने के लिए किसी प्रवेशद्वार की जरूरत होती है मसलन कोई घाव या खरोंच. कोई मरीज के स्राव के स्थान जैसे नाक,
आंख, मुंह को छू ले तो यह फैलता है.'
सतर्क भारत
अगस्त के शुरू से ही भारत के 19 हवाई अड्डों पर 'इबोला ड्रिल’ जारी है. भारत अब तक 22,000 यात्रियों की जांच कर चुका है और
करीब 450 संदिग्ध लक्षण वालों का इलाज कर चुका है. जिनमें लक्षण दिखते हैं, उन्हें हवाई अड्डे पर ही आइसोलेशन कक्ष में रखा जाता है और जो लोग किसी इबोला मरीज से किसी तरह से
जुड़े रहे हैं उनकी सघन निगरानी की जाती है. स्वास्थ्य मंत्रालय ने जिला अस्पतालों में डॉक्टरों और नर्सों के प्रशिक्षण के लिए इबोला मास्टर क्लासेज भी शुरू की है.