चुनाव पास है तो हर पार्टी खर्च के जुगाड़ में लगी है लेकिन कोई ये बताने को तैयार नहीं है कि इसका पैसा कहां से आया. इसलिए अब सरकार ने सूचना के अधिकार के दायरे से राजनीतिक पार्टियों को बाहर करने का फैसला लिया है और इसके लिए संसद में बकायादा एक बिल लाया जायेगा.
कांग्रेस इस समय देश की सबसे धनी पार्टी है और उसके खाते में तीन हजार करोड़ रुपये से ज्यादा जमा है. लेकिन ये पैसा किन कार्यकर्ता या चंदा देने वालों का है ये कोई नहीं नहीं पूछ सकता. पार्टियों को अपने चंदे का हिसाब न देना पड़े इसके लिए सरकार सूचना का वो कानून ही बदलना चाहती है जो उसने खुद बनाया था और सोनिया गांधी जिसका पूरा क्रेडिट लेती हैं. कांग्रेस कोर ग्रुप की बैठक में फैसला लिया गया कि सरकार इस कानून को बदलने के लिए एक प्रस्ताव लायेगी और संसद में इसे पेश किया जायेगा. इसके लिए सर्वदलीय बैठक भी होगी.
संसदीय कार्य राज्यमंत्री राजीव शुक्ला ने बताया, 'हम सारी पार्टियों की राय लेंगे और उसके हिसाब से ही कदम उठाया जायेगा.'
सरकार को ये बदलाव इसलिए करना पड़ रहा है कयोंकि मुख्य सूचना आयु्क्त ने एक फैसले में देश की सभी छह राष्ट्रीय पार्टियों को अपने दफ्तर में सूचना अधिकारी बनाने और चंदे का हिसाब देने कहा था. इनमें कांग्रेस, बीजेपी से लेकर लेफ्ट पार्टियां तक शामिल हैं. लेकिन पार्टियों का कहना है कि वो बीस हजार से ज्यादा का चंदा चेक से लेती हैं और चुनाव आयोग को इसका हिसाब देती हैं. लेकिन सब जानते हैं कि 20 हजार से कम रकम दिखाकर ही कई फर्जी नामों से एंट्री होती है.
फिर सवाल यही कि अगर पार्टियों की खाता बही इतनी ही साफ है तो बताने में ये डर क्यों. कांग्रेस में कभी कहते थे कि न खाता न बही जो सीताराम केसरी कहें वही सही. केसरी तब कांग्रेस के खजांची थे. वक्त बदल गया, केसरी नहीं रहे लेकिन हिसाब अब भी वैसे ही होता है. यही हाल हर पार्टी का है. जाहिर है राजा नहीं चाहता कि जनता जाने कि खजाने में कितना माल है.