लगता है कैबिनेट में एक बड़ा फेरबदल करने के बाद मनमोहन सरकार अपनी छवि सुधारने में जुट गई है. गुरुवार को कैबिनेट ने सूचना का अधिकार कानून (आरटीआई) में संशोधन वापस ले लिया. इस संशोधन को कैबिनेट ने 2006 में मंजूरी दी थी.
वर्ष 2006 में सरकार ने आरटीआई में संशोधन पेश किए थे इन संशोधनों के अनुसार- सरकारी नोटिंग को दिया जाए, सूचना आयुक्तों को और काम सौंपा जाए और तीसरा पब्लिक अथारिटी की नियुक्ति संबंधी जानकारी आरटीआई के दायरे से बाहर की जाएगी. लेकिन अन्ना और अरुणा राय के विरोध के चलते तब सरकार ने इन संशोधनों को उस वक्त पास करने का इरादा छोड़ दिया था. इसके बाद सरकार एक उपयुक्त अवसर तलाश रही थी.
संशोधन से सोनिया भी थीं नाखुश
लेकिन आरटीआई कार्यकर्ताओं के लगातार विरोध के आगे सरकार के घुटने टेकने पड़े और उसे इस एक्ट में संशोधन करने के इरादा छोड़ दिया है. गौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी भी इन संशोधनों से खुश नहीं थी. आरटीआई कार्यकर्ताओं का कहना था कि अगर ये संशोधन होते हैं तो फिर इस एक्ट के कुछ मायने नहीं रह जाएंगे.
हालांकि प्रधानमंत्री ने भी पिछले दो से तीन सालों में कई बार ये कहकर इस एक्ट में संशोधन लाने की बात कही थी कि इसका गलत इस्तेमाल हो रहा है.
लेकिन सरकार की बिगड़ी छवि सुधारने और डैमेज कंट्रोल करने के लिए आखिरकार सरकार ने इसमें संशोधन करने का इरादा त्याग दिया है.