प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में साझेदारी के लिए एक वैश्विक केंद्र स्थापित करने की मंगलवार को घोषणा की जो मूलत: सुरक्षित, परमाणु प्रसार निरोधक और सतत डिजाइन प्रणालियों के अनुसंधान और विकास कार्य के लिए समर्पित होगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की मेजबानी में आयोजित परमाणु सुरक्षा सम्मेलन में सिंह ने कहा कि उन्नत परमाणु ऊर्जा व्यवस्था अध्ययन, परमाणु सुरक्षा, विकिरण सुरक्षा और स्वास्थ्य सुविधा, कृषि तथा खाद्य के क्षेत्र में रेडियो आइसोटोप (समस्थानिक) और विकिरण प्रौद्योगिकी के उपयोग पर चार विद्यापीठ इस केंद्र में स्थापित होंगे. सिंह ने जैसे ही केंद्र की स्थापना की घोषणा की राष्ट्रपति ओबामा ने हस्तक्षेप करते हुए इस पहल का स्वागत किया और कहा, ‘परमाणु सुरक्षा की दिशा में यह एक और सर्वश्रेष्ठ उपाय होगा.
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी और अन्य विदेशी सहयोगियों की मदद से इस केंद्र में अत्याधुनिक सुविधा उपलब्ध होगी. प्रधानमंत्री ने 47 देश के नेताओं से कहा कि यह केंद्र मूलरूप से सुरक्षित, परमाणु प्रसार निरोधक और सतत डिजाइन प्रणाली के अनुसंधान और विकास संबन्धी परीक्षण करेगा. सिंह ने कहा कि परमाणु विस्फोटकों या विखंडनीय सामग्री और प्रौद्योगिकी संबंधी जानकारी के सरकार से इतर तत्वों के हाथ लग जाने का खतरा विश्व के समक्ष निरंतर बना हुआ है. {mospagebreak}
उन्होंने कहा कि भारत उसके समक्ष मौजूद खतरों के बारे में दूसरे देशों की ही तरह बेहद चिंतित है. सिंह ने खेद जताया कि वैश्विक अप्रसार व्यवस्था परमाणु प्रसार को रोक पाने में नाकाम रही क्योंकि प्रसार तंत्र चोरी छिपे विकसित हुआ और इसके नतीजतन खासकर भारत सहित सभी देशों के लिये असुरक्षा का माहौल निर्मित हुआ. उन्होंने कहा, ‘हमें अतीत की गलतियों से सबक लेना होगा और इनकी पुनरावृत्ति रोकने के लिये प्रभावी उपाय करने होंगे.’
प्रधानमंत्री ने रेखांकित किया कि संवदेनशील तथा अमूल्य सामग्री और प्रौद्योगिकी आतंकवादियों और तस्करों के हाथ लगने के खतरे को दूर करने के लिये विश्व समुदाय को हाथ मिलाना होगा. उन्होंने जोर दिया, ‘परमाणु वस्तुओं की अवैध तरीके से तस्करी में संलिप्त होने वाले व्यक्तियों और समूहों को कतई बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिये.’ सिंह ने कहा कि परमाणु सुरक्षा सुनिश्चित कराने की प्राथमिक जिम्मेदारी राष्ट्र के स्तर पर होती है. {mospagebreak}
सिंह ने कहा, ‘लेकिन राष्ट्रीय जिम्मेदारी के साथ ही राष्ट्रों का जिम्मेदाराना बर्ताव भी होना चाहिये. अगर ऐसा न हो तो यह सिर्फ नारा भर रह जाता है. सभी देशों को अंतरराष्ट्रीय बाध्यताओं का ईमानदारी से अनुपालन करना चाहिये.’ उन्होंने कहा कि परमाणु आतंकवाद का खतरा परमाणु हथियारों को जल्द खत्म करने के मुद्दे को अधिक तत्परता दर्शाने वाला विषय बना देता है. सिंह ने कहा कि वैश्विक अप्रसार को अगर सफल होना है तो उसे विश्वव्यापी, व्यापक और भेदभावरहित होना होगा तथा उसे संपूर्ण परमाणु निरस्त्रीकरण से जोड़ना होगा.
