कोयले की कालिख पर सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं ले रही हैं. एक तरफ जहां विपक्ष सरकार पर निशाना साधे है वहीं सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में हफलनामा दायर कर दिया है और नियमों की अनदेखी की बात कही है.
कोयले की 'कालिख', मनरेगा का महाघोटाला!
ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर कोयला की कालिख लगाने की बीजेपी की मुहिम तब बेजान हो गई जब सोनिया गांधी ने विपक्ष की मांग को सिरे से खारिज कर दिया. बवाल कोयला घोटाले पर बनी स्टैंडिंग कमेटी की रिपोर्ट पर शुरू हुआ, जिसमें 1993 से लेकर 2010 तक आवंटित किए गए सभी कोल ब्लॉक के आवंटन को गैरकानूनी करार दिया गया.
रिपोर्ट की मानें तो कोल ब्लॉक आवंटन में सत्ता का इस्तेमाल किया गया. कमेटी ने तमाम कोल ब्लॉको के आवंटन को रद्द करने की सिफारिश भी कर दी, जहां अब तक उत्पादन शुरु नहीं हुआ.
ये स्टैंडिंग कमेटी तब बनाई गई थी, जब सीएजी ने कोल ब्लॉक के आवंटन में 1 लाख 86 हजार करोड़ का नुकसान बताया. इस घोटाले को लेकर प्रधानमंत्री इसलिए कटघरे में हैं, क्योंकि जिस वक्त कोल ब्लॉक आवंटित किए गए उस वक्त कोयला मंत्रालय पीएम के पास था. लेकिन बात इतने पर ही खत्म नहीं हुई.
बीजेपी के आरोपों पर यकीन करें तो यूपीए सरकार ने न केवल घोटाले को हवा दी, बल्कि जांच के दौरान सच्चाई पर परदा डालने के लिए भी दबाव बनाया. विपक्ष ने कोयला घोटाले की जांच को लेकर सुप्रीम कोर्ट में सीबीआई के हलफनामे पर भी सवाल खड़ा किया.
बीजेपी ने हलफनामे में फेरबदल के लिए कानून मंत्री अश्विनी कुमार पर दखल देने का आरोप लगाया और पीएम के साथ-साथ कानून मंत्री से इस्तीफे की मांग कर डाली.