गरीबी की परिभाषा के बारे में योजना आयोग के हलफनामे को लेकर छिड़े विवाद के बीच आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की. वह इस मुद्दे पर आज स्पष्टीकरण देंगे.
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उच्चतम न्यालय में पेश हलफनामे पर विवाद उभरने के बाद प्रधानमंत्री के साथ उनकी यह पहली मुलाकात है. हलफनामे में आयोग शहरी इलाके में दैनिक 32 रुपये से अधिक और ग्रामीण इलाकों में दैनिक 26 रुपये से अधिक खर्च करने वालों को गरीबी की रेखा से ऊपर करार दिया है.
समझा जाता है कि अहलूवालिया ने इस पूरे प्रकरण पर प्रधानमंत्री के साथ चर्चा की.
शपथ पत्र के अनुसार शहरी इलाकों में जून, 2011 के मूल्य के हिसाब से मासिक 4,824 रुपये प्रतिदिन से कम क्रयशक्ति वाले पांच सदस्यीय परिवार को ही गरीबी की रेखा से नीचे (बीपीएल) की श्रेणी में रखा जाएगा. ग्रामीण इलाकों के लिए यह राशि 3,905 रुपये बताई निर्धारित की गयी है.
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शपथ पत्र में कहा गया है कि बीपीएल का लाभ पाने के हकदार लोगों की संख्या 40.74 करोड़ है. तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट को जिस समय स्वीकार किया गया था, उस समय यह आंकड़ा 37.2 करोड़ का था.
योजना आयोग के अधिकारियों का कहना है कि ज्यादा लोगों को यह लाभ देने से गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का उद्देश्य खत्म हो जाएगा. समझा जाता है कि कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने इस मामले में हस्तक्षेप करते हुए योजना आयोग से गरीबी की परिभाषा पर नए सिरे से विचार को कहा है. अहलूवालिया सोमवार को इस मुद्दे पर ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश से भी मिलेंगे.
सूचना एवं प्रसारण मंत्री अंबिका सोनी से दो दिन पहले इस बारे में पूछे जाने पर कहा था, ‘योजना आयोग से हमने इस बारे में पूछा है. उन्होंने कहा है कि यह कोई अंतिम दस्तावेज नहीं है.’
सोनी ने कहा था कि इन आंकड़ों में बदलाव हो सकता है. हो सकता है कि कोई नया आंकड़ा आए जिस पर योजना आयोग सहमत हो जाए.
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राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की चेयरमैन अरुणा राय और हर्ष मांदेर ने भी 32 रुपये प्रति व्यक्ति की गरीबी की परिभाषा को चुनौती दी है. सोनिया गांधी की अगुवाई वाली एनएसी के अन्य सदस्यों ने भी इस पर आपत्ति जताई है.
एनएसी के सदस्य एन सी सक्सेना ने कहा, ‘32 रुपये प्रतिदिन पर सिर्फ जानवर ही रह सकते हैं.’ सक्सेना ने कहा कि जो लोग प्रतिदिन 32 रुपये से कम खर्च कर रहे हैं, वे निपट गरीबी में हैं.