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नहीं रहे सारंगी के ‘सुल्तान’

सारंगी नवाज़ और शास्त्रीय गायक उस्ताद सुल्तान खान का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वह 71 वर्ष के थे. मीठे साज़ों में शुमार सारंगी के फनकार खान ने ‘पिया बसंती रे’ और ‘अलबेला सजन आयो रे’ जैसे मशहूर गीतों में भी अपनी आवाज दी.

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सारंगी नवाज़ और शास्त्रीय गायक उस्ताद सुल्तान खान का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. वह 71 वर्ष के थे. मीठे साज़ों में शुमार सारंगी के फनकार खान ने ‘पिया बसंती रे’ और ‘अलबेला सजन आयो रे’ जैसे मशहूर गीतों में भी अपनी आवाज दी.

उनके परिवार के सदस्यों ने कहा कि पद्म भूषण से सम्मानित खान जोधपुर के सारंगी वादकों के परिवार से ताल्लुक रखते थे. वह पिछले कुछ समय से डायलिसिस पर थे. उन्हें कल जोधपुर में सुपुर्द-ए-खाक किया जायेगा.

सारंगी वादन के क्षेत्र में नयी जान फूंकने का श्रेय खान को ही जाता है. उनकी अपने वाद्य पर गजब की पकड़ थी लेकिन उनकी आवाज भी उतनी ही सुरीली थी. वह 11 वर्ष की आयु में ही पंडित रविशंकर के साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रस्तुति दे चुके थे. यह पेशकश उन्होंने वर्ष 1974में जॉर्ज हैरीसन के ‘डार्क हॉर्स वर्ल्ड टूर’ में दी थी.

खान राजस्थान के सारंगी वादकों के परिवार में जन्मे. शुरुआत में उन्होंने अपने पिता उस्ताद गुलाम खान से तालीम ली. बाद में उन्होंने इंदौर घराने के जाने माने शास्त्रीय गायक उस्ताद अमीर खां से संगीत के हुनर सीखे. खुद को सारंगी वादक के तौर पर स्थापित करने के बाद उस्ताद सुल्तान खान ने लता मंगेशकर, खय्याम, संजय लीला भंसाली जैसी फिल्म जगत की हस्तियों और पश्चिमी देशों के संगीतकारों के साथ काम किया.

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उनके निधन पर शास्त्रीय संगीतज्ञ देबू चौधरी ने कहा कि सारंगी का वह बेताज बादशाह संगीत प्रेमियों के बीच से चला गया जो सही मायनों में ‘किंवदंती’ था. ध्रुपद गायक पंडित साजन मिश्र ने उस्ताद के निधन पर शोक जताते हुए कहा कि एक सुरीला और प्यारा कलाकार नहीं रहा.

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