तेलंगाना राज्य गठन के प्रस्ताव को केंद्र सरकार द्वारा मंगलवार को हरी झंडी दिए जाने के साथ ही 57 वर्षों तक अपने पूर्ण आकार में रहा आंध्र प्रदेश इतिहास के पन्नों में समाने जा रहा है.
यह राज्य 1 नवंबर 1956 को हैदराबाद राज्य के विलय के साथ अस्तित्व में आया था. उस समय हैदराबाद के नाम से ही 'तेलंगाना' को जाना जाता था. भाषा के आधार पर गठित होने वाला देश का यह पहला राज्य था.
तेलंगाना पूर्ववर्ती हैदराबाद निजाम राज्य का हिस्सा था जहां तेलुगू भाषा भाषी लोग रहते हैं. इससे पहले 1953 में मद्रास राज्य से पृथक कर आंध्र राज्य का गठन किया गया था जिसकी राजधानी करनूल बनाई गई थी. इस राज्य के गठन के लिए पोट्टि श्रीरामुलू ने बलिदान दिया था. तेलुगू भाषा-भाषी लोगों के लिए अलग राज्य की मांग करते हुए 1952 में श्रीरामुलू ने मद्रास में 56 दिनों की भूख हड़ताल की जिसमें उनका निधन हो गया था.
तेलुगू भाषा-भाषियों के लिए गठित राज्य की राजधानी के रूप में हैदराबाद को चुना गया था. समान भाषा होने के बावजूद आंध्र और तेलंगाना के बीच व्यापक सांस्कृतिक और समाजिक-आर्थिक भिन्नताएं हैं. आंध्र राज्य के भीतर तटीय आंध्र और रायलसीमा क्षेत्रों में भी सांस्कृतिक भिन्नताएं हैं.
बंजर जमीन और सिंचाई के अभाव के कारण तेलंगाना आज तक पिछड़ा है. सूखा प्रभावित और हत्याओं के लिए कई दशकों तक कुख्यात रहा रायलसीमा क्षेत्र भी पिछड़ा है. तटीय आंध्र अपनी उर्वर भूमि और विपुल जल संसाधन के कारण तीनों क्षेत्रों में समृद्ध है.
विशाखापट्टणम और इसके आसपास के क्षेत्रों में हुआ औद्योगिक विकास, कई बंदरगाहों के विकास और कृष्णा गोदावरी घाटी में गैस भंडार का पता चलने के बाद इस क्षेत्र को आर्थिक रूप से और विकसित किया है. तीनों क्षेत्र 16वीं और 17वीं सदी के बीच कुतुबशाही शासकों के अधीन था.
हैदराबाद स्टेट के शासक निजाम ने रायलसीमा और सिरकर जिलों (तटीय आंध्र तब इसी नाम से जाना जाता था) को ब्रिटिश के हवाले किया था. यह क्षेत्र उसके बाद मद्रास प्रेसिडेंसी का और आजादी के बाद मद्रास राज्य का हिस्सा बना.