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केंद्र सरकार ने SC से कहा, 218 कोयला खदानों को फिर नीलाम किया जाए

केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह उन सभी 218 कोयला खदानों को नीलामी के जरिए फिर से आवंटित किए जाने के पक्ष में है जिनके आवंटन को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है. लेकिन साथ ही वह उसने इनमें से 40 खदानों के मामले में इससे ‘छूट’ चाहती है क्योंकि उनमें खनन हो रहा है औेर वे उनके कोयले का अंतिम इस्तेमाल करने वाले बिजली संयंत्रों के लिये तैयार हैं.

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केंद्र सरकार ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट से कहा कि वह उन सभी 218 कोयला खदानों को नीलामी के जरिए फिर से आवंटित किए जाने के पक्ष में है जिनके आवंटन को गैरकानूनी घोषित किया जा चुका है. लेकिन साथ ही वह उसने इनमें से 40 खदानों के मामले में इससे ‘छूट’ चाहती है क्योंकि उनमें खनन हो रहा है औेर वे उनके कोयले का अंतिम इस्तेमाल करने वाले बिजली संयंत्रों के लिये तैयार हैं.

चीफ जस्ट‍िस आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली बेंच के समक्ष अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने मोदी सरकार का नजरिया साफ करते हुये कहा, 'सरकार अदालत के 25 अगस्त के फैसले के साथ है. हम 218 कोयला खदानों की फिर से नीलामी करना चाहते हैं. हमें खुशी होगी यदि इनमें से करीब 40 खदानों को बचा सकें जिनमें काम हो रहे हैं और वे उत्पाद का अंतिम इस्तेमाल करने वाले संयंत्रों को आपूर्ति करने के लिये तैयार हैं.'

अटॉर्नी जनरल ने इसके साथ ही कहा कि उन 40 खदानों को, जिनके लिये आवश्यक मंजूरी विचाराधीन है और वे काम कर रही हैं, ‘एक जैसा’ नहीं मानना चाहिए और उन्हें निरस्त किए जाने से छूट दी जा सकती है. बशर्ते वे सरकार को 295 रुपए प्रति टन की दर से क्षतिपूर्ति के लिये राजी हों और इस घाटे को पूरा करने के लिये 95 रुपए प्रति टन की दर से बिजली खरीद का समझौता करने के लिये तैयार हों.'

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रोहतगी ने कहा कि 40 खदानों को ‘निरस्तीकरण के गिलोटिन’ से बचाने की जरूरत है क्योंकि बिजली आपूर्ति की कमी के संकट से जूझ रहे देश में कोयला की उपलब्धता को लेकर अनिश्चतता संयंत्रों को प्रभावित कर सकती है. उन्होंने ने कहा कि सरकार सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की कोई भी समिति बनाने के पक्ष में नहीं है. शीर्ष अदालत ने सुझाव दिया था कि इन आवंटनों को गैरकानूनी घोषित करने के फैसले के नतीजों का विश्लेषण करने के लिये सेवानिवृत्त न्यायाधीशों की समिति बनाई जाए.

सुनवाई 9 सितंबर के लिये स्थगित
शीर्ष अदालत की सुनवाई गैर सरकारी संगठन कामन काज और अधिवक्ता मनोहर लाल शर्मा की जनहित याचिकाओं से उठे मुद्दों के इर्दगिर्द ही हो रही थी. गैर सरकारी संगठन के वकील प्रशांत भूषण और वकील शर्मा का तर्क था कि चूंकि 1993 से 2010 के दौरान कोयला खदानों के आवंटन में कोई पारदर्शिता नहीं थी और इसे गैरकानूनी घोषित किया गया है, इसलिए सभी 218 खदानों का आवंटन रद्द किया जाना चाहिए.

न्यायालय ने केंद्र सरकार और तीन संगठनों कोल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन, स्पांज आयरन मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन और इंडिपेन्डेन्ट पावर प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन आफ इंडिया को हलफनामे दाखिल करने का निर्देश देते हुए इस मामले की सुनवाई 9 सितंबर के लिये स्थगित कर दी.

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गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने 25 अगस्त के अपने फैसले में 1993 से 2010 के दौरान कोयला खदानों के सभी 218 आवंटन गैरकानूनी घोषित कर दिए थे. न्यायालय ने अपने फैसले में ये आवंटन करने वाली जांच समिति की 36 बैठकों में अपनाई गई प्रक्रिया की निंदा करने के लिये हर तरह के शब्दों का प्रयोग किया था.

तीन वकील नियुक्त करने पर राजी हुआ कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने विशेष अदालत में कोयला खदान आवंटन मामले की कार्यवाही में विशेष लोक अभियोजक आर एस चीमा का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया कि उनकी सहायता के लिये सीबीआई के तीन अभियोजक दिए जाएं.

अदालत ने वीके शर्मा, संजय कुमार और एपी सिंह को इस मामले में चीमा की मदद के लिये वरिष्ठ लोक अभियोजक बनाने का अनुरोध स्वीकार कर लिया.

शीर्ष अदालत ने 25 जुलाई को सिर्फ कोयला खदानों के आवंटन से संबंधित मुकदमों की सुनवाई के लिये अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश भरत पराशर को विशेष अदालत का न्यायाधीश नियुक्त किया था. न्यायालय ने मुकदमों के लिये चीमा को विशेष लोक अभियोजक बनाया था.

फैसले में हम बहुत सचेत और सतर्क रहे हैं: कोर्ट
कोर्ट ने कहा कि कोयला खदानों के आवंटन प्रकरण में इससे जुड़े व्यक्तियों की अपराधिता के बारे में चर्चा से बचते हुये उसने ‘सचेत’ और ‘सतर्कता’ वाला फैसला सुनाया है क्योंकि सीबीआई इस पहलू की जांच कर रही है. कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह मामला सीबीआई के जांच के दायरे में है, इसलिए इसमें हमारी कोई भी टिप्पणी इस मसले पर पहले से फैसला करने समान होती.

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