भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने जब 22 जुलाई को सफलतापूर्वक अपने दूसरे मून मिशन चंद्रयान-2 को लॉन्च किया तो पूरी दुनिया के विभिन्न वर्गों से बधाई मिली. पुरी स्थित गोवर्धन मठ के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी ने भी इसरो के वैज्ञानिकों का अभिनंदन किया. मीडिया में खबरें चल रही हैं कि इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 के लॉन्च में हो रही दिक्कतों को दूर करने के लिए शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती से सलाह ली. शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती की सलाह पर वैज्ञानिकों ने वैदिक गणित से अपनी समस्या का समाधान किया.
मीडिया में चल रही खबरों की मानें तो इसरो वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-2 के लांच से पहले जुलाई महीने में स्वामी निश्चलानंद सरस्वती से परामर्श लिया था. ऐसा कुछ संदेहों को दूर करने के लिए किया गया था जिसका समाधान उस समय वैज्ञानिकों के पास भी नहीं था. शंकराचार्य के अनुसार, विष्णु पुराण (Vishnu Puran) और श्रीमद् भगवत गीता (Shrimad Bhagwat Geeta) में चंद्रमा से जल और पृथ्वी का महत्वपूर्ण संबंध है.
महाभारत (अठारह पुस्तकों में से छठी) भीष्म पर्व के अनुसार चंद्रमा का व्यास 11,000 योजन (1 योजन = लगभग 12.2 किमी) है. इसकी परिधि 33,000 योजन है. इस हिसाब से चंद्रमा का व्यास हो जाता है - 134,200 किमी और परिधि है 402,600 किमी. जबकि आप इंटरनेट पर चांद का व्यास खोजेंगे तो जवाब मिलेगा 3,474.2 किमी और परिधि 10,921 किमी. यहां गणित समझना मुश्किल है.
लेकिन आप यह जान लें कि आखिर क्या सच में इसरो वैज्ञानिक स्वामी निश्चलानंद के पास समस्या के समाधान के लिए गए थे.
नहीं... इसरो वैज्ञानिक स्वामी निश्चलानंद के पास नहीं गए थे
जब AAJTAK.IN ने पुरी स्थित गोवर्धन मठ के उच्च पदस्थ सूत्रों से इस बारे में पूछा तो सच का खुलासा हुआ. सूत्रों ने बताया कि वैज्ञानिक महाराज से मिलने आते हैं. लेकिन, चंद्रयान-2 को लेकर इसरो से कोई वैज्ञानिक नहीं आए. ये बात अलग है कि दो साल पहले इसरो के अहमदाबाद सेंटर में शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती जी का लेक्चर था. इसमें उन्होंने वैदिक गणित के महत्व को समझाया था. स्वामी जी ने बताया था कि कैसे सनातन वैदिक आर्य सिद्धांत ही आज के विज्ञान को और आगे ले जा सकता है. इसके लिए जरूरी है वैदिक गणित.
वैदिक गणित की मदद से इसरो के वैज्ञानिक देश, काल और वस्तु का आंकलन करके अपने मिशन को सफल बना सकते हैं. यहां स्वामी निश्चलानंद जी ने कहा था कि आज हम ढेरों यंत्र बना रहे हैं, लेकिन सबसे उत्कृष्ट यंत्र वही होता है जिसमें मेधा शक्ति, प्रज्ञा शक्ति, प्राण शक्ति हो. लेकिन अब तक ऐसा यंत्र मानव नहीं बना पाया है. मानव के जीवन की अनुकृति ही सर्वश्रेष्ठ यंत्र होगा. लेकिन इसके लिए जरूरी है कि विज्ञान में वेदों की मदद ली जाए. बिना वैदिक गणित के विज्ञान अधूरा है. वेद विहीन विज्ञान दरिद्रता का स्रोत होता है. लेकिन दुनिया भर के वैज्ञानिक आज इसी विज्ञान को समृद्धि बता रहे हैं.
शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती वैदिक गणित के प्रकांड विद्वान हैं. उन्होंने वैदिक गणित पर 11 किताबें भी लिखी हैं. इसके अलावा वो बार्क, आईआईटी और इसरो जैसे संस्थानों में वैदिक गणित के महत्व पर लेक्चर देने भी जाते हैं.