बिहार की तरह महाराष्ट्र में भी चारा घोटाला जैसा मामला सामने आया है. इंडिया टुडे के अंडर कवर रिपोर्टर ने महाराष्ट्र में उन गैर सरकारी संगठनों (एनजीओ) का खुलासा किया है जिन्होंने किसानों के मवेशियों के लिए सरकार की ओर से उपलब्ध कराए गए चारे को अपने लाभ के लिए बेच दिया. इंडिया टुडे के खुलासे के बाद अब स्थानीय प्रशासन उन कैंपों की जांच करा रहा है, जिनमें घोटाले की बाद सामने आई है.
औरंगाबाद के डिविजनल कमिश्नर सुनील केंद्रकर ने शुक्रवार को इस मामले पर एक उच्च स्तरीय बैठक बुलाई. गौरतलब है कि प्रशासन की आंख तब खुली जब इंडिया टुडे की टीम ने इस घोटाले का पर्दाफाश किया.
सूत्रों का कहना है कि डिविजनल कमिश्नर ने बीड जिले के कलेक्टर को तलब किया है कि किस तरह से कुछ एनजीओ मवेशी रखने वाले किसानों को राहत देने के लिए तय सरकारी फंड गटक जा रहे हैं. कमिश्नर ने यह भी पूछा है कि बीड के पशुधन कैंपों में गायों के चारे की आपूर्ति के लिए निर्धारित एनजीओ कैसे हेराफेरी कर मुनाफा कमा रहे हैं और जिन्हें लाभ मिलना चाहिए, उन तक राहत पहुंच ही नहीं पा रही है.
यह बैठक शुक्रवार देर शाम तक चली और सूत्रों ने बताया कि इंडिया टुडे के खुलासे के बाद शिविरों की जांच के बारे में चर्चा की गई. बैठक में घोटालेबाजों पर कार्रवाई करने की एक और योजना पर भी चर्चा की गई.
पर्दाफाश देखने के बाद, बीड के जिला कलेक्टर आस्तिक कुमार पांडेय ने इंडिया टुडे टीवी के साथ संपर्क किया और आश्वासन दिया कि जांच में उजागर होने वाले गैर सरकारी संगठनों और शिविरों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.
आस्तिक कुमार पांडेय ने यह भी कहा कि जिला अधिकारियों को दिखाए जा रहे फर्जी रिकॉर्ड की जांच के लिए एक समिति बनाई जाएगी और शिविरों के लिए भुगतान जारी नहीं किया जाएगा. उन्होंने कहा कि जो एनजीओ इन शिविरों से सम्मानित किए गए, उन्हें ब्लैकलिस्टेड किया जा सकता है.
इंडिया टुडे की जांच से सामने आया है कि कैसे कुछ एनजीओ मवेशी रखने वाले किसानों को राहत देने के लिए तय सरकारी फंड को डकार रहे हैं. राज्य के पशुधन कैंपों में गायों के चारे की आपूर्ति के लिए निर्धारित एनजीओ कैसे इस काम में हेराफेरी से अपनी और अपने राजनीतिक आकाओं की जेबें गर्म कर रहे हैं.
Exposed: महाराष्ट्र में भी बिहार जैसा चारा घोटाला, चारे की रकम डकार रहे हैं घोटालेबाज
2019 मार्च की शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार ने ऐसी सुविधाएं शुरू करने का ऐलान किया था, जहां किसान अपने मवेशियों की खुराक के लिए सहायता ले सकें. अधिकारियों के मुताबिक जून तक करीब 1,635 चारा कैंप बनाए गए थे, जिससे 11 लाख मवेशियों की मदद की जा सके. पशुधन सहायता 9 से 18 किलोग्राम प्रति मवेशी के हिसाब से 50 रुपये से 100 रुपये के बीच तय है. एक सुविधा केंद्र में अगर एक हजार मवेशियों को हैंडल किया जाए तो ये राशि एक लाख रुपए प्रतिदिन बैठती है.
इंडिया टुडे की जांच से खुलासा हुआ कि इन सुविधा कैंपों से जुड़े कई संस्थान बीजेपी और शिवसेना के नेताओं या उनके विश्वासपात्रों की ओर से मैनेज किए जाते हैं. ऐसे कुछ संस्थान छद्म नामों से भी चलाए जाते हैं. हैरानी की बात है कि ये संस्थान खुद को गैर मुनाफा सिद्धांत पर चलने वाले बताते हैं.