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गोधरा कांड: 1 मार्च को होगा सजा का ऐलान

विशेष अदालत ने गोधरा ट्रेन पर हमले के मामले में दोषी ठहराए गए 31 लोगों को दी जाने वाली सजा का ऐलान एक मार्च तक के लिए टाला.

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गोधरा कांड
गोधरा कांड

गोधरा नरसंहार मामले के 31 दोषियों को सजा सुनाए जाने के बारे में विशेष अदालत ने फैसला एक मार्च तक के लिए सुरक्षित रख लिया. इस दौरान अभियोजन पक्ष ने दोषियों को प्राणदंड देने का आग्रह किया.

न्यायाधीश आरआर पटेल ने सजा की मात्रा को लेकर अहमदाबाद की साबरमती जेल में अभियोजन पक्ष और बचाव पक्ष की दलीलें सुनीं और फैसला मंगलवार तक के लिए सुरक्षित रख लिया. अदालत ने 22 फरवरी को इस मामले में 31 लोगों को दोषी करार दिया था और 63 अन्य को बरी कर दिया था.

अपने फैसले में अदालत ने माना था कि 2002 में हुए गोधरा कांड के पीछे एक साजिश थी जिसमें साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में 59 कारसेवकों को जिन्दा जला दिया गया था. गोधरा कांड के बाद गुजरात में बड़े पैमाने पर दंगे हुए जिनमें 1200 से अधिक लोग मारे गए थे. {mospagebreak}

दंगों में मरने वालों में अधिकतर अल्पसंख्यक समुदाय के लोग थे. सरकारी वकील जेएम पांचाल ने अदालत से बाहर आकर कहा, ‘हमने सभी 31 दोषियों को फांसी की सजा देने का आग्रह किया. हमने अपनी मांग के समर्थन में निवेदन किया. मामला विचाराधीन है और मैं आगे कुछ नहीं कह सकता. हमें एक मार्च तक का इंतजार करना होगा.’

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बचाव पक्ष के वकील एडी शाह ने कहा कि न्यायाधीश ने दोषियों को सुना जिन्होंने सजा में नरमी बरते जाने का आग्रह किया. नरसंहार के मामले में दोषी साबित इन लोगों को भादंसं की धाराओं 147, 148 (घातक हथियारों के साथ दंगा करने) 323, 324, 325, 326 (नुकसान पहुंचाने), 153ए (विभिन्न समूहों के बीच धार्मिक आधार पर वैमनस्य बढ़ाने) तथा भारतीय रेल अधिनियम और बंबई पुलिस अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत भी दोषी ठहराया गया है. {mospagebreak}

अदालत ने अपने फैसले में यह स्वीकार किया है कि कारसेवकों को लेकर अयोध्या से लौट रही साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 डिब्बे में आग का लगना कोई हादसा नहीं बल्कि इसके पीछे एक साजिश थी. अदालत ने वैज्ञानिक सबूतों पारिस्थितिजन्य और दस्तावेजी साक्ष्यों तथा गवाहों के बयानों के आधार पर अपने 850 से अधिक पृष्ठ के फैसले में घटना के पीछे षड्यंत्र के सिद्धांत को स्वीकार किया.

दोषी ठहराए गए 31 लोगों में हाजी बिलाल अब्दुल रजा कुरकुर जबीर बेहरा सलीम जरदा और महबूब हसन उर्फ लतिको भी शामिल हैं जो मामले के प्रमुख आरोपियों में शामिल थे. गोधरा कांड को लेकर साबरमती जेल में जून 2009 में मुकदमा शुरू हुआ था. इसमें 94 लोगों पर आरोप तय किए गए. इसमें 253 गवाहों से जिरह की गई और गुजरात पुलिस ने अदालत के समक्ष 1500 से अधिक दस्तावेजी सबूत पेश किए. {mospagebreak}

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मामले में कुल 134 आरोपी थे जिनमें से 14 को सबूतों के अभाव में रिहा कर दिया गया. पांच नाबालिग थे और पांच की नौ साल तक चली कार्यवाही के दौरान मौत हो गई. 16 आरोपी फरार हैं. इस तरह 94 आरोपियों के खिलाफ मुकदमा चलाया गया. इनमें से प्रमुख आरोपियों मौलवी उमरजी मोहम्मद हुसैन कलोटा मोहम्मद अंसारी और गंगपुर उत्तर प्रदेश के नानूमिया चौधरी सहित 63 को बरी कर दिया गया.

घटना की जांच के लिए दो विभिन्न जांच आयोग बनाए गए जिन्होंने अलग अलग निष्कर्ष निकाला. गुजरात सरकार द्वारा नियुक्त नानावती आयोग ने अपनी रिपोर्ट के पहले हिस्से में निष्कर्ष दिया कि एस-6 डिब्बे में आग का लगना कोई हादसा नहीं बल्कि यह डिब्बे के भीतर पेट्रोल फेंककर लगाई गई थी.

सरकार को 2008 में सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया, ‘एस-6 में एक पूर्व निर्धारित योजना के तहत आग लगाई गई. दूसरे शब्दों में अयोध्या से आ रही ट्रेन के डिब्बे में आग के पीछे एक साजिश थी ताकि इसमें सवार कारसेवकों को नुकसान पहुंचाया जा सके.’ पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद द्वारा नियुक्त एक सदस्यीय यूसी बनर्जी आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि आग का लगना एक ‘हादसा’ था.

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