फेसबुक डेटा लीक के जरिए कैम्ब्रिज एनालिटिका कंपनी की ओर से अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव 2016 को कथित तौर पर प्रभावित करने की रिपोर्ट्स से जहां दुनिया भर में तूफान आया हुआ है, वहीं भारत में भी इसके झटके लगातार महसूस किए जा रहे हैं. चुनाव आयोग का कहना है कि वो फेसबुक डेटा लीक होने की पुष्टि होने के बाद फेसबुक के साथ अपने लगभग तीन साल पुराने रिश्तों की समीक्षा कर रहा है.
आयोग के उच्चपदस्थ सूत्रों के मुताबिक डेटा लीकेज ना हो इसके एहतियाती उपाय किए जाने ज़रूरी हैं. ये नहीं कि युवाओं के पसंदीदा प्लेटफार्म्स से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया जाए. चुनाव आयोग और फेसबुक के रिश्तों पर निगाह डालें तो इसकी शुरुआत 2015 में हुई जब आयोग ने फेसबुक पर अपना पेज बनाया.
आयोग ने फेसबुक के जरिए 18 साल के होने वाले नौजवान मतदाताओं को जागरूक करने का जोरदार अभियान चलाया. फेसबुक ने 2015 से युवा मतदाताओं को मैसेज भेजना शुरू किया. युवा मतदाता भी मुहिम से जुड़ते चले गए. पंजीकरण और आयोग के साथ फेसबुक का उत्साह सब साथ साथ बढ़ते गए.
2016 में कुछ राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव के दौरान भी फेसबुक ने नए वोटरों को उनके संवैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों की याद दिलाई. इसके अलावा फेसबुक नौजवानों को जन्मदिन पर शुभकामनाएं और बधाई देने के साथ ये भी याद दिलाने लगा कि अब वो मतदाता बनने के योग्य हो चुके हैं इसलिए फौरन वोटर रजिस्ट्रेशन कराकर वोटर कार्ड बनवा लें.
इसके बाद आया 25 जनवरी 2018 को को नेशनल वोटर्स डे पर फेसबुक ने आयोग की ओर से बधाई भेजने की जिम्मेदारी निभाई. साथ ही वोट देने के अधिकार और लोकतांत्रिक कर्तव्यों की याद भी दिलाई. लेकिन अब जब फेसबुक के संस्थापक मार्क जुकरबर्ग ने यह मान लिया है कि विदेश में चुनाव और मतदाताओं से सम्बंधित डेटा लीक हुआ है और इसकी जिम्मेदारी भी वो लेते हैं तो आयोग ने देश में फेसबुक के साथ समीक्षा करने की ठानी.
आयोग ने साथ ही गहन पड़ताल के लिए विशेषज्ञों की टीम बनाई है और उनसे इस गड़बड़ के तकनीकी और कानूनी पहलुओं पर विस्तृत रिपोर्ट मांगी है. आयोग उसी के आधार पर ज़्यादा मज़बूत सुरक्षा उपायों के साथ ही अब सोशल मीडिया की राह पर आगे बढ़ेगा. आखिर अधिकार और कर्तव्य के साथ निजता का अधिकार भी जुड़ा हो तो उसके काफी मायने हैं.