लोकपाल विधेयक पर गठित संयुक्त मसौदा समिति के सदस्य प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री पद को इस प्रस्तावित बिल के दायरे में रखे जाने की जमकर पैरवी की है. लोकपाल विधेयक को एक अगस्त से शुरू होने वाले मानसून सत्र में संसद में पेश किया जाना है.
वरिष्ठ अधिवक्ता का कहना है कि उन लोगों को संविधान की ‘एबीसी’ तक नहीं आती जो शीर्ष राजनीतिक पद को ‘संवेदनशील’ बताते हुए भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक के दायरे से बाहर रखने का राग अलाप रहे हैं.
भाषाई पत्रकारिता महोत्सव के सिलसिले में यहां आये भूषण ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि सरकार प्रधानमंत्री पद को लोकपाल विधेयक के दायरे से बाहर रखने पर अड़ी हुई है. लेकिन इसका कोई आधार नहीं है.’ उन्होंने जोर देकर कहा कि प्रधानमंत्री पद भ्रष्टाचार की जांच से आज भी परे नहीं है और सीबीआई यह जांच कर सकती है.
भूषण ने कहा, ‘चूंकि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) प्रधानमंत्री के अधीन होता है. लिहाजा हमारा कहना है कि शीर्ष राजनीतिक पद के खिलाफ जांच का तभी कोई मतलब निकलेगा, जब यह अधिकार लोकपाल जैसी सरकार से स्वतंत्र एजेंसी को हो.’
उन्होंने कहा, ‘उन लोगों को संविधान की एबीसी तक की समझ नहीं है, जो कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री पद को भ्रष्टाचार निरोधक विधेयक के दायरे से बाहर होना चाहिये. यह एक बेसिर पैर की बात है.’
वरिष्ठ वकील ने कहा कि प्रधानमंत्री पद को लोकपाल विधेयक के दायरे से बाहर रखने के लिये दलील दी जा रही है कि यह एक ‘संवेदनशील’ ओहदा है. लेकिन दुनिया में ऐसा कोई भी ‘स्वतंत्र’ और ‘सभ्य’ देश नहीं है, जहां कार्यपालिका का प्रमुख भ्रष्टाचार की जांच से परे हो.
हालांकि, सरकार के मौजूदा संकेतों के आधार पर भूषण से जब पूछा गया कि अगर संसद में पेश किये जाने वाले लोकपाल विधेयक के दायरे में प्रधानमंत्री पद को शामिल नहीं किया गया तो गांधीवादी अन्ना हजारे पक्ष का रुख क्या होगा तो उन्होंने कहा, ‘हम इस मुद्दे को ऐसा नहीं मानते, जिस पर फिलहाल बातचीत नहीं हो सकती. जब इस मुद्दे पर संविधान की रोशनी में चर्चा होगी, तो सारी स्थिति अपने आप स्पष्ट हो जायेगी.’
उन्होंने कहा कि लोकपाल विधेयक पर सरकार का मौजूदा रुख ‘गलत’ है और दिखाता है कि वह भ्रष्टाचार के खिलाफ ठोस कदम उठाने के लिये गंभीर नहीं है.
भ्रष्टाचार पर प्रभावी रोक के लिये मजबूत लोकपाल विधेयक की अनिवार्य जरूरत की बात दोहराते हुए भूषण ने कहा, ‘अन्ना हजारे पहले ही घोषित कर चुके हैं कि अगर सरकार संसद में लचर लोकपाल विधेयक प्रस्तुत करेगी तो एक बार फिर अनशन किया जायेगा.’