राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने ‘मजबूत’ लोकपाल के लिये अभियान चला रहे सामाजिक कार्यकर्ताओं को जाहिरा तौर पर याद दिलाते हुए कहा कि संसद जैसी संस्थाओं के प्राधिकार और विश्वसनीयता को जाने-अनजाने घटाने की कोशिश नहीं होनी चाहिये. उन्होंने यह भी कहा कि वे चाहती हैं कि भ्रष्टाचार का नासूर खत्म हो.
सभी को दायरे में शामिल करते हुए लोकपाल विधेयक के लिये अन्ना हज़ारे के नेतृत्व में सामाजिक कार्यकर्ताओं के अभियान के संदर्भ में प्रतिभा ने कहा, ‘‘इससे (भ्रष्टाचार से) निपटने के लिये कोई एक उपचार या नुस्खा नहीं हो सकता, बल्कि विभिन्न स्तर पर पारदर्शिता और जवाबदेही की व्यवस्था कायम करनी होगी तथा उसे प्रभावी तरीके से लागू करना होगा.’’
स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर राष्ट्र के नाम अपने संबोधन में राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘संस्थानों की विश्वसनीयता उनके आचरण पर निर्भर करती है, जिसे संवैधानिक रूपरेखा के भीतर होना चाहिये. उन्हें और उनकी क्षमताओं को जब कभी जरूरी हो, हमें सुधारात्मक कदम उठाने के लिये मजबूत करना चाहिये. जाने या अनजाने ऐसी कोई भी कोशिश नहीं होनी चाहिये जिससे संस्थागत विश्वसनीयता और प्राधिकार घटता हो.’’
राष्ट्रपति की टिप्पणी लोकपाल विधेयक के मुद्दे पर जारी हज़ारे के अभियान और उन पर लगे इस आरोप को लेकर छिड़ी बहस के परिप्रेक्ष्य में महत्व रखती है कि गांधीवादी कार्यकर्ता कानून बनाने की प्रक्रिया में संसद के प्राधिकार को नजरअंदाज कर रहे हैं.
अन्ना हज़ारे का अनशन 16 अगस्त से प्रस्तावित है. वह एक ऐसे लोकपाल की मांग कर रहे हैं, जिसके दायरे में प्रधानमंत्री, उच्च न्यायपालिका और संसद के भीतर सांसदों का आचरण आता हो. इन सभी को दायरे से बाहर रखते सरकार द्वारा लोकसभा में पेश विधेयक को हज़ारे खारिज कर चुके हैं.
प्रतिभा पाटिल ने कहा कि संसद देश के सभी हिस्सों के लोगों और राजनीतिक विचार के व्यापक वर्ग का प्रतिनिधित्व करती है.
उन्होंने कहा, ‘‘उसके विधायी कार्य सामूहिक विचार और विवेक का नतीजा होते हैं. हमारे देश की संसद ने नयी दिशा देने वाले कई कानून बनाये हैं. नये कानून भी विधायिका ही बनायेगी. जनमत बनाने के लिये देश की जनता के बीच चर्चा, बहस, बातचीत हो सकती है, जो सच्चे लोकतंत्र का जरूरी हिस्सा है.’’
राष्ट्रपति ने कहा कि जरूरी विधेयक तैयार करने के लिये विभिन्न तरह के विचारों को जनप्रतिनिधियों के जरिये आकार दिया जाना चाहिये. उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हमें हमारे देश के लोकांत्रिक मूल्यों को संरक्षित कर रखना है और इसके लिये संसदीय प्रक्रियाओं की स्वस्थ परंपरा को बनाये रखना होगा.’’
कुपोषण जैसे मुद्दों पर दलगत राजनीति से उपर उठकर युवा सांसदों की पहल की प्रशंसा करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि ऐसे अन्य मुद्दों पर भी सभी दलों के सांसदों के जरिये सामूहिक रूप से ध्यान देने की संभावना मौजूद है.
भ्रष्टाचार के बारे में प्रतिभा ने कहा कि यह एक ऐसा नासूर है जो देश के राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन को प्रभावित कर रहा है और इसे दूर करना जरूरी है.
