अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर केंद्र सरकार आज महिला आरक्षण बिल पेश करने जा रही है. राज्यसभा में यह बिल पेश होना है. आज संसद की कार्यवाही में प्रश्नकाल के दौरान समाजवादी पार्टी ने हंगामा शुरू कर दिया. इसके चलते राज्यसभा को स्थगित करना पड़ा. हंगामा संसद के दोनों ही सदनों में देखने को मिला.
बिल के पेश होने में कोई अड़चन न आए इसे देखते हुए कांग्रेस और बीजेपी अपने सासंदों को व्हिप भी जारी कर चुकी है और सरकार को पूरा भरोसा है कि इस बार कोई दिक्कत नहीं आएगी.
अगर महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों में पारित हो जाता है और इस पर राष्ट्रपति की मुहर लग जाती है तो लोकसभा और देश की विधानसभाओं में हर तीसरी सीट पर महिलाओं का कब्जा होगा. बिल के कानून बनने से न सिर्फ महिला सशक्तीकरण का सपना साकार होगा बल्कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में महिलाओं को उचित सम्मान भी मिलेगा.
इस बिल को राज्यसभा में पास होने के लिए दो-तिहाई सांसदों का समर्थन ज़रूरी है और अगर राज्यसभा की मौजूदा स्थिति के हिसाब से देखें तो ये बिल आसानी से पास हो सकता है. राज्यसभा के कुल सदस्यों की संख्या है 233 और इसका दो-तिहाई होता है 155.
बिल का समर्थन करने वाली प्रमुख पार्टियां हैं कांग्रेस (71), बीजेपी (45) और लेफ्ट (22). इनके अलावा बीजू जनता दल, असम-गण परिषद, नैशनल कॉन्फ्रेंस, तेलगूदेशम पार्टी, एनसीपी, डीएमके, तृणमूल कांग्रेस और जनता दल(एस) जैसी छोटी-छोटी पार्टियां भी इस बिल का समर्थन कर रही हैं. इन सभी पार्टियों के पास 26 सांसद हैं. इस तरह कुल मिलाकर 164 सांसद इस बिल के समर्थन में हैं.
ऐसे में अगर बिल को छीनने या ज़बरदस्त हंगामे की वजह से संसद की कार्रवाई स्थगित होने की नौबत नहीं आई तो राज्यसभा अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के दिन देश की महिलाओं को यह बेशक़ीमती तोहफ़ा देने के लिए तैयार है.
{mospagebreak}संसद में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने को लेकर करीब 14 साल से राजनीतिक खींचतान जारी है क्योंकि कुछ पार्टियां इसका शुरू से ही इसका मौजूदा स्वरूप में विरोध कर रही हैं.
संसद में पहली बार 1996 में महिला आरक्षण बिल पेश किया गया, जब एच डी देवगौड़ा प्रधानमंत्री थे. सीपीआई की नेता गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में गठित कमेटी ने महिला आरक्षण पर रिपोर्ट भी पेश कर दी लेकिन विरोधी दलों का समर्थन नहीं मिलने से विधेयक पारित नहीं हो सका.
दो साल बाद यानि 1998 में एनडीए सरकार ने विधयेक पारित कराने की फिर से कोशिश की लेकिन एक बार फिर इसका विरोध हुआ. 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने दोबारा इस बिल को पेश किया लेकिन इसे पास कराने में कामयाबी नहीं मिली.
पंद्रहवीं लोकसभा के गठन पर राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने अपने भाषण में महिला आरक्षण बिल को लेकर सरकार की प्रतिबद्धता जाहिर की. इसलिए यूपीए सरकार इस बार मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहती.
अगर महिला आरक्षण बिल संसद के दोनों सदनों में पारित भी हो जाता है तो इसे अमली जामा पहनाने में लंबा वक्त लग सकता है. सरकार इसी कोशिश में है कि वो किसी तरह बजट सत्र में महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा और लोकसभा से पारित करा ले. उसके बाद वहां से विधेयक पर राय बनाने के लिए बाद में उसे सभी राज्यों की विधानसभाओं को भेजा जाना है.
महिला आरक्षण बिल के पक्ष में कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से मुहर लगवानी होगी जिसके बाद ही इसे राष्ट्रपति की मंजूरी मिलेगी और कानून का दर्जा मिल पाएगा.