जम्मू-कश्मीर में बीजेपी-पीडीपी के गठबंधन ने सबको हैरत में डाल दिया. वैचारिक तौर पर विपरीत धरातल पर खड़े इन दोनों दलों के गठबंधन के बाद घाटी एक दिन भी खबरों से दूर नहीं रही है. मुफ्ती सरकार की गतिविधियों पर मोदी सरकार सफाई देते नहीं थक रही है. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि यह गठबंधन टिक कितना पाएगा.
सवालः क्या बीजेपी और पीडीपी की शादी घाटी में नया मौसम लाएगी या ये शादी कुछ ही वक्त की राजनीतिक सहूलियत है.
मैं इसे शादी नहीं कहूंगी. 47 से अब तक बहुत शादी हुई हैं. शादी दो लोगों या परिवारों के बीच होती है. ये व्यक्तिगत चीज होती है. चाहे पावर इंजॉय करने की बात हो. मगर पीडीपी के मामले में ऐसा नहीं है. कांग्रेस के साथ पिछले गठबंधन के दौरान भी हमने एक महीने विचार किया. हम पार्टनरशिप चाहते थे,ऐसी कि जिससे जम्मू कश्मीर के लोगों को कुछ मिले. इसके लिए कॉमन मिनिमम प्रोग्राम मिला. लोगों का पुर्नवास, पाकिस्तान के साथ बात, राजनीतिक बंदियों की रिहाई. ये सब सकारात्मक था. उस वक्त केंद्र में वाजपेयी जी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार थी. उस वक्त मुफ्ती साहब ने हीलिंग पॉलिसी अपनाई. क्रैकडाउन, पोटा खत्म कर दिया. मगर जब अटल जी ने जमीनी हालत देखे कश्मीर यात्रा के दौरान. इंदिरा गांधी के बाद यह पहला ऐसा दौरा था, जब PM को काले झंडे नहीं दिखाई दिए. दुकानें बंद हुईं. अटल बोले हम पाकिस्तान से बात करें, इंसानियत के दायरे में बात होगी. इसलिए मैं बार बार कहती हूं कि मुफ्ती साहब की हीलिंग टच पॉलिसी ही एकमात्र सॉल्यूशन है.
सवालः क्या मोदी वाजपेयी हो सकते हैं. क्या मोदी को भी आप यही सलाह देंगी
जवाबः बीजेपी उसके बाद काफी लंबा सफर तय कर चुकी है. वह विकास की राजनीति के रास्ते पर पहले ही चल चुके हैं. हमारा गठबंधन भी इसी आधार पर है. चाहे वह जम्मू कश्मीर के स्पेशल स्टेटस की बात हो या कुछ और. कांग्रेस के 1995-96 में नरसिम्हा राव ने कहा था. स्काई इज द लिमिट ऑटोनॉमी के मामले में. अब वही कांग्रेसी बीजेपी को घेर रहे हैं.
आप समझिए, हम जम्मू कश्मीर में माहौल बदलने की कोशिश कर रहे हैं. इसमें मदद करिए.
सवालः पिछले साल आपने कहा था बीजेपी के साथ गठबंधन नहीं. वे विभाजनकारी राजनीति करते हैं. गुज्जर बनाम बनिया. मुस्लिम बनाम हिंदू. कश्मीर बनाम जम्मू. और अब आप साथ हैं
जवाबः ये इच्छा की नहीं जनादेश को समझने की बात है. उस राज्य में संवैधानिक संस्थाओँ को, चुने हुए प्रतिनिधियों को काम करने का भरपूर मौका नहीं मिला. हमने बैठकर जनादेश समझा. दो विकल्प थे. एक, कांग्रेस, एनसी के साथ जाएं. या फिर बीजेपी के साथ जाएं हमने बहुत विचार के बाद बीजेपी को चुना. क्यों. क्योंकि हमें पूरे देश का जम्मू कश्मीर के प्रति माइंडसेट बदलना था. हमें सिर्फ घाटी नहीं, पूरे राज्य का सोचना था. इसलिए हमने गठबंधन किया और एक कॉमन प्रोग्राम तय किया.
