अनुसूचित जाति-जनजाति (SC/ST) संशोधन अधिनियम के खिलाफ सवर्ण संगठनों के द्वारा आज 'भारत बंद' है. सड़कों पर उतरकर सवर्ण SC/ST एक्ट को खत्म करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई भी सियासी पार्टी उनके समर्थन में खुलकर नहीं आ रही है. जबकि देश में सवर्ण समुदाय एक बड़ी राजनीतिक ताकत रखता है और सत्ता बनाने से लेकर बिगाड़ने तक का हुनर जानता है.
SC/ST एक्ट के खिलाफ सवर्ण समाज, करणी सेना, और सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी कर्मचारी संस्था (सपाक्स) सहित सवर्णों समुदाय के 35 संगठन 'भारत बंद' का ऐलान कर सड़क पर उतरे हुए हैं. इस दौरान कई जगह आगजनी और तोड़फोड़ के मामले सामने आ रहे हैं.
देश में सवर्ण समुदाय की आबादी करीब 15 फीसदी है. ये बीजेपी का मूल वोटबैंक माना जाता है. इसीलिए बीजेपी को सवर्णों की पार्टी कहा जाता है. ब्राह्मण-राजपूत-कायस्थ, भूमिहार और वैश्य की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी धीरे-धीरे समाज के हर तबके की बीच अपना दायरा बढ़ाने में जुटी है.
2014 के चुनाव के दौरान से ही बीजेपी पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों के अलावा दलित और आदिवासियों के बीच अपने जनाधार को बेहतर करने की कोशिश में लगी है. लोकसभा और उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में इसका असर भी देखने को मिला था, जिसमें मोदी के नाम पर जातीय बंधन को तोड़कर लोगों ने बीजेपी को वोट किया था.
देश में 543 लोकसभा सीटें हैं. इनमें से एससी-एसटी समुदाय के लिए 131 सीटें आरक्षित हैं, जिसमें 84 सीट अनुसूचित जाति और 47 सीटें जनजाति के लोगों के लिए हैं. मौजूदा वक्त में बीजेपी के पास इस तबके के 67 सांसद हैं.
यही वजह है कि बीजेपी कोई भी जोखिम भरा राजनीतिक कदम नहीं उठाना चाह रही है. जबकि विपक्ष लगातार बीजेपी पर दलित विरोधी होने का आरोप लगाता आ रहा है. इसी का नतीजा है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बीजेपी पलटने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
मोदी सरकार का यही फैसला अब उसे गले की फांस बन गया है. इसी का नतीजा है कि सवर्णों की पार्टी का तमगा रखने वाली बीजेपी को उसी का मूल वोटबैंक आंख दिखा रहा है. इसका नतीजा है कि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पार्टी नेताओं और मुख्यमंत्रियों को सवर्ण समुदाय की नाराजगी को दूर करने और उन्हे्ं समझाने की जिम्मेदारी सौंपी है.
सवर्ण समुदाय बीजेपी और कांग्रेस सहित बाकी दलों के खिलाफ नजर आ रहा है. हालांकि सवर्णों की नाराजगी का सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को होता दिख रहा है. इन सवर्ण संगठनों की तरफ से विरोध के क्रम में अगले चुनाव में नोटा दबाने की अपील की जा रही है. ऐसे में सवर्णों समुदाय नाराज होकर बैठ जाता है, तो फिर गोरखपुर और फूलपुर जैसे नतीजों से बीजेपी को रुबरु होना पड़ सकता है.