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अमित शाह को गुजरात हाई कोर्ट ने दी जमानत

गुजरात उच्च न्यायालय ने राज्य के पूर्व गृह मंत्री अमित शाह को जमानत दे दी है. इससे पहली गुरुवार को कोर्ट ने जमानत याचिका पर अपना आदेश शुक्रवार तक सुरक्षित रख लिया था.

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गुजरात उच्च न्यायालय ने शुक्रवार को राज्य के पूर्व गृह मंत्री और सोहराबुद्दीन फर्जी मुठभेड़ मामले में आरोपित अमित शाह को जमानत दे दी.

गौरतलब है कि करीब तीन महीने पहले शाह को सीबीआई ने गिरफ्तार किया था. न्यायमूर्ति आर एच शुक्ला ने एक लाख रुपए के निजी मुचलके और इस शर्त पर शाह को जमानत दी कि वह हर महीने सीबीआई के मुंबई कार्यालय में अपनी हाजिरी दर्ज कराएंगे क्योंकि मामला वहीं दर्ज है.

न्यायालय ने जमानत आदेश पर तीन सप्ताह का स्थगन लगाने संबंधी सीबीआई की मांग को भी खारिज कर दिया. सीबीआई के वकील योगेश रवानी की दलील थी कि वह इस आदेश के खिलाफ अपील करना चाहती है. शाह के वकील निरूपम नानावती ने अदालत को यकीन दिलाया कि उनके मुवक्किल जमानत की सभी शर्तों को पूरा करेंगे.

नानावती ने यह भी कहा कि सीबीआई यदि कुछ और शर्त रखती है तो शाह उसे भी पूरा करेंगे. गौरतलब है कि शाह को सीबीआई ने 25 जुलाई को गिरफ्तार किया था. उन्होंने साबरमती जेल में तीन महीने से ज्यादा वक्त बिताया है. गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी के करीबी माने जाने वाले शाह को सीबीआई ने नवंबर 2005 में अंजाम दिए गए सोहराबुद्दीन शेख फर्जी मुठभेड़ की साजिश का प्रमुख ‘सूत्रधार’ करार दिया है. {mospagebreak}

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शाह पर सोहराबुद्दीन की पत्नी कौसर बी और उसके सहयोगी तुलसीराम प्रजापति की हत्या की साजिश का भी आरोप है. इससे पहले, सीबीआई की एक अदालत ने शाह की जमानत याचिका खारिज कर दी थी.

बीते आठ अक्तूबर को शाह की जमानत याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा था कि इस बात की पूरी आशंका है कि यदि उन्हें जमानत पर रिहा किया जाता है तो वह जांच को प्रभावित करने के लिए अपने सियासी रसूख का इस्तेमाल कर सकते हैं. नानावती ने कहा कि बची हुई प्रक्रिया पूरी कर लिए जाने के बाद शाह को साबरमती जेल से रिहा कर दिया जाएगा.

तीन महीने से ज्यादा चली सीबीआई और शाह के बीच की कानूनी लड़ाई में वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी और के टी एस तुलसी के बीच झड़पें देखने को मिलीं. गौरतलब है कि जेठमलानी शाह के जबकि तुलसी सीबीआई के वकील हैं. जेठमलानी ने अपनी जिरह के वक्त कहा था कि शाह को जमानत नहीं दिए जाने के सीबीआई अदालत के फैसले में न्यायिक संतुलन का अभाव था.

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