उरी हमले के बाद बने हालात को देखते हुए सरकार पर पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई के लिए लगातार दबाव बना हुआ है. इसी दवाब के चलते सरकार पाकिस्तान के साथ हुई इंडस वॉटर ट्रीटी को रिसीव करने पर विचार कर रहा है. जल संसाधन मंत्रालय इसको लेकर मंत्रालय में कई दौर की बैठकें भी हो चुकी हैं.
मंत्रालय के सूत्रों के हवाले से पाकिस्तान के साथ जो पानी को लेकर संधि हुई है, उसको रिव्यू करने के बाद कोई फैसला लेगा. भारत यह मानता है कि जब यह समझौता किया गया था कि भारत के हितों को उस टाइम ध्यान में नहीं रखा गया. इसलिए अब इसकी समीक्षा करना जरूरी हो गया है. इसी को ध्यान में रखते हुए जल संसाधन मंत्रालय ने इस समझौते को रिव्यू करने के लिए कई बैठकें की है. भारत का मानना है कि पानी को लेकर जो भारत का हक है, उसको नजरअंदाज किया गया है और उसको ठीक किया जाएगा.
उरी के हमले के बाद से यह मांग एक बार फिर तेज हो गई है कि भारत को पाकिस्तान जाने वाली सिंधु इलाके की नदियों का पानी रोक देना चाहिए. 19 सितंबर 1960 को प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति जनरल अयूब खान ने इस पर दस्तखत किए थे. इसके तहत भारत, पाकिस्तान को अपने इलाके से होते हुए जाने वाली सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों का 80 फीसदी पानी देता है. भारत को इन नदियों के सिर्फ 20 फीसदी पानी के इस्तेमाल की इजाजत है.
इस बीच जम्मू कश्मीर के उप-मुख्यमंत्री निर्मल सिंह ने भी सिंधु जल समझौता को रिव्यू करने की मांग की है. उसका कहना है कि जम्मू कश्मीर की जनता भी मानती है कि इस समझौते से नुकसान हुआ है. इधर जल संसाधन मंत्रालय ने भी इस समझौते को लेकर कई दौर की बैठक की है. सरकार का मानना है कि जब यह 1907 में समझौता किया गया था उस वक्त देश की जनता के हितों को नजरअंदाज किया गया था.
जम्मू कश्मीर के उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह का कहना है पाकिस्तान के खिलाफ ठोस कार्रवाई करनी चाहिए जिस ढंग से पाकिस्तान पागलपन कर रहा है इस बार जरूर होगी केंद्र सरकार जो भी कदम उठाने को उठा रही है और जरूरत पड़ने पर और भी उठाएगी सिंधु जल समझौते के बारे में निर्मल सिंह का कहना है कि जम्मू कश्मीर के लोग यही मानते हैं कि इस को रिव्यू किया जाना चाहिए इस पर कार्रवाई होनी चाहिए निर्मल सिंह का कहना है कि सिंधु जल समझौता से जम्मू कश्मीर का नुकसान हुआ है यही वहां की जनता मानती है.
इसी समझौते को लेकर अब यह सवाल उठ रहा है कि भारत पाकिस्तान जैसे पड़ोसी को ज्यादा पानी कैसे दे सकता है. आमतौर पर ऐसे समझौतों में 50-50 का बंटवारा होता है. लेकिन भारत के तब के प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 80 फीसदी पानी पाकिस्तान को देने के समझौते पर खुद कराची जाकर दस्तखत किए थे.
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समझौते की वजह से पूरे जम्मू-कश्मीर में पनबिजली परियोजनाएं लगाना मुश्किल है, जो परियोजनाएं अभी चल रही हैं उनमें भी पानी को रोककर डैम नहीं बनाया जा सका है. अगर इन नदियों के पानी का इस्तेमाल भारत भी कर सकता तो इससे पूरे जम्मू-कश्मीर और आसपास के राज्यों में खुशहाली आती. अगर इन पर बिजलीघर बनते तो हजारों मेगावॉट बिजली पैदा की जा सकती थी, जिससे पूरे देश का फायदा होता.
जानकारों का यह भी मानना है कि भारत चाहे तो सिंधु जल समझौते को री-निगोशिएट यानी दोबारा बातचीत का प्रस्ताव रख सकता है. समय और हालात के हिसाब से दुनिया के कई देश ऐसे कदम उठाते रहे हैं. शुक्रवार जम्मू कश्मीर में बढ़ती आबादी की वजह से पानी की मांग कई गुना बढ़ चुकी है. अगर यह पानी राज्य के काम आए तो इससे वहां अधिक बिजली पैदा होगी, खेती का विकास होगा और रोजगार के नए मौके पैदा होगा.
जानकारों का यह भी मानना है कि सिंधु क्षेत्र की ही तीन पूर्वी नदियों सतलज, ब्यास और रावी के पानी का भी बड़ा हिस्सा आज भी पाकिस्तान जा रहा है. जबकि संधि के तहत इन छोटी नदियों का पानी पाकिस्तान को देना जरूरी नहीं है. भारत चाहे तो आराम से डैम बनाकर इन नदियों का पूरा पानी रोक सकता है. अभी यहां इंदिरा गांधी कैनाल, सतलज-यमुना लिंक नहर और थिएन डैम जैसी परियोजनाएं चल रही हैं. जरूरी है कि इन तमाम प्रोजेक्ट्स को जल्दी से जल्दी पूरा किया जाए ताकि पूरा पानी अपने देश के लिए काम आ सके. इंडस वॉटर ट्रीटी को खत्म करने के के लिए सरकार पर दबाव बन रहा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र नरेंद्र मोदी को यह टरीटी खत्म कर देनी चाहिए ताकि पाकिस्तान को सबक सिखाया जा सके.