राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के पूर्व सरसंघचालक के. एस सुदर्शन का शनिवार को रायुपुर में दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया. वह अपने कट्टर विचारों के लिए जाने जाते थे और ‘स्वदेशी’ की अवधारणा में विश्वास रखते थे. वह 81 वर्ष के थे. उनके परिवार में एक भाई और एक बहन हैं.
सुदर्शन का निधन शनिवार सुबह छह बजकर 50 मिनट पर आर एस एस के प्रांतीय कार्यालय जागृति मंडल में हुआ. डाक्टरों ने बताया कि उन्होंने उस समय अंतिम सांस ली जब वह सुबह के समय 40 मिनट की नियमित सैर के बाद अपने कक्ष में प्राणायाम कर रहे थे.
वह 13 सितंबर से रायुपर प्रवास पर थे. शुक्रवार को उन्होंने पूर्व सांसद गोपाल व्यास द्वारा लिखित पुस्तक ‘सत्यमेव जयते’ का विमोचन किया था.
आरएसएस के सदस्यों ने बताया कि उनका पार्थिव शरीर नागपुर स्थित आरएसएस मुख्यालय ले जाया जा रहा है. इसे वहां लोगों के अंतिम दर्शनों के लिए रखा जाएगा. उनका अंतिम संस्कार रविवार को नागपुर में अपराह्न तीन बजे किया जाएगा.
18 जून 1931 को रायपुर में जन्मे कुप्पाहल्ली सीतारमैया सुदर्शन ने 10 मार्च 2000 को नागपुर में अखिल भारतीय प्रतिनधि सभा के उद्घाटन सत्र में तत्कालीन सरसंघचालक रज्जू भैया से आरएसएस प्रमुख के रूप में दायित्व ग्रहण किया था. खराब स्वास्थ्य के चलते बाद में उन्होंने यह पद छोड़ दिया था.
छह दशक तक आरएसएस प्रचारक के रूप में काम करने वाले सुदर्शन वर्ष 2000 से 2009 तक इस संगठन के सरसंघचालक रहे. कर्नाटक के मांड्या जिले के कुप्पाली गांव निवासी सुदर्शन संघ कार्यकर्ताओं के बीच शारीरिक प्रशिक्षण के लिए जाने जाते थे.
वह भाजपा नेताओं के खिलाफ विवादात्मक टिप्पणियों के लिए भी जाने जाते थे. 2004 के लोकसभा चुनावों में पार्टी की हार के बाद सुदर्शन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे वरिष्ठ नेताओं को युवा नेतृत्व के लिए मार्ग प्रशस्त करना चाहिए.
सुदर्शन दक्षिण भारत से पहले आरएसएस प्रमुख थे. उन्होंने आर्थिक संप्रभुता और अयोध्या में राम मंदिर निर्माण पर जोर दिया. गत अगस्त में मैसूर में सुबह की सैर के दौरान वह कुछ समय के लिए लापता हो गए थे.
सुदर्शन की प्रारंभिक शिक्षा रायपुर, दामोह, मंडला और चंद्रपुर में हुई. वर्ष 1954 में जबलपुर इंजीनिरिंग कालेज से दूरसंचार विषय में बीई की उपाधि प्राप्त कर वह संघ के प्रचारक बने.