जीएसटी के पटरी से उतरने को लेकर राज्यों को मत कोसिए. इस सुधार को केंद्र ने ही सर के बल खड़ा कर दिया है. सेस टैक्स नहीं है. यह टैक्सेशन का अपारदर्शी हिस्सा है. इसे लगाया किसी नाम से जाता है और इस्तेमाल कहीं और होता है. राज्यों को इस पर आपत्ति है क्योंकि सेस उस टैक्स पूल से बाहर रहते हैं जिसमें राज्यों का हिस्सा होता है. पिछले माह जब लोग बैंकों की लाइनों में लगे थे और संसद ठप थी, नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट आई थी जो केंद्र सरकार के सेस राज का सबसे ताजा खुलासा है. आइए जानें कहां-कहां से और कुल कितने वसूले जा रहे हैं हमसे सेस....
1. मोबाइल वाला टैक्स
बहुतों को यह जानकारी नहीं होगी कि मोबाइल ऑपरेटर गांवों में फोन और इंटरनेट पहुंचाने के लिए अपने राजस्व पर एक विशेष टैक्स देते हैं. जिसे यूनिवर्सल एक्ससे लेवी कहा जाता है. यह टैक्स हमारे टेलीफोन बिल पर ही लगता है. इसके खर्च के लिए यूनिवर्सल ऑब्लिेगेशन फंड (यूएसओ फंड) बनाया गया है. सीएजी के मुताबिक इस लेवी से 2002-03 से 2015-16 के बीच 66117 करोड़ रुपये जुटाए गए. जिसमें केवल 39113 करोड़ रुपये यूएसओ फंड को दिए गए. क्या सरकार इस सवाल का जवाब देगी अगर गांवों में फोन पहुंच चुका है तो फिर यह लेवी क्यों वसूली जा रही है और अगर यह पैसा जमा है तो इसका इस्तेमाल मोबाइल नेटवर्क ठीक करने व कॉल ड्रॉप रोकने में क्यों नहीं हो सकता.
2. पढ़ाई वाला टैक्स
-2006-07 में उच्च शिक्षा व माध्यमिक शिक्षा का स्तर आधुनिक बनाने के लिए इनकम टैक्स पर एक फीसदी का खास सेस लगाया गया था. 2015-16 तक इस सेस से 64228 करोड़ रुपये जुटाए गए. सीएजी बताता है कि इसके इस्तेमाल के लिए सरकार ने न तो कोई फंड बनाया और न ही किसी स्कीम को यह पैसा दिया गया. अगर शिक्षा के लिए पर्याप्त धन है तो फिर टैक्सपेयर पर बोझ क्यों? देश को इसके इस्तेमाल का हिसाब क्यों नहीं मिलता?
- प्राथमिक शिक्षा के तहत सर्व शिक्षा अभियान और मिड डे मील का पैसा जुटाने के लिए इनकम टैक्स पर दो फीसदी का प्राथमिक शिक्षा सेस भी लगता है, जिसके इस्तेमाल के लिए प्राथमिक शिक्षा कोष बना है. इस कोष को 2004-15 के बीच जुटाई गई पूरी राशि नहीं दी गई.
3. धुआं मिटाने वाला टैक्स
बिजली के साफ सुथरे और धुआंरहित उत्पादन की परियोजनाओं के लिए 2010-11 में एक क्लीन एनर्जी फंड बना था. इस फंड के वास्ते देशी कोयले के खनन और विदेश कोयले के आयात पर सेस लगाया जाता है, जो बिजली महंगी करता है. 2010 से 2015 के बीच सरकार ने इस सेस से 15174 करोड़ रुपये जुटाए लेकिन एनर्जी फंड को मिले केवल 8916 करोड़ रुपये. अलबत्ता 2016 के बजट में सरकार ने इसका नाम बदल क्लीन एन्वायर्नमेंट सेस करते हुए सेस की दर दोगुनी कर दी.
4. रिसर्च वाला टैक्स
सीएजी की रिपोर्ट में एक और सेस की पोल खोली गई है. हमे शायद ही पता हो कि तकनीकों के आयात पर सरकार मोटा सेस लगाती है. रिसर्च एंड डेवलपमेंट सेस कानून 1986 से लागू हैं जिसके तहत घरेलू तकनीक के शोध का खर्चा जुटाने के लिए तकनीकी आयात पर 5 फीसदी सेस लगता है. सेस की राशि टेक्नोलॉजी डेवलपमेंट बोर्ड को दी जाती है. 1996-97 से 2014-15 तक इस सेस से 5783 करोड़ रुपये जुटाए गए लेकिन बोर्ड के तहत फंड को मिले 549 करोड़ रुपये.
5. सिर्फ यही नहीं....
सड़कों के विकास के लिए पेट्रोल डीजल पर लगने वाला रोड डेवलपमेंट सेस भी पूरी तरह रोड फंड को नही मिलता.
पिछली सरकारों के लगाए सेस न तो कम थे और न ही उनके हिसाब में गफलत ठीक हो पाई थी. लेकिन मोदी सरकार ने अपने तीन बजटों में तीन नए सेस ठूंस दिए. सर्विस टैक्स पर कृषि कल्याण सेस और स्वच्द भारत सेस लगाया गया जबकि कारों पर 2.5 फीसदी से लेकर 4 फीसदी तक इन्फ्रास्ट्रक्चर सेस चिपक गया. पिछले दो साल में सरकार ने कभी नहीं बताया कि सफाई और खेती के नाम पर लगे सेस का पैसा आखिर किन परियोजनाओं में जा रहा है?