गरीबी की परिभाषा को लेकर चौतरफा आलोचनाओं के बीच योजना आयोग ने अपने को इस विवाद से अलग करने का प्रयास किया. आयोग ने कहा कि समाज के वंचित वर्गों को सब्सिडी देने में न्यायालय में प्रस्तुत आंकड़ों को आधार नहीं बनाया गया है.
आयोग ने अपनी सफाई पेश करते हुए कहा कि गरीबी की परिभाषा का विचार उसका अपना नहीं है. उल्लेखनीय है कि ‘गरीबी की रेखा’ की परिभाषा के संबंध में आयोग ने उच्चतम न्यायालय में इस बारे में जो शपथ पत्र दिया था उसमें कहा गया है कि शहरी इलाकों में 32 रुपये प्रतिदिन से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति ‘गरीब’ नहीं है. ग्रामीण इलाकों के लिए यह राशि 26 रुपये बताई गई है. इसको लेकर आयोग की लगातार आलोचना हो रही है कि उसने गरीबी की सही तस्वीर नहीं रखी है.
योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया ने ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश के साथ मिल कर यहां इस विषय पर एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन को संबोधित किया है. अहलूवालिया ने कहा, ‘लोग आरोप लगा रहे हैं कि योजना आयोग गरीबी को कम कर आंक रहा है, जो सही नहीं है.’ अहलूवालिया ने कहा कि इन आंकड़ों का इस्तेमाल समाज के पिछड़े तबके को लाभ उपलब्ध कराने के लिए नहीं किया गया है.
शपथ पत्र के अनुसार, जून, 2011 के मूल्य के हिसाब से 4,824 रुपये से कम मासिक खर्च करने वाला पांच सदस्यीय परिवार गरीब की श्रेणी में आएगा. ग्रामीण क्षेत्र के लिए यह सीमा 3,905 रुपये तय की गई है.
अहलूवालिया ने रविवार को इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात कर अपनी सफाई दी थी.
अहलूवालिया ने कहा कि अदालत में दिया गया शपथ पत्र न्यायालय द्वारा पूछे गए सवाल पर एक तथ्यात्मक हलफनामा है. हमारे कानूनी प्रतिनिधि अदालत में स्थिति स्पष्ट करेंगे. न्यायालय का जो भी आदेश आएगा हम उसका पालन करेंगे.
योजना आयोग के उपाध्यक्ष ने कहा कि दैनिक आंकड़ों पर जोर देकर आयोग को शर्मनाक स्थिति में डालने का प्रयास किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि इन आंकड़ों को वंचितों की सहायता की पात्रता तय करने का आधार नहीं माना जाना चाहिए है.
जयराम रमेश ने कहा कि योजना आयोग और ग्रामीण विकास मंत्रालय एक विशेषज्ञ समिति का गठन करेंगे, जो ताजा जनगणना में सामाजिक आर्थिक और जातिगत गणना के आंकड़ों का अध्ययन करेगी. यह काम अभी चल रहा है, जिसके जनवरी, 2012 तक पूरा होने की उम्मीद है.