उन्होंने कहा कि सरकार, संसद, न्यायपालिका और समाज को इस बारे में विचार करना चाहिये और इससे (भ्रष्टाचार के नासूर से) निपटने के ऐसे तरीके तलाशने चाहिये जो व्यावहारिक, अमल करने योग्य और टिकाऊ हों.
प्रतिभा ने स्पष्ट किया कि भ्रष्टाचार से निपटने का कोई एक इलाज नहीं हो सकता. उन्होंने कहा कि भ्रष्टाचार निरोधी एजेंडे पर आगे बढ़ने के लिये एहतियाती और दंडात्मक उपायों तथा तर्कसंगत दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत होगी.
उन्होंने कहा, ‘‘भारत अपनी गंभीरता और विवेक तथा संतुलित और संवदेनशील विचारों के लिये जाना जाता है.’’ प्रतिभा ने संस्कृत के एक श्लोक का संदर्भ दिया जो कहता है कि ‘अति सर्वत्र वर्जयेत्’.
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हमें देश में मजबूत संस्थानों की जरूरत है, हमें सुशासन की जरूरत है. हमारे संस्थानों को मजबूती देने और हमारे शासन को भी निरंतर सुधारने की जरूरत है. हमें हालात का विश्लेषण करना चाहिये और हमारे समक्ष मौजूद चुनौतियों के हल विचारशील तरीके से ढूंढने चाहिये.’’ उन्होंने कहा कि देश का संविधान सभी के लिये है.
प्रतिभा ने कहा, ‘‘इसके द्वारा बनाये गये संस्थान- कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका- स्थिर रहे हैं और उन्होंने काफी कुछ हासिल किया है. अधिकारों का विभाजन, परस्पर नियंत्रण और संतुलन की व्यापक व्यवस्था ने हमारे देश को शासन का ऐसा ढ़ांचा दिया है जिसमें संतुलन बनाये रखा जाता है और हर संस्थान दूसरे संस्थानों के जिम्मेदारी वाले क्षेत्रों का सम्मान करता है.’’ राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘हम इस बात पर गर्व कर सकते हैं कि हम एक ऐसे देश से हैं जिसने अपनी महानता उन मूल्यों के जरिये साबित की है जिनकी गूंज चारों ओर है. उन्होंने कहा कि यह देश के लिये गर्वोन्नत होने का समय है जिसने अपनी महानता अपने मूल्यों के बल पर साबित की है और उसके मूल्यों को इतने बड़े स्तर पर मान्यता मिली है.
प्रतिभा ने कहा, ‘‘इस महान विरासत के उत्तराधिकारी के रूप में यह हमारा दायित्व बनता है कि हम सचाई और न्याय के लिये संघषर्रत रहें, अपना आचरण ऐसा रखें कि एक प्रगतिशील और जिम्मेदार देश के रूप में भारत की छवि के अनुरूप हो, जहां लोकतांत्रिक मूल्य, सद्भाव और सहिष्णुता पूरी तरह से भरी हुई हो.’’
प्रतिभा ने कहा कि देश आज एक ऐसे मोड़ पर खडा है जहां ऐसे बहुत से मुद्दे हैं जिन पर ध्यान देने की जरूरत है और इस बात का ख्याल रखने की जरूरत है कि मुख्य उदेश्य से भटक न जायें.
उन्होंने कहा कि यह समय आत्ममंथन का है, ऐसा समय है जब बहुत सोच-विचारकर कदम उठाने की जरूरत है और भविष्य के लिये बेहतर तरीके से तैयार होना है. पहले भी ऐसे मौके आये हैं जब हमारे सामने बहुत से सवाल उठने पर हमने उनका जवाब ढूंढ निकाला है. किसी देश की वास्तविक ताकत उसके समक्ष पैदा होने वाली चुनौतियों से नहीं आंकी जा सकती बल्कि इस पर तय होती है कि वह उनका मुकाबला कैसे करता है.
राष्ट्रपति ने कहा, ‘‘इसलिये, जैसा कि हम आंकते हैं, नीति बनाइये, कानून बनाइये, योजनाओं को अमल में लाइये और कानून लागू कीजिये, हमें यह नहीं भूलना चाहिये कि हमारा उदेश्य यह सुनिश्चित करते हुए प्रगति के पथ पर आगे बढना है कि हमारे नैतिक मूल्यों और सिद्धांतों में कोई गिरावट न आये.’’