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जब शिक्षिका बन गई 'मां कृष्णा बम'

वैसे तो सावन में लाखों लोग बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर की पदयात्रा कर झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने पहुंचते हैं, लेकिन 60 वर्षीय एक महिला पिछले 33 वर्षों से सावन में प्रत्येक रविवार को सुल्तानगंज से पदयात्रा कर सोमवार को शिव के दरबार में पहुंचती हैं.

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वैसे तो सावन में लाखों लोग बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर 105 किलोमीटर की पदयात्रा कर झारखंड के देवघर स्थित बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करने पहुंचते हैं, लेकिन 60 वर्षीय एक महिला पिछले 33 वर्षों से सावन में प्रत्येक रविवार को सुल्तानगंज से पदयात्रा कर सोमवार को शिव के दरबार में पहुंचती हैं.

बिहार की मुजफ्फरपुर की रहने वाली कृष्णा रानी जो एक शिक्षिका हैं, अब 'मां कृष्णा बम' बन गई हैं. उन्हें देखने और उनसे आर्शीवाद लेने के लिए रास्ते में हजारों लोग पंक्तिबद्ध खड़े रहते हैं. सावन के प्रत्येक सोमवार को कृष्णा 'डाक बम' के रूप में देवघर पहुंचती हैं और बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करती हैं.

डाक बम उसे कहा जाता है जो गंगाजल भरकर लगातार चलते हुए 24 घंटे के अंदर शिव के दरबार में पहुंचता है. यह संकल्प सुल्तानगंज में ही जल भरते समय लिया जाता है.

डाक बम कृष्णा बताती हैं कि वह सावन के प्रत्येक रविवार को दोपहर ढ़ाई से तीन बजे के बीच सुल्तानगंज की उत्तरवाहिनी गंगा से जल उठाती हैं और देवघर तक का सफर 12 से 14 घंटे में पूरा कर बाबा के दरबार में पहुंच जाती हैं. इस दौरान पूरा रास्ता बोल बम और कृष्णा बम के नारे से गुंजायमान होता रहता है.

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इस क्रम में बाबा के भक्त कृष्णा बम के दर्शन के लिए लालायित रहते हैं. सुल्तानगंज, तारापुर, रामपुर नहर, कटोरिया और सुइया पहाड़ क्षेत्र में कृष्णा बम को देखने के लिए भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है. रास्ते में सुरक्षा के लिए पुलिस की व्यवस्था भी रहती है.

कृष्णा बम ने बताया कि वह लगातार 33 वर्षों से हर सावन में देवघर आ रही हैं. वैशाली के प्रतापगढ़ में जन्मी कृष्णा रानी इस समय मुजफ्फरपुर के एक विद्यालय में शिक्षिका हैं. वह कहती हैं कि विवाह के बाद उनके पति नंदकिशोर पांडेय कालाजार से पीड़ित हो गए थे. दिनोंदिन उनकी हालत खराब होती जा रही थी. तब उन्होंने संकल्प लिया कि पति के ठीक होने पर वह कांवड़ लेकर हर साल सावन में बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करेंगी. भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना सुन ली.

कृष्णा को सुल्तानगंज से देवघर के बीच सावन में लगने वाले श्रावणी मेले को राष्ट्रीय मेला घोषित नहीं किए जाने का मलाल है. बकौल कृष्णा, वह साइकिल से 1900 किलोमीटर तक की वैष्णो देवी की यात्रा भी कर चुकी हैं. इसके अलावा हरिद्वार से बाबाधाम, गंगोत्री से रामेश्वरम और कामरूप कामख्या की भी यात्रा साइकिल से कर चुकी हैं.

वह कहती हैं, 'अगर भगवान के प्रति समर्पण की भावना हो तो खुद भक्त में शक्ति आ जाती है. इसके लिए कुछ करने की आवश्यकता नहीं होती. मैं खुद को भगवान शिव के हवाले कर चुकी हूं और आज जो भी कर रही हूं, वह भगवान की कृपा से. मुझे मेरे पति और पूरे परिवार का सहयोग मिलता है.'

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