प्रधानमंत्री ने कहा कि हम इस तथ्य का स्वागत करते हैं कि विश्व हमारे इस नजरिये से लगभग रजामंद हो रहा है कि परमाणु सुरक्षा की श्रेष्ठ गारंटी यही होगी कि विश्व को परमाणु हथियारों से ही मुक्त बना दिया जाये. उन्होंने परमाणु जखीरे में कटौती के लिये अमेरिका और रूस के बीच के हालिया समझौते का स्वागत करते हुए उसे ‘सही दिशा में उठाया गया एक कदम’ करार दिया और ‘अच्छी मात्रा में परमाणु जखीरा रखने वाले सभी देशों से आह्वान किया कि वे सार्थक निरस्त्रीकरण की दिशा में और भी कटौती कर इस प्रक्रिया को अधिक गति दें.’ सिंह ने कहा कि भारत अमेरिकी राष्ट्रपति की ओर से घोषित परमाणु रुख समीक्षा से प्रोत्साहित है. {mospagebreak}
प्रधानमंत्री ने (परमाणु हथियार) ‘पहले इस्तेमाल नहीं करने’ की नीति को सार्वभौमिक बनाने का समर्थन करते हुए कहा कि राष्ट्रीय सुरक्षा तथा सुरक्षा सिद्धांत की अहमियत को प्राथमिकता के साथ कम किया जाना चाहिये. सिंह ने कहा कि भारत वैश्विक और संपूर्ण निरस्त्रीकरण के आह्वान में अगुवा रहा है, जिसकी शुरुआत पांच दशक से भी पहले जवाहरलाल नेहरू के साथ हुई थी. उन्होंने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने परमाणु हथियारों को सार्वभौमिक और भेदभावरहित तरीके से हटाने के लिये 1988 में एक ठोस कार्य योजना बनायी ताकि समयबद्ध रूपरेखा में वैश्विक स्तर पर परमाणु निरस्त्रीकरण किया जा सके.
सिंह ने कहा, ‘मैं विश्व समुदाय से इस दृष्टिकोण को साकार करने की दिशा में काम करने के भारत के आह्वान को एक बार फिर दोहराता हूं.’ वर्ष 2006 में भारत ने परमाणु हथियार संधि को लेकर बातचीत की पेशकश रखी थी. भारत ने निरस्त्रीकरण पर सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सत्यापित होने योग्य विखंडनीय सामग्री में कटौती करने की संधि संबंधी बातचीत में भी भागीदार बनने की इच्छा जाहिर की थी.
सिंह ने कहा कि वर्ष 2002 में भारत ने जनसंहार के हथियारों तक आतंकवादियों की पहुंच रोकने के उपायों के बारे में संयुक्त राष्ट्र महासभा में एक प्रस्ताव रखा. उन्होंने कहा, ‘हम संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 1540 प्रस्ताव और संयुक्त राष्ट्र की वैश्विक आतंकवाद निरोधी रणनीति के कार्यान्वयन का पूरा समर्थन करते हैं.’ उन्होंने कहा कि भारत का परमाणु ऊर्जा अधिनियम परमाणु सामग्री और सुविधाओं की सुरक्षा के लिये कानूनी रूपरेखा मुहैया कराता है और परमाणु ऊर्जा नियामक बोर्ड परमाणु सुरक्षा की स्वतंत्र निगरानी सुनिश्चित कराता है.
भारत परमाणु सामग्री की भौतिक सुरक्षा पर संधि और वर्ष 2005 में हुए उसके संशोधन का भी एक सदस्य है. सिंह ने कहा कि परमाणु उद्योग की सुरक्षा का बीते कुछ वर्षों का रिकॉर्ड उत्साहवर्धक रहा है. इससे लोगों में परमाणु ऊर्जा के बारे में विश्वास बहाल करने में मदद मिली है. बहरहाल, अकेली सुरक्षा पर्याप्त नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय परमाणु उर्जा एजेंसी और संयुक्त राष्ट्र के भागीदारों तथा परमाणु आतंकवाद निरोध के लिये वैश्विक पहल (ग्लोबल इनिशिएटिव टू कॉम्बेट न्यूक्लीयर टैररिज्म) जैसे अन्य मंचों के साथ काम करना, मानक उन्नत करना, अनुभव साझा करना और परमाणु सुरक्षा पर अंतरराष्ट्रीय मानदंडों का प्रभावी कार्यान्वयन सुनिश्चित कराना जारी रखेगा.