केंद्रीय जांच एजेंसी (CBI) निदेशक आलोक वर्मा ने बहाली के बाद बुधवार को कार्यभार संभालते ही कई अधिकारियों के तबादले के आदेश को पलट दिया, जिसके खिलाफ सीबीआई के डीएसपी देवेंद्र कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
हालांकि, इस दौरान आलोक वर्मा ने पांच सीबीआई अधिकारियों की जिम्मेदारियों में भी बदलाव किया है. इसमें राकेश अस्थाना मामले की जांच कर रहे अधिकारियों का भी तबादला किया गया है. अब दो नए अधिकारी इस मामले में जांच करेंगे. अब एके शर्मा और एमके सिन्हा की बजाए सीबीआई के संयुक्त निदेशक वी मुरुगसेन और डीआईजी तरुण गौबा इस मामले की जांच करेंगे.
डीएसपी देवेंद्र कुमार की याचिका न्यायमूर्ति नजमी वजीरी के समक्ष शुक्रवार को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध होने की संभावना है. न्यायमूर्ति (Justice) वजीरी ने सीबीआई निदेशक राकेश अस्थाना, देवेंद्र कुमार और बिचौलिया मनोज प्रसाद की विभिन्न याचिकाओं पर पहले ही सुनवाई पूरी करके अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था. इन लोगों ने इन याचिकाओं में अपने खिलाफ प्राथमिकी को निरस्त करने की मांग की थी.
देवेंद्र कुमार ने कोर्ट में लंबित याचिका में दायर अपने आवेदन में सीबीआई को यह निर्देश देने की मांग की कि वह आलोक वर्मा और फिर से स्थानांतरित किए गए अधिकारियों को किसी भी तरीके से उनके और अन्य के खिलाफ प्राथमिकी पर विचार नहीं करने दे.
CBI case: Suspended DSP Devender Kumar has approached the Delhi High Court against Director CBI Alok Verma's decision to reverse transfer of officers. pic.twitter.com/hyzTTIh5JF
— ANI (@ANI) January 10, 2019
सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा ने छुट्टी पर भेजे जाने के 77 दिन बाद बुधवार को अपना कार्यभार संभाला था. उन्हें 23 अक्टूबर 2018 की देर रात केंद्र सरकार ने एक आदेश के जरिए जबरन छुट्टी पर भेज दिया था. केंद्र सरकार के आदेश को सुप्रीम कोर्ट ने ने मंगलवार को निरस्त कर दिया था.
कांग्रेस बोली- सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो मामले की जांच
वहीं, कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा को बहाल किए जाने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि पिछले साल अक्टूबर महीने में आधी रात को वर्मा को हटाने से जुड़े पूरे घटनाक्रम की सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए. समाचार एजेंसी भाषा के मुताबिक कांग्रेस पार्टी ने यह भी कहा कि अगले सीबीआई निदेशक की नियुक्ति से संबंधित नामों वाले पैनल के चयन में मौजूदा सीवीसी की भूमिका नहीं होनी चाहिए, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद उनकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह खड़ा हो चुका है.
कांग्रेस के वरिष्ठ प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा, ‘आधी रात को वर्मा को हटाना और छुट्टी पर भेजना गैरकानूनी और असंवैधानिक था. उस रात की कई बातें उजागर नहीं हुईं. यह निर्णय सीवीसी की सिफारिश पर आधारित था, लेकिन सीवीसी को भी यह अधिकार नहीं है कि सीबीआई निदेशक को हटाए और तबादला करे.’
उन्होंने कहा, ‘आलोक वर्मा जैसे ही अपने कार्यालय जाते हैं और उसी समय प्रधानमंत्री तुरंत उच्चस्तरीय समिति की बैठक बुला लेते हैं. ऐसी क्या जल्दबाजी आ गई थी कि वो चंद घंटों में समिति की बैठक बुला लेते हैं?’कांग्रेस नेता ने कहा, ‘इसकी जांच होनी चाहिए कि क्या वजह थी कि आधी रात को सीबीआई निदेशक को हटाया गया? यह निष्पक्ष जांच सरकार नहीं करा सकती है. सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में समिति बने, जो इस घटनाक्रम की जांच करे और जवाबदेही तय करे.’
उन्होंने कहा, ‘विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे को सीवीसी की रिपोर्ट दी जानी चाहिए. इसके बाद सीबीआई निदेशक को अपना पक्ष रखने का पूरा मौका मिलना चाहिए. इसका कोई कारण नहीं है कि उनको बहाल करने के बाद उन्हें काम करने से रोका जाए. छुट्टी पर भेजे जाने के बाद जो 77 दिन गए हैं, वो आलोक वर्मा को मिलने चाहिए, क्योंकि सीबीआई निदेशक का दो साल का पूरा कार्यकाल होता है.’