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लालू: बेगाने तलाक में अब्‍दुल्‍ला दीवाना

बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना आपने सुना होगा. पर बेगाने तलाक़ में दीवाने होते अब्दुल्ला को देखना हो तो टीवी ऑन कीजिये और लालू प्रसाद जी को देख लीजिये. मन मयूर सावन का अंधा है, इसे हर रंग में हरा दीखता है, भरा दीखता है, नाच उठता है लालटेन की मध्धम-मध्धम रौशनी में. लालू जी के दोनों हाथ में लड्डू हैं. मुआ मुंह एक ही है. सो समझ नहीं आ रहा बाएं वाला पहले खाएं या दाएं वाला.

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बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना आपने सुना होगा. पर बेगाने तलाक़ में दीवाने होते अब्दुल्ला को देखना हो तो टीवी ऑन कीजिये और लालू प्रसाद जी को देख लीजिये. मन मयूर सावन का अंधा है, इसे हर रंग में हरा दीखता है, भरा दीखता है, नाच उठता है लालटेन की मध्धम-मध्धम रौशनी में. लालू जी के दोनों हाथ में लड्डू हैं. मुआ मुंह एक ही है. सो समझ नहीं आ रहा बाएं वाला पहले खाएं या दाएं वाला.

नीतीश और बीजेपी के अलग होने से उनको हिज्र के दिन जाते दिख तो रहे हैं पर पुरानी सहेली कांग्रेस अगर नीतीश के जद (यू) में आई तो वफ़ा और वस्ल की यूं भद पिटेगी कि अगली नस्ल भी इसके अफ़साने लिखेगी. पॉलिटिक्स के पंडित पुरोधा फरमाते हैं कि राजग के टूटने से राजद के भाग जग जाएंगे, विधान सभा चुनाव में सत्तर सीटों का नफ़ा होगा.

आंकड़े चीज़ ही ऐसी हैं, बड़े-बड़े बांकड़ों की बांछें खिल आती हैं, हालांकि भेजे को कुछ भी बुझाता नहीं है. इंडिया शाइनिंग हो या भारत निर्माण, कितना समझाया पर आपको कितना बुझाया. उल्लू बनाया बड़ा मज़ा आया. एक पालिश करते रहे, टीवी के स्क्रीन पर भारत चमकाते रहे. जीत कर आएंगे, आंकड़े बताते रहे. चुनाव के नतीजे में जनता की तरफ से एक संदेसा आया: उल्लू बनाया बड़ा मज़ा आया.

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इस बार कांग्रेस भारत निर्माण कर रही है. चमकने के बाद भसक गई थी भारत माता, तो उनका पुनर्निर्माण कर रहे हैं. अगर पुनर्निर्माण कर रहे हैं तो हो रहा भारत निर्माण क्यूं कह रहे हैं? सवाल लाजिमी है, कोरी कल्पना नहीं है? पैंसठ साल से बैठे हैं जनाब, अभी भी निर्माण कर रहे हैं. हम एक जेरे-तामीर इमारत को घर समझ रह रहे हैं. उस हिसाब से तो बिहार अभी नींव तक ही आया है. लालूजी गढ्ढा छोड़ गए थे, उसमें नीतीश जी ने थोड़ा ईंट-गारा डाला और क्रेडिट ले गए.

अब लालूजी परिवर्तन रैली का रेला करेंगे, जनता को बताएंगे की खुदाई नहीं करते तो बेसमेंट कहां बनता. कुछ बनाने के लिए कुछ तोड़ना पड़ता है, खोदना पड़ता है. जुदाई ही तो मिलन का मज़ा देता है. जो खुदा वह हुआ जुदा. चारा ही क्या है? बचा ही क्या है? निर्माण के लिए ही खोदा था.

जिधर देखो उधर भारत निर्माण हो रहा है. इसलिए सारा मुल्क खुदा है. चचा ग़ालिब थे बड़े समझदार. लोग शराब पीकर गड्ढे में गिरते हैं, उनको गड्ढे में बैठ कर पीना मुनासिब था. क्योंकि इस से ज्यादा कहां गिरेंगे. पी लेंगे तो ऊपर ही उठेंगे. इसलिए तो उन्होंने कहा ग़ालिब शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर, या वो जगह बता जहां पर खुदा नहीं.

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अब आप कहेंगे कि खुदा नहीं ख़ुदा. नुक्ता वाला ख़. नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल, पर आप को कौन सा ग़म है कि ऐसी कड़वी नुक्ताचीनी पर उतर आए. अमर्त्य सेन सही कहते हैं हम लफ्फाज़ हिन्दुस्तानी नुक्स ही निकाल सकते हैं. लालूजी की स्माइली ऐसी तिर रही है कि उनके कानों के बाल हवाओं की छेड़ते हैं. आप हैं कि राजद के पिछले परफोर्मेंस के नुक्तों में उलझे पड़े हैं.

पिछली बार जनता ने धोखा कर दिया, दल तो उनके साथ था. चार सीटें आईं. इतनी जगहंसाई कि रेल तो छोड़िये सोनिया जी ने खेल मंत्रालय की पेशकश नहीं की. अब इश्क भी नम्बरी हो गया. जिनके नंबर आए, वही विशम्भर आए. लौट के लालू घर आए. पर पिछले परफोर्मेंस की चाम अभी क्यों उधेड़े सरेआम. कल की बातें करेंगे तो कल ना आएगा, जो कल आएगा वही फल लाएगा.

जो कल, सब्र और क़रार लालूजी ने दिखाया है वह बेकल नेताओं में तो विरले ही पाया जाता है. नीतिश की पार्टी को तोड़ने की तमन्ना तूफानी हुई होगी, पर अल्लाह गवाह है दिल की बात कभी लब पर नहीं आई. कांग्रेस की कान के नीचे बगावत का बिगुल बजाने की बात तो दिल में ही नहीं आई.

पर हाल की सियासत में रियासत की हुकूमत ही ज़मानत है. आज नीतीश के हाथ में बागडोर है तो सबकी नज़र उसकी ओर है. कांग्रेस हमसे नज़र बचा कर उस से आंखे चार कर रही है, हमें खबर है. ख़ुदा ने ये दिन भी दिखाना था. मुंह का आना था जब दोनों हाथ में लड्डू हैं लड्डू माने शून्य, सिफ़र और जीरो.

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मनोज कुमार कह गए कि अगर जीरो नहीं दिया होता मेरे भारत ने तो चांद पर जाना मुश्किल था. गिनती एक से शुरू भले होती है पर नौ से आगे बढ़ाने के लिए जीरो का आना ज़रूरी है. लड्डू का आना ज़रूरी है. आपने शादी के लड्डू के बारे में सुना तो होगा. तलाक़ के लड्डू देखना हो तो हमारे दोनों हाथों में है. पर मुंह मुआ एक है. वह भी आया हुआ.

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