दक्षिण भारत की राजनीति में ओ. पनीरसेल्वम की अहमियत बनी रहती है. उत्तर भारत की सियासत में जीतन राम मांझी की हैसियत बन चुकी है . इन दोनों नेताओं को एक जैसे देखे जाने की सहज वजह तो इतनी ही है कि दोनों नेताओं को तकरीबन समान परिस्थितियों में मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंपी गई. लेकिन इन दोनों की भूमिका इतनी अहम है कि इन्हें सियासी वारिसों की दो प्रजाति के रूप में भी देखा जा सकता है.
कानूनी कारणों से एआईएडीएमके नेता जे. जयललिता की गैर मौजूदगी में तमिलनाडु की सत्ता की कमान ओ. पनीरसेल्वम को सौंपी गई तो जीतनराम मांझी को नीतीश कुमार ने निजी वजहों से बिहार का सीएम बना दिया. हालांकि, ऐसी मिसालों में राबड़ी देवी भी अनायास ही शुमार हो जाती हैं, लेकिन व्यावहारिक वजहों से वो इस सांचे में पूरी तरह फिट नहीं हो पातीं.
मोटे तौर पर तो पनीरसेल्वम और मांझी के केस एक जैसे लगते हैं, पर बारीकी से गौर किया जाए तो दोनों मामलों में ढेरों फर्क हैं. आइए समझने की कोशिश करते हैं...
1. पनीरसेल्वम ओर मांझी दोनों ही अपने नेताओं के लंबे साये तले लंबे अरसे तक राजनीतिक पाठों का अभ्यास करते रहे. पनीरसेल्वम को पता था कि अम्मा की शख्सियत के आगे वो कहीं नहीं टिकते. मांझी भी शुरुआती महीनों में इसी भाव से काम करते रहे. कोई भी कुछ पूछता तो जवाब मिलता, "पूछ लेते हैं." फिर जो हुक्म मेरे आका के सिद्धांत पर अमल होता रहा.
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