सवालः कॉमन मिनिमम प्रोग्राम विश्वास पर आधारित होता है. वह तो दिख ही नहीं रहा. मसरत आलम की रिहाई हुई. चुनाव के सफल होने का क्रेडिट हुर्रियत और पाकिस्तान को दिया गया. इन सब पर बीजेपी गुस्सा हो रही है.
जवाब- इसीलिए मैंने पार्टनरशिप कहा, मैरिज नहीं. यहां मौजूद कितने लोगों का पता था कि जम्मू कश्मीर का शुरू से एक राजकीय झंडा रहा. आज इस पर विवाद हो रहा है. जैसे कि कल मुफ्ती साहब आए और झंडा नया लगा दिया गया. आपको तो खुश होना चाहिए कि इस गठबंधन के बहाने देश को उस राज्य के बारे में पता चल रहा है. देश की संप्रभुता तो हमेशा सर्वोपरि रही है. इसीलिए वहां तिरंगा है. जब मैं माइंडसेट की बात करती हूं तो उसे हिंदू-मुस्लिम के खांचे में न बांटे. ये दशकों से कई विचारों द्वारा तैयार किया गया है. भारत का लोकतंत्र सबसे महान है. सुप्रीम कोर्ट जैसी संस्था है. मगर उसके निर्देश को भी आप चुनिंदा तौर पर बताते हैं. जब कोर्ट अफजल गुरु को फांसी देता है तो कानून है. जब वही कोर्ट मसरत आलम की रिहाई की बात करता है, तो हल्ला मचाया जाता है.
सवालः क्या चिंता होती है. मसरत को रिहा करते ही ट्विटर पर हैश टैग आ गया कि मुफ्ती मोहम्मद सईद प्रो पाकिस्तान हैं. इस सोच को कैसे काउंटर करेंगे.
जवाबः जम्मू कश्मीर में ऐसे हालत ही क्यों पैदा हों कि एक भी मसरत आलम को जेल में भेजना पड़े. आप समझिए कि ये सरकार क्या करना चाह रही है. युवाओं को अलगाववाद के रास्ते पर जाने से रोकना चाह रही है. अफवाह और असुरक्षा का माहौल खत्म करना चाह रही है. राज्यसभा में कुछ सांसद चिल्ला रहे थे. मुफ्ती 10 हजार कैदियों को रिहा करने वाले हैं.
कुल 16 प्रिजनर हैं. उसमें सिर्फ दो पत्थर फेंकने वाले हैं. अगर हम जम्मू कश्मीर को मुख्यधारा में वापस नहीं ला सकते. राहत नहीं दे सकते. तो फिर सियासत करने और सत्ता में रहने का फायदा क्या है.
मेरी ख्वाहिश तो ये थी कि मसरत आलम रिलीज होता और लोग इस पर चर्चा करते कि इस देश में यह मुमकिन है कि राज्य की गलती को कोर्ट दुरुस्त कर सकता है. मसरत आलम भले ही सार्वजनिक रूप से ये न कहता, मगर लोग कहते. देखिए इस देश में न्याय है. क्या सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करना गलत है. नहीं न, तो हमने कैसे गलत किया.
सवालः क्या हीलिंग टच के दायरे में कश्मीरी पंडित भी आते हैं. कश्मीरी पंडितों की सामूहिक हत्या करने वाले खुलेआम घूम रहे हैं. ऐसे एक भी हत्यारे को सजा नहीं हुई. उनका क्या करेंगी.
जवाबः पहली चीज, मैं यहां मसरत आलम को डिफेंड करने के लिए नहीं हूं. जब 2010 में 125 लोग मारे गए, तब केंद्र में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया था कि कांग्रेस सरकार ने हालात को ठीक से नहीं समझा. मसरत उन गलतियों का नतीजा है. स्टीरियोटाइप सिर्फ कश्मीरियों के साथ ही नहीं है. हमारे कई सिख भाई अमेरिका में नस्ली हमलों का सामना करते हैं.
