ये सबसे तसल्लीबख्श दोपहर होती है. शनिवार का दिन, भरपेट भोजन और फिर दो जहीन, मशहूर और हां विटी औरतों की बात सुनना . एक मोनी मोहसिन, प्यारे पाकिस्तान से. दूसरी शोभा डे. हमारे अपने सेलिब्रिटी मेकिंग फैक्ट्री मुंबई से. मोनी मशहूर हैं अपने मजाक के लिए. मजाक जो भद्दा तो कतई नहीं होता. ये अड़ोस-पड़ोस की औरतों की बातचीत से शुरू होता है और समय, समाज, सत्य के तमाम बखिये उधेड़ता है. प्यार प्यार से. उधर शोभा डे हैं, जिनसे स्टारडस्ट के एडिटरशिप के दिनों से ही तमाम मशहूर लोग नफरत करते हैं, लल्लोचप्पो करते हैं और जिनके लिखे एक एक हर्फ पर गौर करते हैं.
खैर, किस्सा कोताह ये कि ये दोनों इंडिया टुडे कॉन्क्लेव के मुबारक मौके पर मंच पर बैठी थीं. पहले तो उन्होंने एक दूसरे को लिखे गए खत पढ़े. कुछ मुश्किलें गिनाईं. फिर इनसे सवाल जवाब किए कावेरी बामजई ने. और इस गुफ्तगू से निकले कुछ मजेदार किस्से, कमेंट्स और कहकशे. जो पेश ए नजर हैं आपके-
असीं बड़े मजाकिए हैं...
पाकिस्तान का बुरा वक्त चल रहा है. उदार बातों के लिए गुंजाइश नहीं. ऐसे में मजाकिया बने रहना बेहद जरूरी है. इससे मुश्किल वक्त सहने की, उसे बदलने की हिम्मत मिलती है. पाकिस्तानियों का सेंस ऑफ ह्यूमर गजब का है. खासतौर पर पंजाबियों को हंसना हंसाना आता है. हमारे यहां अभी भी भांड हैं. हम हर तरह का जोक कर सकते हैं. बस मौलवियों को बख्शना होता है.
कहां से आया मेरा कॉलम
मेरा फ्राइडे टाइम्स अखबार के लिए लिख गया कॉलम बहुत मशहूर हुआ. दरअसल पहले कुछ और लिखती थी. एडिटर का निर्देश था कि सीरियस सब्जेक्ट पर लाइट टोन में लिखो. पर फिर मैं बोर हो गई. मैंने कहा, अब नहीं होता. एडिटर बोला, तुम्हारे रीडर निराश होंगे. कुछ नया करो. मैं उस दिन लाहौर में एक पार्टी में गई. पार्टी हाई फाई और मैं लिटिल शाई. दो आंटी जी बात कर रही थीं. बात करतीं और कभी अपने बाल झटकतीं, झटकतीं और फिर आगे को लौटते हुए अपना हीरे का हार छूतीं. फिर एक बोलीं. यू नो, ये शहतूश ( एक बेहद महंगी किस्म का कपड़ा) का शाल है. पूरे सात यार्ड का. दो तीन थे मेरे पास. फिर सोचा एक और ले लूं. इतना कह आंटी पॉज लेती हैं. फिर पूछती हैं. तुम्हारे पास कितने हैं. दूसरी बोलती हैं. मेरे पास एक भी नहीं. मैं शॉल पहनती ही नहीं. बहुत मेड (नौकरानी) टाइप फील आता है.
ये बातचीत मेरे जेहन में अटक गई. इसी के आधार पर मैंने अपना नया पहला कॉलम लिखा. एडिटर बोले, चलेगा नहीं. पर चल गया. जब चल गया तो चहककर बोले, मैंने कमीशन किया था.
पाकिस्तान के नेताओं की हड़बड़ी
आपके यहां जो नेता सत्ता में आता है, उसे पता है कि बनाने के लिए पूरे पांच साल हैं. हमारे यहां हर वक्त डर रहता है. पता नहीं कब जनरल साहब आ जाएं. तो हर कोई हड़बड़ी में रहता है. जितनी जल्दी जितना ज्यादा बना लो, उतना ही जन्नत मिलेगी.
मेरी ख्वाहिश...
दोनों देशों के नेता मिलते हैं, अफसर मिलते हैं. लोग नहीं मिलते. लोग मिलें तो दोनों तरफ से बहुत सारी गलतफहमियां दूर हो जाएं. सबको बहुत चाह है, उत्सुकता है. हमें बिचौलिए नहीं चाहिए. लाहौर लिट फेस्ट में भारतीय लेखकों के सेशन के लिए भीड़ लगती थी. हमारे यहां के व्यापारी भारत के साथ दोस्ती के लिए बहुत उत्सुक हैं. कई एनजीओ भी अपने स्तर पर प्रयास कर रहे हैं. मेरी किताब भारत में सबसे ज्यादा बिकती है.
भारत से दुश्मनी का फायदा किसे
पाकिस्तान भारत का दुश्मन बना रहे, इस सोच और सच से सबसे ज्यादा फायदा सेना को है. उनका आधार और अस्तित्व ही इसी से है. इ्सी से उनको ताकत मिलती है.
और आखिर में एक मजेदार किस्सा
कावेरी ने सवाल पूछा. वो पीढ़ी बीत रही है, जिसके पास पार्टिशन की, उसके पहले की, साझापन की यादें थीं. शोभा ने हामी में हुंकारी भरी. मगर मोनी बोलीं. नहीं, ये गलत है कि नौजवान पार्टिशन भूल गए हैं. फिर उन्होंने किस्सा सुनाया. प्रोग्राम में आने से पहले सुबह के वक्त वह होटल के सलून में गईं. लड़की ने अच्छे से बाल संवारना शुरू किया. फिर ठहरकर पूछा. मैडम, पार्टिशन किस तरफ रखना है.
शोभा डे की भी एक फुलटॉस
मुंबई आकर नेताओं का पेट खराब हो जाता है. क्योंकि ये शहर सिर्फ फिल्म स्टारों और भयानक अमीर लोगों को ही कुछ इज्जत देता है. तो दिल्ली वाले नेता जब मुंबई में किसी पार्टी में आते हैं. तो उन्हें लगता है कि अफरा तफरी मच जाएगी. सब जी हुजूरी में जुट जाएंगी. पर कोई देखता भी नहीं. तो कुछ ही देर में नेताओं का ईगो भयानक हर्ट हो जाता है. वे पेट दर्द का बहाना कर खिसक लेते हैं.