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कोविंद का नाम आने से आडवाणी जोशी की आखिरी आस भी टूटी

रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय किए जाने से बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की राष्ट्रपति भवन जाने की आखिरी आस भी टूट गई है. आडवाणी और जोशी दोनों यही उम्मीद पाले थे कि पार्टी खासतौर से नरेंद्र मोदी उनको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करवा देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

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आडवाणी-जोशी को निराशा
आडवाणी-जोशी को निराशा

रामनाथ कोविंद के राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय किए जाने से बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी की राष्ट्रपति भवन जाने की आखिरी आस भी टूट गई है. आडवाणी और जोशी दोनों यही उम्मीद पाले थे कि पार्टी खासतौर से नरेंद्र मोदी उनको राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करवा देंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं.

हालांकि आडवाणी-जोशी पर जब बाबरी ढांचे का क्रिमिनल कॉन्स‍िपिरेसी का केस चला, तभी इस बात के कयास लगाए जा रहे थे और राजनीतिक गलियारों में चर्चा शुरु हो गई थी कि अब आडवाणी-जोशी का राष्ट्रपति भवन तक पहुंचना मुश्किल है. लेकिन उसके बाद भी दोनों के मन में यह आस रही कि हो सकता है पार्टी और मोदी दोनों में से किसी को राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बना दें.

इन सबके बावजूद भी पिछले कई दिनों से इस बात के कयास भी लगाए जा रहे थे कि मोदी, आडवाणी को गुरु दक्षिणा दे सकते हैं. बीच में मीडिया में यह खबरें भी आई थीं कि आडवाणी राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार बनाए जा सकते हैं. लेकिन ज्यों-ज्यों नामांकन की तारीख नजदीक आई, मुरली मनोहर जोशी का नाम चलने लगा, लेकिन संसदीय बोर्ड की बैठक में तमाम कयासों और चर्चाओं को विराम लगा दिया गया और पार्टी ने अपने दलित चेहरे पर दांव लगा दिया और बिहार के राज्यपाल रामनाथ कोविंद को एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय कर सबको चौंका दिया दिया.

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दूर-दूर तक भी किसी के जहन में राम नाथ कोविंद के बारे में ख्याल नहीं था. उम्मीद लगाए दोनों वयोवृद्ध नेता नेताओं की आखिरी आस भी आज टूट गई है.

हालांकि 2014 के चुनाव के बाद से ही नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद आडवाणी और जोशी का पार्टी में इतना महत्व नहीं रहा था. सिर्फ मार्गदर्शक मंडल तक सीमित हो गए थे. मगर यह कहां जा रहा था कि आडवाणी और जोशी में से कोई ना कोई राष्ट्रपति का उम्मीदवार बन सकता है. मगर मोदी ने इन दोनों पर ही दाव लगाना उचित नहीं समझा और एक ऐसे व्यक्ति को ढूंढ कर लाए, जिसके बारे में न तो पार्टी नेताओं के जहन में था और ना ही मीडिया में कहीं चर्चा थी. अब जो आडवाणी और जोशी के पास संसद की सदस्यता के अलावा कुछ दिख नही रहा है, क्योंकि एक तो दोनों की उम्र 80 पार है, दूसरा अब कोई ऐसा पद नहीं बचा है, जो दोनों में से किसी को दिया जा सके.

उनकी वरिष्ठता को देखते हुए पार्टी के नेता और राजनीतिक विश्लेषक यह मानते हैं कि आडवाणी और जोशी की ये सांसद के तौर पर भी आखिरी पारी है. इसके बाद दोनों रिटायर्ड लाइफ जिएंगे. बीजेपी ने तो 2014 के चुनाव के बाद ही अडवाणी-जोशी को एक तरह से पार्टी के रोजमर्रा के कामों से रिटायर कर ही रखा था, मगर अब तो मोदी-अमित शाह की जोड़ी ने आडवाणी-जोशी की जोड़ी को फाइनली रिटायर कर दिया है.

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