माओवादियों से लड़ने के लिए सलवा जुडूम का इस्तेमाल किए जाने की कड़ी आलोचना करते हुए उच्चतम न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र द्वारा विशेष पुलिस अधिकारियों (एसपीओ) को हथियारबंद करने पर रोक लगा दी और पांच हजार सदस्यों वाले इस बल को ‘असंवैधानिक’ करार दिया.
इसके साथ ही न्यायालय ने छत्तीसगढ़ सरकार और केंद्र को निर्देश दिया कि वे आदिवासियों को एसपीओ के तौर पर नियुक्त करने और नक्सलियों से प्रत्यक्ष या परोक्ष तौर पर निपटने के लिए उन्हें हथियारबंद करने से परहेज करें.
न्यायालय ने कहा कि आदिवासी युवकों की एसपीओ के तौर पर नियुक्ति ‘असंवैधानिक’ है. न्यायमूर्ति बी सुदर्शन रेड्डी और न्यायमूर्ति एस एस निज्जर की पीठ ने यह आदेश समाजविज्ञानी नंदिनी सुंदर, इतिहासकार रामचंद्र गुहा, पूर्व नौकरशाह ई ए एस शर्मा और अन्य की ओर से दायर याचिका पर दिया.
याचिका में राज्य सरकार को सलवा जुडूम का कथित तौर पर समर्थन करने से परहेज करने को कहा गया. इस बल में करीब दो हजार आदिवासी हैं, जो छत्तीसगढ़ के बीजापुर और दंतेवाड़ा जिले समेत बस्तर क्षेत्र में माओवादियों के साथ लड़ाई में सुरक्षा बलों और पुलिस की मदद करते हैं. न्यायालय ने गत मार्च में माओवाद प्रभावित छत्तीसगढ़ की यात्रा के दौरान सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश पर हुए हमले की सीबीआई जांच का भी आदेश दिया.
पीठ ने कहा, ‘हम सीबीआई को निर्देश देते हैं कि वह स्वामी अग्निवेश और उनके साथियों पर किए गए हमले की जांच की जिम्मेदारी संभाले.’
पीठ ने कहा कि माओवादियों से लड़ने के लिए आदिवासियों की शैक्षणिक योग्यता और प्रशिक्षण समेत अन्य योग्यता मानदंड कानून और संवैधानिक प्रावधानों के खिलाफ जाते हैं. पीठ ने कहा कि कोया कमांडो और सलवा जुडूम का गठन संविधान का उल्लंघन है. विशेष पुलिस अधिकारियों को कोया कमांडो का नाम दिया गया है. स्वामी अग्निवेश पर हमले के मुद्दे को इस साल अप्रैल में शीर्ष अदालत के समक्ष लाया गया था.