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सपा में अगर शिवपाल यादव कमजोर होते हैं तो पार्टी पर यह होगा असर

अखिलेश यादव कैबिनेट से दूसरी बार बर्खास्त होने के बाद पहली बार शिवपाल यादव का दर्द छलका है. शि‍वपाल समर्थकों को उम्मीद होगी कि पिछली बार की तरह शायद इस बार भी प्रदेश सपा अध्यक्ष की सरकार में वापसी हो जाएगी.

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श‍िवपाल के समर्थक
श‍िवपाल के समर्थक

उत्तर प्रदेश के समाजवादी कुनबे में जारी कलह के बीच शिवपाल यादव ने दावा किया है कि वो अगर चाहते तो 2003 में ही सीएम बन सकते थे लेकिन जानबूझकर उन्होंने ऐसा नहीं किया. शिवपाल ने इस दौरान अखिलेश यादव का भी जिक्र किया कि तब यानी 2003 में अखि‍लेश का कहीं अता पता नहीं था. शिवपाल ने यह भी कह दिया कि वो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पद से हटने को भी तैयार हैं.

अखिलेश यादव कैबिनेट से दूसरी बार बर्खास्त होने के बाद पहली बार शिवपाल यादव का दर्द छलका है. शि‍वपाल समर्थकों को उम्मीद होगी कि पिछली बार की तरह शायद इस बार भी प्रदेश सपा अध्यक्ष की सरकार में वापसी हो जाएगी. अगर ऐसा होता तो शि‍वपाल की पार्टी और सरकार दोनों में दखल बराबर दखल होता.

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लेकिन ऐसा नहीं हुआ. सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव ने इस मसले पर आखिरी बार बस इतना ही कहा कि कैबिनेट में वापसी होगी या नहीं, यह सीएम को तय करना है. लेकिन मुलायम ने पार्टी की बड़ी जिम्मेदारी छोटे भाई शिवपाल को सौंप दी है. मुलायम ने हाल में कहा था कि वो शिवपाल और अमर सिंह को नहीं छोड़ सकते. अब शि‍वपाल के जिम्मे पार्टी की नई रणनीति पर काम करना है.

मुलायम सिंह यादव ने बिहार की तर्ज पर उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले महागठबंधन की तैयारी शुरू की तो दूसरे दलों से मिलने-जुलने का काम शि‍वपाल को ही सौंपा. अखिलेश को भले ही युवा जोश से भरे, वोट खींचने वाले नेता के रूप में देखा जाता है. लेकिन पार्टी संगठन पर पुरानी पीढ़ी का वर्चस्व है जिसका प्रतिनिधित्व उनके चाचा शिवपाल यादव ही करते हैं. यानी महागठबंधन के सूत्रधार शिवपाल ही होंगे.

अगर शिवपाल पार्टी में किसी पद पर नहीं रहेंगे तो समाजवादी पार्टी दूसरे दलों से गठबंधन का गेम किसके सहारे खेलेगी. इसके अलावा शि‍वपाल के पार्टी में किसी बड़े पद पर नहीं रहने से जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं को जोड़े रखना मुश्किल है. क्योंकि शिवपाल के बाद समाजवादी पार्टी में कोई ऐसा बड़ा चेहरा नहीं है जो कार्यकर्ताओं को जमीन स्तर पर जोड़े रखे.

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शिवपाल की ओर से सपा प्रदेश अध्यक्ष 'त्याग' देने के बयान का अखिलेश के लिए काफी महत्व है. क्योंकि सीएम अखिलेश काफी समय से मांग कर रहे हैं कि टिकट के बंटवारे में उन्हें फैसले लेने का अधिकार दिया जाए. अगर शिवपाल के पास सपा अध्यक्ष का भी पद नहीं रहेगा, तभी अखिलेश को अगले चुनाव में अपने हिसाब से प्रत्याशी चुनने की ताकत मिलेगी.

शिवपाल यादव सपा के महासचिव अमर सिंह के करीबी हैं. अमर सिंह की वापसी से लेकर सपा कुनबे के मचे घमासान के ताजा दौर तक इस शख्स को लेकर विवाद हुआ. सीएम अखिलेश और सपा से बर्खास्त किए गए राज्यसभा सदस्य रामगोपाल यादव ने अमर सिंह पर निशाना साधा. शिवपाल फिलहाल तो सरकार से ही बाहर हुए हैं, अगर पार्टी में भी उनका कद घटा दिया गया तो अमर सिंह के अलावा अखि‍लेश खेमे के विरोधि‍यों की ताकत समाजवादी पार्टी में कमजोर होगी.

लेकिन शिवपाल की इमेज को लेकर दिक्कत भी है. शिवपाल पर भ्रष्टाचार और गुंडों-अपराधियों को संरक्षण देने के आरोप लगते रहे हैं. ऐसे में विधानसभा चुनाव से पहले शिवपाल को पार्टी से दरकिनार कर दिया जाता है तो समाजवादी पार्टी के दामन पर लगे दाग धुलने में सीएम अखिलेश यादव को आसानी होगी.

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