भारतीय सेना पाकिस्तान और चीन से निपटने के लिए हर मोर्चे पर तैयार रहना चाहती है. यही वजह है कि उसे पश्चिम के साथ-साथ उत्तरी सीमा पर टैंक जैसे बख्तरबंद गाड़ियों की जरूरत है. थलसेना प्रमुख जनरल बिपिन रावत ने खुद कहा है कि इलाके के स्वरूप में आ रहे बदलाव के साथ युद्धक टैंक जैसी बख्तरबंद गाड़ियों में पश्चिम के साथ-साथ उत्तरी सीमा पर संचालित किए जाने की क्षमता होनी चाहिए.
रावत ने इस प्लान को फ्यूचर की जरूरत बताया. रावत ने बताया कि भविष्य में होनी वाली युद्ध की प्रकृति मिलीजुली होगी और सुरक्षा बलों को इससे निपटने के लिए क्षमता निर्माण की जरूरत है. वह यहां ‘फ्यूचर आर्मर्ड व्हीकल्स इंडिया 2017’ के एक सेमिनार के उद्घाटन सत्र को संबोधित कर रहे थे.
बदल रहा है रेगिस्तान
थलसेना प्रमुख ने कहा कि थार मरूस्थल का कुछ हिस्सा सख्त हो रहा है. नहरों के विकास के साथ बंजर जमीनें हरी हो गई हैं और जनसंख्या घनत्व बढ़ गया है, जो चुनौतियां पेश कर रही हैं. रावत ने कहा, ‘‘नहर प्रणाली के विकास के साथ हमें पुलों की जरूरतें पूरी करनी है और यह देखना है कि ये बख्तरबंद गाड़ियां किस तरीके से वहां काम कर पाएंगी. लिहाजा, मैं कहता हूं कि लड़ाई का मैदान जटिल हो जाएगा. इलाके में जटिलताएं बढ़ जाएंगी.’’ उन्होंने कहा कि भविष्य चाहे जो भी हो बख्तरबंद गाड़ियों में ऐसी क्षमता होनी चाहिए कि वे पश्चिम के साथ-साथ उत्तरी सीमा पर भी काम करने में सक्षम हो. जनरल रावत ने कहा, ‘‘लिहाजा, हम जो भी हथियार इस्तेमाल करने वाले हैं वह दोनों मोर्चों पर काम करने में सक्षम होने चाहिए. ’’ रावत ने उल्लेख किया कि थलसेना अपने मशीनीकृत बलों का आधुनिकीकरण करने की तैयारी में है और इसकी एक समयसीमा होनी चाहिए.
थलसेना 2025-2027 से आधुनिक टैंकों और आईसीवी (इंफैंट्री कॉम्बैट व्हीकल) का इस्तेमाल करने पर विचार कर रही है. रावत ने कहा, ‘‘यह ऐसा समय है जब हम कोई गलती नहीं कर सकते. हम क्या चाहते हैं, क्या क्षमताएं हैं और वास्तव में हमें क्या चाहिए यह निर्णय करना होगा. हमारे पास दिन और रात में काम करने की क्षमता होनी चाहिए.’’ उन्होंने कहा कि ऐसा करते वक्त इंफैंट्री की जरूरतों का ध्यान रखना होगा.