राजस्थान विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है और प्रदेश की जनता 7 दिसंबर को अपने मताधिकार का इस्तेमाल करेगी. चुनावों में वोट हासिल करने के लिए आदिवासी क्षेत्रों में भी नेता पहुंच रहे हैं और वोट मांग रहे हैं. प्रदेश की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी अपनी गौरव यात्रा की शुरुआत आदिवासी क्षेत्र से ही की थी, जहां भील जाति का बाहुल्य है.
राजस्थान के मेवाड़ की 28 में से 16 सीटों पर भील जाति के मतदाता अहम भूमिका निभाते हैं और किसी भी पार्टी या नेता की हार-जीत में उनका अहम योगदान होता है. वैसे तो भील जाति की बहुलता दक्षिणी राजस्थान यानी डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और उदयपुर के ग्रामीण क्षेत्रों में है, लेकिन ढूंढाड़ के कोटा क्षेत्र में भी भील समाज के लोग रहते हैं.
अनुसूचित जनजाति वर्ग में आने वाली भील जाति का इतिहास भी काफी पुराना है. कहा जाता है कि भीलों ने ही लड़ाई में महाराणा प्रताप का साथ दिया था.
भील शब्द की उत्पत्ति 'बील' से हुई है, जिसका अर्थ है 'कमान'. कई लोग भीलों को वनपुत्र भी कहते हैं. भील जनजाति राजस्थान की प्रमुख प्राचीन जनजाति है. जिस प्रकार उत्तरी राजस्थान में राजपूतों के उदय से पहले मीणों के राज्य रहे, उसी प्रकार दक्षिणी राजस्थान और हाड़ौती प्रदेश में भीलों के अनेक छोटे-छोटे राज्य रहे हैं. भील शब्द, उस वर्ग विशेष के लिए इस्तेमाल किया जाता था, जो धनुष-बाण से शिकार करके अपना पेट-पालन करते थे. कहा जाता है कि एकलव्य भी भील था.
तीसरी बड़ी जनजाति
भील देश में तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है. कई किताबों में कहा गया है कि भील के खून से तिलक करने के बाद ही राजा गद्दी पर बैठते थे. पेड़ की पूजा करने वाले भील आम और पीपल को प्रमुख मानते हैं. भीलों के रीति-रिवाज भी काफी अलग होते हैं और इस जनजाति में शादी की रस्म 9 दिन तक चलती है. इस समाज के लोग भीली और वागड़ी भाषा बोलते हैं.
राजस्थान के डूंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर का कुछ क्षेत्र 'वागड़' कहलाता है. वागड़ एक आदिवासी बहुल क्षेत्र है. भील अत्यंत परंपरावादी जाति है, जो अपने सामाजिक और आर्थिक स्तर को लेकर सजग रहती है. भील जाति के लोगों ने ही अंग्रेजों से लेकर अन्य शासकों का काफी विरोध किया है और इतिहास की कई लड़ाइयों में अहम भूमिका निभाई है. अब जबकि राजस्थान एक बार फिर नई सरकार का चुनाव करने जा रहा है, ऐसे में वहां भील जनजाति का रोल भी निर्णायक साबित होगा.