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'नेता जी' की घोषणाएं भी बदल रहे हैं अखिलेश!

उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव न सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के फैसले पलटने में जुटे हैं, बल्कि अपने पिता और तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव द्वारा चुनाव के दौरान की गई उन घोषणाओं पर भी कैंची चला रहे हैं जो समाजवादी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिलाने में सहायक रहे हैं. कुछ घोषणाओं में किए गए संशोधन से उनके असली मायने ही बदल गए हैं.

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अखिलेश यादव
अखिलेश यादव

उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री अखिलेश यादव न सिर्फ पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के फैसले पलटने में जुटे हैं, बल्कि अपने पिता और तीन बार प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके मुलायम सिंह यादव द्वारा चुनाव के दौरान की गई उन घोषणाओं पर भी कैंची चला रहे हैं जो समाजवादी पार्टी को प्रचंड बहुमत दिलाने में सहायक रहे हैं. कुछ घोषणाओं में किए गए संशोधन से उनके असली मायने ही बदल गए हैं.

पूर्ववती सरकार में तैनात आला अधिकारियों के तबादले की बात हो या संचालित योजनाओं के क्रियान्यवन पर रोक लगाने या पलटने की, यह सरकारी परम्परा का हिस्सा बन गई है लेकिन उत्तर प्रदेश के सबसे युवा मुख्यमंत्री द्वारा अपने ही पिता और पार्टी अध्यक्ष की घोषणाओं पर कैंची चलाना प्रदेश की जनता को अचम्भित कर रहा है.

विधानसभा चुनाव के दौरान तकरीबन हर चुनावी जनसभा में दिए गए अपने भाषण में मुलायम सिंह ने कहा था कि सत्ता में आए तो युवा बेरोजगारों को दोगुना भत्ता देंगे और गम्भीर बीमारी के शिकार किसानों का इलाज सरकारी खर्च पर कराया जाएगा.

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मुलायम की इन घोषणाओं में काफी कुछ संशोधित कर दिए जाने से इन घोषणाओं के मायने ही बदल गए हैं. अखिलेश ने पहला संशोधन शपथ लेने के तत्काल बाद 15 मार्च को पहली कैबिनेट की बैठक में बेरोजगारी भत्ते के लिए न्यूनतम आयु सीमा 35 वर्ष निर्धारित कर दिया, जिससे सेवा योजन कार्यालयों में पंजीयन करा चुके 34 साल तक के युवा मायूस हुए और 'युवा' के बजाय 'अधेड़' बेरोजगारी भत्ता पाने के हकदार बन गए हैं.

अब दूसरे संशोधन के संकेत मुख्यमंत्री अखिलेश ने लखनऊ के के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम में बुधवार को विश्व गुर्दा दिवस पर आयोजित जागरूकता रैली में दिए, जहां उन्होंने कहा कि आने वाले समय में सरकार संसाधनों का प्रबंध कर गरीबों के लिए गम्भीर बीमारियों के इलाज की मुफ्त व्यवस्था कराएगी.

मुख्यमंत्री के इस उद्बोधन में किसानों का जिक्र न होने से 'कर्ज और मर्ज' से जूझ रहे बुंदेलखण्ड के किसान सकते में हैं. गरीब या गरीबी का मापदंड क्या होगा? यह तो नई सरकार की 'गाइड लाइन' पर निर्भर होगा. मगर तल्ख सच्चाई यह है कि गरीबों के मुफ्त इलाज की कई योजनाएं पहले से भी संचालित हैं, सिर्फ उनके सही क्रियान्वयन की जरूरत है.

सपा के प्रदेश प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि सरकार सपा का चुनावी घोषणापत्र लागू करेगी और इससे नेता जी (मुलायम सिंह) द्वारा चुनावी भाषणों में की गई घोषणाओं में कोई बदलाव नहीं हो रहा है.

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सरकार की नीयत भले ही साफ हो, लेकिन इन संशोधनों से युवाओं के बाद अब किसान वर्ग भी खफा हो गया है. विदेश में खेती-किसानी के गुर सीख चुके बांदा जनपद के बड़ोखर गांव के प्रगतिशील किसान प्रेम सिंह कहते हैं कि 20 फरवरी को हमीरपुर की चुनावी जनसभा में मुलायम सिंह ने कहा था कि उनकी पार्टी सत्ता में आई तो गंभीर बीमारी के शिकार किसानों का सरकारी खर्च पर इलाज कराया जाएगा.

उन्होंने कहा कि चुनावी घोषणाओं के इन संशोधनों से ऐसा प्रतीत होता है कि अखिलेश अपने पिता की घोषणाओं से इत्तेफाक नहीं रखते. इस किसान ने याद दिलाया कि इसी जनसभा में मुलायम ने यह भी कहा था कि 'किसानों के सहकारी कर्ज भी माफ करेंगे'. कर्ज की न्यूनतम या अधिकतम सीमा का हालांकि खुलासा नहीं किया गया था.

भारतीय किसान यूनियन (अराजनैतिक) चित्रकूटधाम परिक्षेत्र बांदा के महासचिव ध्रुव सिंह तोमर ने आशंका जताई कि गरीब का आशय यदि बीपीएल राशन कार्ड या मनरेगा जॉब कार्ड धारक बता दिया गया तो किसानों का इलाज सरकारी खर्च पर कराए जाने की मुलायम की घोषणा धरी रह जाएगी.

उत्तर प्रदेश विधानसभा में बहुजन समाज पार्टी विधायक दल के उपनेता और बांदा की नरैनी सीट से विधायक गयाचरण दिनकर ने कहा कि एक पखवाड़े में ही सरकार की नीयत में खोट उजागर हो गई है, सपा ने युवा और किसान वर्ग को गुमराह कर सत्ता हथियाई है.

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