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EXCLUSIVE: बाबरी केस में फंसे नेताओं ने की मुरली मनोहर जोशी के घर हुई बैठक

बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट की तलवार गर्दन पर लटकने के बाद BJP और विश्व हिंदू परिषद के नेता चिंता में पड़ गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इन नेताओं की मुसीबत बढ़ाते हुए आदेश दिया है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने की साजिश में इन लोगों के ऊपर दोबारा मुकदमा चलाया जाए.

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जोशी के घर मौजूद नेता
जोशी के घर मौजूद नेता

बाबरी मस्जिद मामले में सुप्रीम कोर्ट की तलवार गर्दन पर लटकने के बाद BJP और विश्व हिंदू परिषद के नेता चिंता में पड़ गए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इन नेताओं की मुसीबत बढ़ाते हुए आदेश दिया है कि बाबरी मस्जिद गिराए जाने की साजिश में इन लोगों के ऊपर दोबारा मुकदमा चलाया जाए.

मुरली मनोहर जोशी के घर पर गुरुवार को एक अहम बैठक हुई जिसमें इस बात पर चर्चा हुई की कोर्ट में अब इस लड़ाई को आगे कैसे लड़ा जाए. मुरली मनोहर जोशी के अलावा इस बैठक में साध्वी ऋतंभरा, विश्व हिंदू परिषद के नेता चंपतराय और दिनेश चंद्र त्यागी शामिल थे. यह सभी लोग सुप्रीम कोर्ट फैसले के दायरे में आए हैं.

घंटे भर चली इस बैठक में इन नेताओं ने वकीलों के साथ सलाह-मशविरा किया कि अब आगे क्या किया जाए. बैठक के बाद साध्वी ऋतंभरा ने कहा कि वे लोग मुरली मनोहर जोशी का यहां कानूनी सलाह-मशविरा करने के लिए जुटे थे. हालांकि इस बैठक में लालकृष्ण आडवाणी और उमा भारती और विनय कटियार शामिल नहीं थे.

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उमा भारती समेत बीजेपी के नेता यह बयान देते रहे हैं कि मंदिर आंदोलन से जुड़े होना उनके लिए गर्व की बात है और वह इसके लिए परिणाम की परवाह नहीं करते. लेकिन असलियत यह है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने इन नेताओं की मुसीबत बढ़ा दी है. सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ बाबरी मस्जिद गिराए जाने के अपराधिक षड्यंत्र में शामिल होने का मुकदमा दोबारा चलाने को कहा है, बल्कि जल्द फैसला आने के लिए तमाम उपाय भी किए हैं. पहले इस मामले में दो मुकदमे अलग-अलग लखनऊ और रायबरेली की कोर्ट में चल रहे थे.

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि इन दोनों मुकदमों को साथ जोड़ दिया जाए ताकि मामला तेजी से आगे बढ़ सके. न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी निर्देश दिया है कि मामले की रोज-रोज सुनवाई होगी. गवाहों को हर तारीख पर मौजूद रहना होगा और सुनवाई पूरे होने तक संबंधित जज का ट्रांसफर नहीं किया जाएगा. सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया है कि 2 साल के भीतर इस मामले की सुनवाई पूरी कर ली जाए.

कोर्ट के आदेश के बाद नेताओं की मुसीबत इसलिए भी बढ़ गई है कि अब उन्हें लखनऊ कोर्ट में सुनवाई पर पैनी निगाह रखनी होगी. यह भी कहा जा रहा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लालकृष्ण आडवाणी के राष्ट्रपति बनने की संभावनाओं को झटका लगा है.

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