दुनिया से अलविदा हुए देश के प्रथम राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ब्रजेश मिश्र राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार के दौरान विदेश नीति को एक नई दिशा देने वाली अहम हस्ती तथा प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के संकटमोचक थे.
ब्रजेश मिश्र ने संयुक्त राष्ट्र में स्थायी प्रतिनिधि एवं इंडोनेशिया में राजदूत के रूप में अपनी सेवा दी थी. वह विदेश मंत्रालय में सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे.
उन्होंने भारत द्वारा मई, 1998 में दूसरा परमाणु परीक्षण किए जाने पर विकसित देशों की प्रतिकूल प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने के लिए भारत के राजनयिक प्रयासों में अहम भूमिका निभाई थी.
उनका जन्म उनत्तीस सितंबर, 1928 को हुआ था और वह मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री द्वारका प्रसाद मिश्र के बेटे थे. द्वारका प्रसाद मिश्र कांग्रेस के कट्टर नेता माने जाते थे और वह इंदिरा गांधी के काफी करीब थे.
ब्रजेश मिश्र 1991 में भाजपा से जुड़े थे और सात साल बाद वाजपेयी का प्रधान सचिव बनने के लिए उन्होंने भाजपा छोड़ी थी.
राजग सरकार में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधान सचिव मिश्र ने इतना प्रभाव हासिल कर लिया था कि अक्सर अक्सर ऐसा जान पड़ता था कि कैबिनेट मंत्रियों के दर्जे उनके सामने बौने पड़ गए. उन्होंने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय नीतियों से जुड़े कई मुद्दों पर अहम भूमिका निभाई. चीन के साथ संबंधों को गहरा करने और भारत पाकिस्तान संबंधों को आगे बढ़ाने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही.
ब्रजेश मिश्र चीन के साथ लंबित सीमा विवाद के हल की प्रक्रिया तेज करने के लिए चीन के साथ वार्ता के लिए विशेष प्रतिनिधि थे.
नवंबर, 1998 में वह देश के पहले राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बने. वह 23 मई, 2004 तक इस पद पर रहे.
पोखरण द्वितीय और वाजपेयी की पाकिस्तान की ऐतिहासिक यात्रा से लेकर अमेरिका के साथ रणनीतिक वार्ता तक मिश्र देश की सुरक्षा नीति और सुरक्षा पहलुओं में अहम हस्ती थे.
ब्रजेश मिश्र 1979 से लेकर 1981 तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि रहे. उसके बाद जून, 1987 तक वह संयुक्त राष्ट्र में प्रतिनियुक्ति पर बने रहे.
मई, 2004 में जब राजग लोकसभा चुनाव हार गया तब मिश्र फिर से भाजपा में शामिल नहीं हुए. मिश्र ने अपने लिए एक बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान बना लिया था और वह वाजपेयी के निवास पर विदेश नीति मामलों पर सभी बैठकों में नजर आते थे.
जुलाई, 2005 में जब मनमोहन सिंह सरकार ने पहले भारत अमेरिका परमाणु करार पर हस्ताक्षर किया तब मिश्र उस करार के बड़े विरोधियों में से एक थे.
बताया जाता है कि उन्होंने भाजपा को परमाणु करार विरोधी रुख अपनाने के लिए राजी किया लेकिन बाद में वह इस करार के समर्थक बन गए.