मगर कुछ गुट हैं, जो खुद को मुस्लिम कहते हैं और आतंकी घटनाओं को अंजाम देते हैं. उनकी वजह से हम पर सवाल उठते हैं. मैं आईसिस पर शर्मिंदा हूं. बामियान में बुद्ध की मूर्ति नष्ट करने वाले तालिबान पर शर्मिंदा हूं. मैं हर उस शख्स की निंदा करती हूं जो बंदूक के सहारे सॉल्यूशन खोजता है. चाहे फेक एनकाउंटर हो चाहे आतंकवादी.
सवालः आप कश्मीरी पंडितों के सवालों पर जवाब नहीं दे रहीं. बिट्टा कराटे ने दर्जनों कश्मीरियों को मारा. क्या उन पर रिट्रायल होगा?
जवाबः हमारे गठबंधन के कॉमन प्रोग्राम में कश्मीरी पंडितों को राहत पुर्नवास की बात है. मेरा बचपन कश्मीरी पंडितों की गोद में बीता. मेरे बच्चों को नहीं पता. बिट्टा कराटे जैसे केसों की बात करें तो वे जेल में हैं. और ऐसे कई केस हैं. मगर उनके खिलाफ आरोप साबित नहीं हो पाए. कोर्ट में मामले टिक नहीं पाए. चाहे बिट्टा कराटे हो या फेक एनकाउंटर में मारे गए लोग. उन सबको जस्टिस की जरूरत है.
सवालः टूरिज्म को लेकर क्या करेंगी?
जवाबः मेरे पिता के दिल के काफी करीब है ये मसला. पापा राजीव गांधी सरकार में टूरिज्म मिनिस्टर थे. हम इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर कर रहे हैं. नई जगहें तैयार कर रहे हैं. इसके अलावा टूरिस्ट को ज्यादा एंगेज करने की कोशिश कर रहे हैं. एक साल का वक्त दीजिए. चीजें बदली दिखेंगी.
सवाल: घाटी में युवाओें के लिए सिनेमाघर नहीं है, कैफे नहीं हैं वो शाम में कहां जाएं?
जवाब: हमारे वक्त बहुत चीजें थीं. हम कॉलेज बंक कर मूवी देखने जाते थे. मगर आज ऐसा नहीं है. हम इसके लिए काम करेंगे. हम भी चाहते हैं कि घाटी में कैफे हों, मैक्डोनल्ड की फूड चेन हो, मल्टिप्लेक्स हों. छह साल बाद आप ये शिकायतें नहीं कर पाएंगे. मैं खुद मैक्डी फ्रीक हूं.
सवालः आर्टिकल 370 ने कश्मीर को कैसे मदद की. ये पूरे देश के साथ इंटिग्रेट नहीं हो पाया.
जवाबः ये 370 के बारे में गलतफहमी है. जम्मू कश्मीर की जमीन भारत का ही हिस्सा है न. तो फिर. ये कैसा फोबिया है. ये जम्मू कश्मीर के लोगों के लिए एक इमोशनल मसला है. आपको उनकी तकलीफ समझनी होगी. मुझे भी दुख होता है कि जब एक आर्मी का जवान मरता है. मगर जब एक 11 साल का बच्चा सेना की गोली का शिकार होता है, तब भी तो उतना ही दुख होना चाहिए. मैंने बार बार कहा कि इन निर्दोषों को मारना बंद हो. इनमें एक भी आतंकवादी होता, तो मैं सियासत छोड़ देती.
सवालः क्या मोदी वाजपेयी की तरह पीडीपी का दिल जीत पाएंगे.
मोदी और वाजपेयी की अभी तुलना ठीक नहीं. वाजपेयी की सियासत और समझ दशकों में विकसित हुई. मोदी जी को अभी एक साल ही हुआ है. फिर भी उन्होंने घाटी के मामले में दिल दिखाया है. समझ दिखाई है. राजनीतिक नफा नुकसान को पीछे रखा है. पूरे देश ने उन्हें जनादेश दिया है. तो हम उन पर यकीन क्यों न करें.