जम्मू-कश्मीर में जारी हिंसा के बीच सुरक्षा मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीएस) सशस्त्र बल विशेष अधिकार कानून (एएफएसपीए) को आंशिक रूप से वापस लेन और जम्मू-कश्मीर के कुछ जिलों को ‘अशांत क्षेत्र’ के दायरे से बाहर करने के बारे में सोमवार को विचार-विमर्श करेगी.
सरकारी सूत्रों ने बताया कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इन विषयों पर चर्चा के लिए इस सोमवार को सीसीएस की बैठक बुलाई है. इस विषय पर प्रधानमंत्री ने कांग्रेस की कोर ग्रुप में वरिष्ठ नेताओं, मंत्रिमंडल सहयोगियों और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ विचार विमर्श किया था.
कोर समूह ने जम्मू-कश्मीर के कुछ इलाकों को एएफएसपीए के दायरे से बाहर करने के बारे में चर्चा की लेकिन समझा जाता है कि इस मुद्दे पर बैठक में मतभेद थे.
इस बैठक के आयोजन से ऐसे संकेत मिले हैं कि सरकार घाटी में तीन महीने से चल रही हिंसा को विराम देने के लिए कुछ पहल की घोषणा कर सकती है.
इस सवाल पर कि क्या एएफएसपीए के दायरे से कश्मीर के कुछ हिस्सों को बाहर करने और इस कानून में संशोधन के प्रस्ताव पर रक्षा मंत्रालय असहमत है, सूत्रों ने कहा कि रक्षा मंत्रालय की कुछ असहमति है लेकिन इस बारे में राजनीतिक फैसला ही अंतिम होगा.{mospagebreak}
सूत्रों ने यह भी बताया कि कश्मीर में लेह और कारगिल को छोडकर बाकी सभी इलाके अशांत क्षेत्र घोषित हैं यानी सेना वहां तलाशी ले सकती है और आतंकवादियों के छिपे होने की सूचना पर विस्फोट से किसी मकान को उडा भी सकती है.
यह पूछने पर कि कौन से जिलों को अशांत क्षेत्र के दायरे से बाहर निकाला जा सकता है, उन्होंने कहा कि कुल 20 जिले हैं, उन्हीं में से कुछ का चयन किया जा सकता है.
इस बारे में आ रही मीडिया खबरों में जिलों के नामों का जिक्र होने की बाबत सूत्रों ने कहा कि ये सिर्फ अटकलबाजी है. अभी यह तय नहीं किया गया है कि कौन से जिलों को एएफएसपीए के दायरे से बाहर किया जाएगा.
इस सवाल पर कि क्या कश्मीर के लिए किसी पैकेज की घोषणा हो सकती है, सूत्रों ने कहा कि यह काम दो तरह से हो सकता है. या तो सभी मुद्दों को समेटकर एक पैकेज घोषित किया जाए या फिर आगे बातचीत की जाए और फिर चरणबद्ध ढंग से अन्य कदम उठाये जाएं लेकिन यह सब कुछ राजनीतिक फैसले के जरिए ही तय होगा.
उन्होंने कहा कि सीसीएस बैठक में आत्मसमर्पण, मुआवजा, पुनर्वास जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की उम्मीद है. संभवत: राज्य के लिए अब किसी आर्थिक पैकेज की घोषणा न की जाए क्योंकि पहले ही उसे 10000 करोड़ रूपये सालाना का आर्थिक पैकेज मिल रहा है.{mospagebreak}
सूत्रों ने बताया कि केवल जिलों से सेना की तैनाती के विकल्प को हटा लीजिए, एएफएसपीए अपने आप खत्म हो जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि केवल पुलिस और केन्द्रीय अर्धसैनिक बल ऐसे जिलों में तैनात रहेंगे.
उन्होंने कहा कि किसी अशांत क्षेत्र को यदि शांत घोषित किया जाता है तो इसका मतलब यह हुआ कि वहां सेना के विकल्प को इस्तेमाल नहीं किया जाएगा.
यदि किसी क्षेत्र में लंबे समय तक गडबडी नहीं होती तो वहां सेना की तैनाती के विकल्प को नहीं अपनाया जाएगा लेकिन यदि गडबडी होती है तो बाद में भी अधिसूचना जारी कर सेना के इस्तेमाल के विकल्प को अपनाया जा सकता है .
यह पूछने पर कि जम्मू-कश्मीर में सेना फिलहाल कहां तैनात है, सूत्रों ने कहा कि इस समय केवल राज्य की सीमाओं पर सेना है और जरूरत पडने पर उसे प्रभावित जिलों में बुलाया जा सकता है.