पहले अज्ञातवास. फिर रामलीला मैदान. उसके बाद संसद में. और फिर सड़क पर - पदयात्रा.
पहले किसानों की जमीन का मामला. फिर मछुआरों की समस्याएं. और फिर दलितों के साथ नाइंसाफी का मसला.
किसानों की समस्याओं से पहले सोनिया गांधी ने जमीन तैयार कर रखी थी. विपक्ष के साथ संसद से राष्ट्रपति भवन तक सोनिया गांधी ने मार्च भी किया था. राहुल गांधी के छुट्टी से लौटने से पहले ही रामलीला मैदान की रैली की पूरी तैयारी कर ली गई थी.
जब राहुल गांधी अपने दलित एजेंडे पर बढ़ने लगे उसके ठीक पहले सोनिया ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा. इस पत्र में सोनिया ने लिखा, "मैं आपके ध्यान में लाना चाहता हूं कि देश भर में दलितों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं. राजस्थान के नागौर जिले में जमीन विवाद में एक समुदाय के सदस्यों ने 17 दलितों को ट्रैक्टर से कुचल डाला. चार दलितों की मौत हो गई जबकि एक अन्य जख्मी है. तीन महीने पहले इसी जिले में तीन दलितों को जिंदा जला दिया गया."
सोनिया द्वारा बैकग्राउंड तैयार कर देने के बाद कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओँ की एक बेहतरीन टीम के साथ राहुल गांधी मध्य प्रदेश के महू पहुंचे. अंबडकर की जन्मस्थली में ध्यान लगाया. उसके बाद उन्हें ऐसे याद किया, "अंबेडकर दलितों और समाज के कमजोर लोगों के जीवन में रोशनी लेकर आए थे, उन्होंने जातिवाद की हजारों साल पुरानी दीवार पर जबर्दस्त चोट की. वह अत्याचार के खिलाफ विरोध के वैश्विक प्रतीक थे. महिलाओं और मजदूरों को अधिकार संपन्न बनाने और रिजर्व बैंक आफ इंडिया की स्थापना में भी उनका बड़ा योगदान था."
फिर राहुल गांधी ने शिरडी की घटना का जिक्र किया, "कोई अंबेडकर का रिंगटोन लगाता है तो उसकी हत्या कर दी जाती है." निश्चित रूप से ये घटना हैरान करनेवाली रही.
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