खाद्य सुरक्षा बिल पर यूपीए सरकार की हड़बड़ी के बाद यह कमोबेश तय हो चुका है कि कांग्रेस समय से पहले लोकसभा चुनाव करवाएगी. सूत्रों की मानें तो सरकार 67 फीसदी गरीब जनता को मुफ्त खाने का लॉलीपॉप दिखाकर एक बार फिर चुनावी फतह की तैयारी में है. कहा जा रहा है कि मॉनसून सेशन को नवंबर से पहले नहीं बुलाया जाएगा और सेशन बुलाने के बाद अहम बिलों को पेशकर लोकसभा भंग की सिफारिश कर दी जाएगी. बीजेपी और समाजवादी पार्टी इसका अंदेशा पहले ही जता रहे थे. अपने डर को नए सिरे से आवाज देते हुए गुरुवार को लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने ट्वीट किया कि इतनी जल्दी क्यों? क्या वे जल्दी चुनाव तो नहीं कराने वाले?
इसके बाद सुषमा ने संसदीय परंपराओं की दुहाई देते हुए कांग्रेस को कोसा है कि यह अध्यादेश का तरीका संसद की अवमानना करता है. उधर यूपीए जिस समाजवादी पार्टी की बैसाखी पर टिकी है, वह भी बार बार जल्द लोकसभा चुनाव की बात कह रही है. सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने कई बार सार्वजनिक रूप से कहा है कि 2013 में ही लोकसभा चुनावों का ऐलान हो जाएगा. इस यकीन के साथ समाजवादी पार्टी अब इस जुगत में है, कि रणनीति के लिहाज से वह कौन सा मुद्दा औऱ वक्त हो, जब यूपीए से समर्थन वापसी का ऐलान किया जाए.
हालांकि कुछ राजनैतिक पंडित यह भी कयास लगा रहे हैं कि कांग्रेस अटल बिहारी वाजपेयी की 2004 की गलती नहीं दोहराएगा और अपना कार्यकाल पूरा करके ही चुनाव में जाएगी. गौरतलब है कि वाजपेयी ने कुछ राज्यों की चुनावी जीत से उत्साहित होकर और चर्चाचों की मानें तो टीडीपी नेता चंद्रबाबू नायडू के दबाव में आकर तय अवधि से कुछ महीने पहले ही आम चुनावों का ऐलान कर दिया था.
कहा जा रहा है कि एसपी के समर्थन वापस लेने की स्थिति में सरकार को जेडीयू से बाहरी समर्थन मिलने का भरोसा है. इसीलिए कांग्रेस फूड सिक्योरिटी बिल पर आक्रामक रवैया अपना रही है. गेम प्लान ये है कि जिस तरह से 2009 के लोकसभा चुनावों के पहले मनरेगा स्कीम और ऋण माफी के जरिए गरीबों के वोटों की फसल एकमुश्त काटी गई थी, उसी तरह से इस बार खाना खिलाकर वोट वसूला जाए. चूंकि मुद्दा गरीबों से जुड़ा है इसलिए कोई भी विपक्षी दल सीधे तौर पर इसका विरोध भी नहीं कर पा रहा है. बीजेपी अगर मगर कर रही है, तो एसपी किसानों के हितों की ढफली बजा रही है. इन सबके बीच विपक्ष की यह जायज शिकायत भी है कि जब पहले से ही कई राज्यों में इस तरह के एक्ट लागू हैं, तो यूपीए किस बात का क्रेडिट ले रही है.
जल्द चुनावों के कयास के पीछे एक अंदेशा विधानसभा में पटखनी मिलने पर नकारात्मक नतीजों का भी है. जिन राज्यों में इस साल के अंत में चुनाव होने हैं, उनमें राजस्थान और दिल्ली में कांग्रेस की हार कमोबेश तय मानी जा रही है. पिछले लोकसभा चुनावों में इन राज्यों में कांग्रेस का शानदार प्रदर्शन रहा था. इसके अलावा मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस अपनी चुनावी संभावनाएं बहुत बेहतर नहीं मान रही है. ऐसे में कांग्रेस के पॉलिटिकल मैनेजर ये तर्क दे रहे हैं कि विधानसभा चुनावों में हार के चलते होने वाली हाराकीरी से बचने और लहर को अपने पक्ष में करने का यही बेहतर मौका है.