आजादी के बाद हैदराबाद कैसे हिंदुस्तान का हिस्सा बना, यह भारतीय इतिहास के कुछ दिलचस्प और सर्वश्रेष्ठ रहस्यों में से एक है. आखिर 17 सितंबर, 1948 को और उसके बाद ऐसा हैदराबाद में क्या हुआ कि भारतीय सेना ने यहां के निजाम को भारतीय संघ में मिलने और सरेंडर करने के लिए मजबूर कर दिया. ये वो वक्त था जब इस मुल्क को आजाद हुए 13 महीने बीत चुके थे.
इस दिन को तेलंगाना समर्थक हैदराबाद लिबरेशन डे के तौर पर मनाते हैं. लेकिन असल में उस वक्त यहां काफी खून-खराबा हुआ था. इस बारे में अगर इन लोगों को पता चलेगा तो उनके पास जश्न मनाने की कोई वजह नहीं रह जाएगी.
निजाम द्वारा आम जनता पर किए जा रहे अत्याचार की खबर बार-बार मिलने के बाद पंडित जवाहर लाल नेहरू और सरदार पटेल ने हैदराबाद में सेना भेजने का फैसला किया. हालांकि इसे 'ऑपरेशन पोलो' और 'ऑपरेशन कैटरपिलर' का नाम दिया गया था. लेकिन इसे 'पुलिस एक्शन' का नाम दिया गया.
रियासत में फैली अव्यवस्था को रोक पाने में निजाम की सेना नाकाम रही. लोगों ने ऐसी स्थिति का फायदा उठाया और जमकर लूट-पाट मचाई. कत्लेआम भी मचा जिसका शिकार अल्पसंख्यक लोग हुए. और इस माहौल में भारतीय राज्य ने आंखें मूंदे रखी. शोधकर्ता कैप्टन पांडु रंगा रेड्डी ने बताया, 'उस वक्त हत्या और लूट का माहौल था जिसके शिकार ज्यादा मुस्लिम व्यापारी लोग बने. ये उन जिलों के लोग थे जो वर्तमान में कर्नाटक और महाराष्ट्र का हिस्सा हैं.'
दिसंबर 1948 में 3 कांग्रेस नेताओं का एक दल हैदराबाद भेजा गया. ये नेता थे पंडित सुंदरलाल, काजी अब्दुल गफ्फार और मौलाना मिस्री. हैदराबाद में तीन हफ्ते रहकर इस दल ने ग्राउण्ड जीरो से जो रिपोर्ट भेजी वह काफी विस्फोटक थी. इस रिपोर्ट में ऐसे चौंकाने वाले तथ्य थे जो कि पूरी तरह आज भी उजागर नहीं हो पाए हैं. इसके बाद पांडु रंगा रेड्डी ने आरटीआई एक्ट के जरिए दिल्ली के नेहरू मेमोरियल म्युजियम एंड लाइब्रेरी और तीनमुर्ति हाउस में हैदराबाद पर सुंदरलाल की रिपोर्ट मांगी थी. लाइब्रेरी ने जनवरी में रेड्डी को जवाब दिया और कहा कि रिपोर्ट उनके पास उपलब्ध नहीं है.
इसके बाद इतिहासकार मोहम्मद सफिउल्लाह ने अपने सूत्रों के जरिए इस रिपोर्ट की एक कॉपी जुलाई 2013 को प्राप्त की. इतिहासकार कहते हैं कि सरकार कमेटी द्वारा किए गए काम से खुश नहीं थी. सफिउल्लाह ने कहा, 'मेरे पास उन पत्रों की कॉपी है जो कि सरदार पटेल ने काजी अब्दुल गफ्फार को लिखी थी और पूछा था कि तुम्हें हैदराबाद जाने किसने कहा था. किसने तुम्हें भारत सरकार के लिए यह रिपोर्ट देने कहा था?
पुलिस कार्रवाई भी संयुक्त राष्ट्र धोखा देने की दृष्टि से अनिवार्य रूप से गढ़ा गया था. भारत सरकार ने पुलिस कार्रवाई को मिल्ट्री एक्शन का नाम दिया. अगर ऐसा नहीं होता तो संयुक्त राष्ट्र का दखल होता और उससे फिर एक और राज्य तैयार होता. सैफिउल्लाह कहते हैं कि उससे जंग की स्थिति उत्पन्न होती.
निजाम संयुक्त राष्ट्र में जाना चाहता था, लेकिन उन्होंने हैदराबाद राज्य के लिए एक प्रसारण में 17 सितंबर को अपनी शिकायत वापस ले ली. पांडु रंगा रेड्डी मानते हैं कि इस केस की वजह से आज भी संयुक्त राष्ट्र में यह बात होती है कि 1956 में हैदराबाद राज्य को आंध्र राज्य के साथ आंध्र प्रदेश बनाने के लिए मिलाया गया था.
रेड्डी ने कहा, 'इन सब का मकसद भारत के नक्शे से हैदराबाद को हटाना था. मै मानता हूं कि 1969 में, जब तेलंगाना बनाने की मांग शुरू हुई, तब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी इसके लिए राजी नहीं हुई, क्योंकि वह जानती थी कि यह फैसला विवेकपूर्ण नहीं होगा, तेलंगाना का भौगालिक क्षेत्र भी हैदराबाद राज्य जितना ही है.
दिलचस्प बात तो यह है कि स्वतंत्र भारत का पहला इमरजेंसी सितंबर 1948 में घोषित किया गया. यह इमरजेंसी तब घोषित की गई जब 36 हजार भारतीय सैनिक हैदराबाद में प्रवेश कर चुके थे, क्योंकि सरकार आशंकित थी कि भारत के अन्य हिस्सों के अल्पसंख्यक इस अधिग्रहण को लेकर क्या प्रतिक्रिया देंगे.